मानवाधिकार कार्यकर्ता विनायक सेन को रायपुर की एक अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के मामले में छत्तीसगढ़ सरकार पर चौतरफा दबाव बढ़ने लगा है।
दुनिया भर के मानवाधिकार संगठनों के अलावा देश के कई राजनीतिक दलों ने भी खुलकर इस फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, नोबल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन, एमनेस्टी इंटरनेशनल और वामदलों की सेन को सजा सुनाने के फैसले के विरोध के बाद राज्य सरकार की किरकिरी होने लगी है।
कानून के जानकारों के मुताबिक दरअसल जिन सबूतो की बुनियाद पर निचली अदालत ने सेन को देशद्रोही मान लिया, उनमें प्रथम दृष्टया कोई दम नजर नहीं आता। अभियोजन पक्ष का इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के प्रोफेसरों से सेन के पत्राचार को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से संपर्क के रूप प्रचारित करना इसका सबसे बड़ा सबूत है।
इन्हीं कानूनी खामियों के कारण भाजपा के समर्थन से राज्यसभा में पहुंचे राम जेठमलानी बिना एक पल गंवाये सेन की पैरवी करने को तैयार हो गए। ऎसे में भाजपा शासित राज्य की सरकार का चिंतित होना लाजिमी है।
गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
विनायक सेन फैसला,सरकार पर दवाब.
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