लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग कमेटी की सोमवार को हुई बैठक में तीखे मतभेद उभरे, जब सरकार ने प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और सांसदों के संसद में किए गए कार्यो को इसके दायरे में लाने का विरोध किया। इस पर सिविल सोसाइटी ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए समिति का बहिष्कार कर फिर से सड़क पर आने की चेतावनी दी है। अन्ना हजारे ने कहा है कि 30 जून के बाद ड्राफ्टिंग कमेटी की किसी बैठक में भाग नहीं लेंगे।
सिविल सोसाइटी सदस्य चाहते थे कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाए, जिसका सरकार ने कड़े शब्दों में यह कहते हुए विरोध किया कि इससे प्रधानमंत्री ‘बेकार’ हो जाएंगे। सरकार ने यह भी कहा कि सांसदों और उच्च न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच मौजूदा प्रक्रिया के तहत ही होगी। तीन घंटे चली समिति की बैठक के बाद सिविल सोसाइटी के आंदोलनकारी प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यदि 6 जून को होने वाली अगली बैठक में भ्रष्टाचार-रोधी विधेयक पर प्रगति नहीं हुई तो वे समिति का बहिष्कार करने की सोच सकते हैं।
सिविल सोसाइटी की ओर से जारी दो पेज के वक्तव्य में कहा गया है कि सरकार के इरादे संदेहास्पद लग रहे हैं। आप लोग अगले बड़े आंदोलन के लिए तैयार हो जाओ। हम सरकार को कड़े और प्रभावी लोकपाल विधेयक के लिए मनाने की कोशिश करेंगे, लेकिन यदि सरकार नहीं मानी तो हम सड़क पर जाने को तैयार हैं।
बैठक में सिविल सोसायटी ने सवाल किया कि सरकार सीबीआई को अपने अधीन क्यों रखना चाहती है? ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री स्वतंत्र एजेंसी से जांच नहीं कराना चाहते। सीबीआई का हर सरकार ने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल किया है। इस पर सरकार का तर्क है कि इन सभी एजेंसियों को आप अपना काम करने दीजिए। लोकपाल का अपना तंत्र होगा।
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