मन न लगे तो प्रकृति के करीब जाएँ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

मन न लगे तो प्रकृति के करीब जाएँ


दुनिया भर में खूब सारे ऐसे लोग हैं जो अक्सर यह कहते हुए सुने जाते हैं उनका मन नहीं लग रहा है अथवा मूड़ नहीं है। ऐसे लोग मन-बुद्धि और शरीर सब कुछ के स्वस्थ रहने के बावजूद किसी भी प्रकार का कार्य उत्साह से नहीं कर पाते हैं और अक्सर ये शिकायत बनी रहती है। आमतौर पर हर आदमी के जीवन में कई बार इस प्रकार की स्थितियाँ उत्पन्न होती रहती हैं जब सभी स्थितियां और परिवेश अनुकूल होने के बावजूद किसी काम में मन नहीं लगता है। इसी प्रकार कई लोग भिन्न-भिन्न परेशानियों, मानसिक एवं शारीरिक कमजोरियों आदि के कारण भी इस स्थिति में पहुँच जाते हैं जहाँ हर काम बेमन से करते हैं, काम में उत्साह हीनता के लिए कुढ़ते और कोसते रहते हैं तथा लगता है कि पूरा जीवन या वह क्षण उनके लिए भार स्वरूप हो गया है। इस प्रकार की मनःस्थिति बच्चों से लेकर बुजुर्गों और छोटों से लेकर बड़े, प्रतिष्ठित और लोकप्रिय कहे जाने वाले वीआईपी तक में कभी भी आ सकती है और कुछ में तो लम्बे अर्से तक बनी रह सकती है।

किसी भी व्यक्ति के जीवन के लिए इस स्थिति को ठीक नहीं कहा जा सकता। इस समस्या को जितना जल्द हो अपने जीवन से दूर किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं किए जाने पर यह मनःस्थिति गंभीर मानसिक और शारीरिक व्याधि का रूप भी धारण कर सकती है। इन स्थितियों के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं हुआ करता बल्कि हम ही हैं। इन हालातों का सबसे बड़ा कारण प्रकृति से हमारा दूर होना ही है। जितना हम प्रकृति से दूर जाएंगे, उतना ही हम इस प्रकार की मनःस्थिति से अपने आपको घिरा हुआ पाते हैं। लोग आजकल टीवी और कम्प्यूटर, इंटरनेट की वजह से अपनी चारदीवारी व कमरों में कैद होकर रह गए हैं और ऐसे में प्रकृति से उनका सीधा रिश्ता लगभग खत्म सा हो गया है। हमारा शरीर मूल रूप से जिन पंच तत्वों आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से बना होता है वे हमारे शरीर में कभी कभार न्यूनाधिक स्थिति में आ जाते हैं। इन तत्वों से बने शरीर में इनकी कमी हो जाने की अवस्था में हमारे शरीर की फीजिक्स और कैमिस्ट्री दोनों ही बिगड़ कर असंतुलित हो जाती हैं और तब मन-मस्तिष्क पर इसका प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता। 

शरीर के इन तत्वों का पुनर्भरण प्रकृति से होता है और हमारी चहारदीवारियों की कैद से बाहर निकल कर थोड़ा कहीं बाहर घूम आने और प्रकृति का सामीप्य पा जाने की स्थिति में इन तत्वों की जितनी मात्रा शरीर में कम हो जाती है, उतनी मात्रा प्रकृति के पंच महाभूतों से वापस प्राप्त हो जाती है और शरीर का संतुलन फिर कायम हो जाता है। यही कारण है कि जो लोग प्रकृति के करीब हैं उन्हें इस प्रकार की मानसिकता का सामना कभी नहीं करना पड़ता, वे सदैव मस्त रहते हैं और पूरी जिन्दगी पूरे उत्साह, उल्लास और ताजगी-स्फूर्ति से काम करते हैं। गाँवों में रहने वाले लोगों को भी यह अवसाद कभी नहीं झेलना पड़ता। मन नहीं लगने की महामारी कस्बाई  क्षेत्रों, शहरों और महानगरों के लोगों को ज्यादा हुआ करती है जो ज्यादातर कमरों में कैद रहने के आदी हो गए हैं और जिनके लिए गधे की तरह दिन-रात काम करते हुए ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना, घण्टों टीवी, कम्प्यूटर के सामने जमे रहना आम बात है।

ऐसे लोग जहाँ रहते हैं उनके आस-पास तथा क्षेत्र में भी प्रकृति के पांचों तत्वों का भरपूर मिल पाना असंभव रहता है। बस्तियों और मकानों के साथ ही आलीशान बंगलों के आक्षितिज पसरे हुए जंगल के बीच कही कोई खाली स्थान होता ही नहीं, न जलाशय होता है, न हरियाली और न ही सूरज की किरणों के घर में आकर पर्याप्त तेज पाने का अवसर।  सूरज की रोशनी की बजाय बन्द एसी कमरों में गुजरने वाली जिन्दगी। ऐसे में प्रकृति का कोई तत्व ऐसा नहीं है जो इन लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप प्राप्त हो। इन स्थितियों का ही परिणाम है कि सारे संसाधनों, भोग-विलासिता के सारे उपकरणों, अनाप-शनाप धन-दौलत और शौहरत के बावजूद इन लोगों के जीवन में बहुधा ऐसे अवसादी अवसर आते ही रहते हैं जब इन्हें भीतर से अहसास होता है कि उनका किसी काम में मन नहीं लग रहा है और उल्लास से भरी ऊर्जा तथा ताजगी कहीं पलायन कर चुकी है। ऐसे लोग यदि लम्बे समय तक यहीं बने रह जाएं तो कई बीमारियां घर कर लेती हैं और फिर पूरी जिन्दगी ये बीमारियां ठीक नहीं हो पाती क्योंकि पंच तत्वों के असन्तुलन से होने वाली बीमारियां दवाइयों से कभी ठीक नहीं होती बल्कि इनके लिए प्रकृति का आश्रय पाना ज्यादा जरूरी है।

जिन लोगों को अक्सर काम में मन नहीं लगने की शिकायत बनी रहे, उन्हें चाहिए कि वे प्रकृति के करीब पहुंचें। ऐसा होने पर ही उनकी समस्या का शीघ्र और स्थायी समाधान हो पाना संभव है। ऐसे लोगों को घर से दूर जंगल में, नदी-नालों और जलाशयों के किनारे, सघन जंगलों, पहाड़ों, घाटियों, मीलों तक खुले पसरे मैदानों आदि के समीप पहुंचने व कुछ समय वहाँ गुजारने का अभ्यास करना चाहिए। घरों में कैद रहकर प्रकृति का सामीप्य नहीं पाया जा सकता है। इसके लिए मकानों की दीवारों में अपने आपको नज़रबन्द रखने की बजाय बाहर निकलना होगा, तभी प्रकृति उनकी पीड़ाओं और अवसादों का शर्तिया ईलाज कर पाएगी। यह याद रखना होगा कि हमें अपनी जड़ता को छोड़कर प्रकृति के पास जाना होगा, प्रकृति हमारे पास नहीं आएगी क्योंकि हमने प्रकृति के आँगन को लील लिया है और अपने घर बना लिए हैं। प्रकृति से दूरी की वजह से पंच तत्वों की पर्याप्त उपलब्धि हम नहीं कर पा रहे हैं और दवाइयों के भरोसे जिन्दगी की गाड़ी को धक्का देने में लगे हुए हैं। इन दवाइयों के सहारे कभी भी हम बीमारियों से मुक्ति नहीं पा सकते, इस बात को हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जिन तत्वों से अपने शरीर का निर्माण हुआ है उन तत्वों के मौलिक अणु-परमाणुओं से ही हमारे शरीर का स्वाभाविक संचालन और सुरक्षित विकास तथा जीवनयापन संभव है। इनके बगैर कोई भी औषधि या कृत्रिम तत्व ऐसा नहीं है जो हमारे शरीर को स्वस्थ रख सके। ये औषधियां स्वस्थ होने का आभास मात्र करा सकती हैं। यों भी माना जाता है कि किसी की बीमारी ठीक नहीं हो रही हो तो उस व्यक्ति को पाँच सौ किलोमीटर दूर कहीं ले जाए जाने पर अपने आप स्वस्थ होने लगता है। इसी प्रकार ‘एक हवा सौ दवा’ की कहावत भी है। यह भी कहा गया है कि दस वैद्यों के बराबर एक अग्नि, दस अग्नियों के बराबर सूर्य का ताप है।  ये सभी कहावतें और उक्तियाँ प्रकृति के पंच तत्वों की महिमा को ही अभिव्यक्त करती हैं। यह अलग बात है कि धन कमाने की प्रतिस्पर्धा और मिथ्या प्रतिष्ठा के चक्कर में पड़कर हम लोग इन सभी बातों को भुला बैठे हैं।

जो लोग काम में मन नहीं लगने, घर में मन नहीं लगने जैसे मानसिक अवसादों से ग्रस्त हैं उन्हें चाहिए कि वे रोजाना नहीं तो सप्ताह में एक या दो बार सवेरे या शाम प्रकृति के करीब जाएं और कुछ देर वहाँ रहें। ऐसे लोगों को घरों में बैठकर बूद्धू बक्से की शरण में पड़े रहने की बजाय रोजाना शाम को बस्तियों से दूर, अपने इलाके के दर्शनीय स्थलों, मन्दिरों, श्रद्धास्थलों, पार्कों, नदियों व जलाशयों के किनारे जरूर जाना चाहिए। एक बार प्रकृति से पंच तत्वों का पुनर्भरण हो जाने की स्थिति में मानसिक अवसाद, काम में जी नहीं लगने जैसी सभी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। प्रकृति ही है जो ऐसी अवस्थाओं में हीलिंग का काम करती है। इसलिए जीवन में मस्ती और आनंद चाहें तो अधिक से अधिक समय प्रकृति के बीच गुजारें।



---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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