बिहार : शराबबंदी के नारों के बीच तनखाह के बिना कर्मचारी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 20 मई 2017

बिहार : शराबबंदी के नारों के बीच तनखाह के बिना कर्मचारी

no-salary-bihar
पटना। शराबबंदी से मदहोश हो गये हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। एक ही नारा और एकमात्रः कार्य है कि महिलाओं के कथन पर खरे उतरे,जिनके कहने पर शराबबंदी कर दिये हैं। कहते हैं कि शराबबंदी से परिवार में तनाव कम हो गया है। अपराध की संख्या में कमी आयी है। जरा राज्यकर्मियों के बारे में जानकारी लेते कि उनके घरों में किस तरह का कलह उत्पन्न हुआ और जारी है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, मसौढ़ी में कार्यरत महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को 18 माह से वेतनादि नहीं मिल रहा है। उसी तरह से सामाजिक सुरक्षा पेंशन भी भुगतान नहीं पा रहा है। आप सीएम साहब खुद ही अनुमान लगा लें कि जिस घर में 18 माह से वेतन नहीं मिल रहा है। तो कैसे जीवन बिता रहे होंगे। कैसे बच्चों की पढ़ाई जारी रख रहेंगे होंगे। बच्चों की न्यूनतम जरूरतों को पूर्ण करते होंगे। कहां से राशन-पानी लाते होंगे। प्रत्येक माह बिजली भुगतान कैसे करते होंगे। बैंक से लेने वाले ऋण का भुगतान कैसे करते होंगे।  शराबबंदी के पक्ष में है बिहार सरकार। इसके कारण राजस्व में निरंतर गिरावट जारी है। राज्यकर्मियों को समयानुसार वेतनादि नियमित भुगतान नहीं हो पा रहा है। इस संदर्भ में खुद परेशान हैं पटना जिले के असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी। कहते हैं कि मांग के अनुसार राशि का भुगतान नहीं किया जाता है। इसका असर राज्यकर्मियों के वेतनादि पर पड़ रहा है। 


स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत पुरूषों को वेतन मिल जाता है। महिलाओं के वेतन मिलने में दिक्कत है। विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में कार्यरत बड़ा बाबू काम के बदले में दाम वसूलने से बाज नहीं आते हैं। प्रत्येक काम के एवज में मोटी राशि हड़पते हैं। सीएम साहब आपके राज का यह हाल है कि राशि देने में विलम्ब करने वालों का बड़ा बाबू काम नहीं करते हैं। खुलेआम कहते हैं कि जिसके पास जाकर कहना है उसके पास जाकर कहो बाल बांका नहीं होगा। अब एक ही उपाय है कि बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार की तरह राज्यकर्मियों के लिए कर्मचारी शिकायत निवारण केन्द्र में निर्मित हो। सूचना के अधिकार की तरह कार्य निपटारा करने में कौताही बरतने वालों पर आर्थिक दंड लेने का प्रावधान हो। दंड की राशि पीड़ित कर्मी को दिया जाये। महात्मा गांधी मनरेगा की तरह समय सीमा के अंदर वेतन नहीं भुगतान करने 15 दिनों में 25 प्रतिशत, 30 दिन में 30 प्रतिशत, 60 दिनों में 35 प्रतिशत, 90 दिनों में 40 प्रतिशत और 120 दिनों में 50 प्रतिशत विलम्ब वेतन हर्जाना के रूप में कर्मियों को मिले। 4 माह के बाद एक माह का वेतन भुगतान किया जाए। 

कोई टिप्पणी नहीं: