क्यों झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिले? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 29 अगस्त 2013

क्यों झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिले?

झारखंड राज्य के गठन के एक दशक बाद राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग उठी और अब इसकी शोर धीरे-धीरे गांवों, कस्बों और जंगलों के अंदर भी पहुंच रही है। लेकिन पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्री राजीव शुक्ल ने लोकसभा में स्पष्ट कर दिया कि अभी झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केन्द्र सरकार को इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। लेकिन अब सवाल यह है कि क्या यह निर्णय विशेष राज्य का दर्जा के लिए निर्धारित मापदंड के अनुरूप है या यह विशुद्ध रूप से राजनीति नफा-नुकसान के आधार पर लिया गया निर्णय है?

निश्चित तौर पर झारखंड विशेष राज्य के दर्जे में आता हैं या नहीं इसका फैसला 'नेशनल डेवलपमेंट कांउसिल' को करना था। लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए झारखंड राज्य विशेष राज्य के लिए निर्धारित मापदंड में कितना खरा उतरता है। किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि वह राज्य पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र से भरा हो, राज्य के आबादी का घनत्व कम हो, वहां की आबादी का एक हिस्सा जनजातीय हो, राज्य आधारभूत संरचना में पिछड़ा हो, राज्य पड़ोसी देश की सीमा से सटा हो, राज्य सामरिक दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण हो एवं राज्य की आर्थिक स्थिति अलाभकारी हो।

इस तरह से अगर आकलन किया जाए तो झारखंड अधिकांश शर्तों को पूरा करता है। झारखंड राज्य पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र से भरा हैं, यहां की आबादी का घनत्व राष्ट्रय औसत अधिक है, यहां के कुल आबादी का 27 प्रतिशत लोग जनजातीय समुदाय से आते हैं, यह राज्य राष्ट्रीय औसत से पिछड़ा है, राज्य का साहिबगंज जिला बंग्लादेश की सीमा से सटा हुआ है और राज्य सामरिक टृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण नहीं है। यह राज्य सिर्फ आर्थिक स्थिति में लाभकारी है, लेकिन यह भी सिर्फ आंकड़ों में ही दिखाई देता है।

हकीकत यह है कि राज्य अभी लगभग 30,000 करोड़ के कर्ज में डुब चुका है। यहां की 54 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करते हैं। 70 प्रतिशत लोगों की आजीविका कृषि और वन पर आधारित है एवं 92 प्रतिशत आदिवासी लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि और वन पर निर्भर हैं। यहां शिक्षा की स्थिति काफी दयनीय है। 8 लाख बच्चे विद्यालयों से बाहर हैं एवं 1 लाख बच्चों का नामांकन भी नहीं हुआ। विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है, पेयजल एवं अन्य सुविधाएं नदारत हैं।

इसी तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी यह राज्य काफी पिछड़ा है। यहां के 70 प्रतिशत आदिवासी महिलाएं एवं 80 प्रतिशत आदिवासी बच्चे एनिमिया के शिकार हैं। सारंडा जैसे दुर्गम इलाके में 50 किलो मीटर की परिधि में स्वास्थ्य सुविधाएं नदारद हैं। कृषि की बात की जाये तो यहां की कुल सिंचित भूमि में से 9 प्रतिशत कृषि भूमि में सिंचाई की व्यवस्था थी जो अब घटकर 7 प्रतिशत हो गई है। यहां के 1 लाख 30 हजार लोग आजीविका की खोज में प्रतिवर्ष पलायन करते हैं और बड़े पैमाने पर आदिवासी लड़कियों का ट्रैफिकिंग होता है।

केन्द्र सरकार से विशेष राज्य का दर्जा की मांग झारखंड, बिहार, ओड़िसा, पश्चित बंगाल, राजस्थान जैसे कई पिछड़े राज्य कर रहे हैं, जिसके जवाब में केन्द्र ने झारखंड, ओड़िसा और राजस्थान को तो न कर दिया है लेकिन बिहार और पश्चिम बंगाल को अभी भी ठंडे बस्ते में रखा है। जाहिर सी बात है कि इसके केन्द्र में वोट बैंक की राजनीति है।

यूपीए सरकार ने अगले आम चुनाव का ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया है। चूंकि झारखंड में झामुमो के साथ कांग्रेस की गोटी सेट हो चुकी है, राजस्थान में कांग्रेस की अपनी सरकार है और ओड़िसा को विशेष राज्य का दर्जा मिल भी जाता है तो नवीन पाटनायक कांग्रेस के पल्ले में नहीं आयेंगे। ऐसी स्थिति में केन्द्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को पश्चिम बंगाल नहीं भी तो बिहार की जरूरत है इसलिए विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने वालों की सूची में बिहार का नंबर सबसे उपर है।

ऐसी स्थिति में जबतक केन्द्र की राजनीतिक समीकरण बदलने की ताकत झारखंड में नहीं होगी झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर दिखाई पड़ता है। और झामुमो की इतनी ताकत नहीं है कि वह राज्य को विशेष दर्जा दिलाने के लिए अपनी सरकार को दांव पर लगा दे। यहां यह भी गौर करना होगा कि केन्द्रीय योजनाओं के तहत प्राप्त राशि का सामुचित उपयोग झारखंड नहीं कर पा रहा है और बजट का एक बड़ा हिस्सा प्रतिवर्ष वापस चला जाता है।

ऐसी स्थिति में झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिलता है तो 90 प्रतिशत सहायता केन्द्र सरकार से मिलेगी इसलिए उस पैसे का सही उपयोग करने के लिए भी एक विशेष खाका तैयार करना होगा ताकि उस पैसे से सही मायने में राज्य और यहां के लोगों का विकास हो सके। झारखंड विशेष राज्य के लिए तय मापदंडों को पूरा करता है इसलिए राज्य को विशेष दर्जा देना ही होगा, जिसके लिए यहां के राजनीतिक दल एवं आम जनता को एकजुट होना चाहिए।  






varsha lakra

(बरखा लकड़ा)
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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