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शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

बीमारियां घर न लाएँ.........


बीमारू कार्यस्थलों को सुधारें


बीमारियों का प्रभाव आजकल सभी जगह है। विकास के कई सोपानों के सााथ हमने तरक्की के तराने भले ही गाने और सुनाने शुरू कर दिए हों मगर इन सारे झमेलों में हमने अपनी सेहत का ख्याल भुला दिया है और ऐसे में आज कोई शख़्स यह नहीं कह सकता कि वह पूर्ण स्वस्थ और मस्त है। हर कोई आदमी किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक। कोई स्वास्थ्य से परेशान न हो तो मानसिक रोग तो होगा ही। हमने अपने जीवन के कर्मों का पूरा संतुलन खो दिया है और यही कारण है कि हमारा जीवन पूरी तरह असंतुलित होकर समस्याओं और बीमारियों के पोखर में गिरने लगा है। शारीरिक सौष्ठव और बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए हमने परंपरा से किए जाने वाले परिश्रम को तिलांजलि दे दी है और पूरा ध्यान केन्द्रित कर दिया धन-वैभव, ऐशो आराम और विलासिता में। हमने इस बात को भुला दिया कि हम जिस विलासी आनंद की कल्पना करते हैं, साकार करते हैं उन सभी का मूलाधार तो शारीरिक सौष्ठव ही है। सेहत की बुनियाद कमजोर होने पर हमारा पूरा जीवन ही हिलने लगता है और फिर वह मरते दम तक सुधरा नहीं पाता है।

शरीर के लिए बुद्धि और सेहत का संतुलन होने पर ही जीवन के आनंद को प्राप्त किया जा सकता है। इन दोनों में से एक के भी कमजोर होने की स्थिति में पूरा जीवन वैषम्य से घिरा रहता है और इससे उबरने का कोई रास्ता शेष नहीं बचता सिवाय दवाइयों के निरन्तर बेहिचक इस्तेमाल के। जीवन में संयम का अभाव और सेहत की उपेक्षा उन सभी खतरों को जन्म देती है जो किसी भी आदमी के तमाम प्रकार के आनंद को स्वाहा कर सकती है भले ही वह अकूत संपदा का स्वामी हो या विलासिता का महानतम स्वर्ग प्राप्त किए बैठा हो।  सेहत के बगैर इन सभी का कोई मूल्य नहीं है। जीवनचर्या में रोजाना सेहत की रक्षा के लिए नियमित योग-व्यायाम और प्राणायाम तथा परिश्रम का होना नितान्त जरूरी है और इनकी उपेक्षा किसी भी व्यक्ति के लिए हमेशा आत्मघाती हुआ करती है। भले ही आज हम इस बात पर कोई ध्यान न दें लेकिन इतना तो तय है कि हमारी यह ढिलाई आने वाले कल को जरूर बिगाड़ सकती है।

बीमारियां कहीं बाहर से नहीं आती बल्कि उन स्थानों से आती हैं जहां हम ज्यादातर समय रहते हैं या जहां हमारी ज्यादा समय आवाजाही बनी रहती है। इन स्थलों के बैक्टीरिया, वायरस और भिन्न-भिन्न प्रकार के कीटाणुओं का सम्पर्क हमारे शरीर से हो जाता है और फिर ये मौका पाकर हमारे शरीर पर हमला शुरू कर देते हैं। हमारे आवास और कार्यस्थलों अथवा अपने उठने-बैठने के डेरों को देखें तो साफ पता चल जाता है कि सेहत की दृष्टि से इन स्थलों की बुनियाद बेहद कमजोर है और हमारी बीमारियों का यह सबसे बड़ा कारण यही है। न केवल साफ-सफाई के लिहाज से बल्कि वास्तु के हिसाब से भी हमारे अधिकांश डेरे ऐसे हैं जहां हमें काम करने का कोई परिवेशीय सुकून प्राप्त नहीं होता।  जहां किसी भी व्यक्ति के कार्यस्थल पर बैठने और काम करने लायक सहूलियतें और सुकून उपलब्ध हैं वहां काम करने का मजा भी आता है और हर कार्य का परिणाम भी अच्छा आता है। कर्मयोग और कार्यस्थलों का सीधा संबंध है जो कार्य की गति को प्रभावित करता है और साथ ही साथ कर्म करने वालों को भी। अच्छा और मनभावन परिवेश होने पर कार्य की गुणवत्ता अच्छी आती है और संस्थान से जुड़ी हर गतिविधि पर सकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

इसके विपरीत कार्य करने वाले कितने ही गुणी और उत्तम हों लेकिन कार्यस्थल अनुकूल न हो तथा साफ-सफाई और सुकून का अभाव हो, ऐसी स्थिति में बीमारियाँ घेर लेती है और काम करने वाले लोगों का जीवन हमेशा तनावों से घिरा होता है।  कई कार्यस्थल और दफ्तर ऐसे दिखते हैं जिनमें बरसों से फाईलों का अंबार पड़ा रहता है और कई तो फाईलों के महाभण्डार के रूप में दिखने लगते हैं। इनकी वजह से कक्ष की खिड़कियां बंद रखने की विवशता होती है और पूरा कक्ष धूल भरी फाइलों और जालों से घिरा रहता है। सालाना इनमें धूल घुसने का क्रम निरन्तर बना रहता है। एक ओर किसम-किसम की धूल और बैक्टीरिया का घर, दूसरी ओर हवादार खिड़कियों और रोशनदान का बंद होना। और इस वजह से कक्ष में अजीब किस्म की गंध का पसरना और इसका निरन्तर सान्द्र होते रहने की स्थितियों में इसमें बैठकर दिन गुजारने वाले लोगों की सेहत कैसी होगी, इसका अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है। हमारे इलाके से लेकर देश के कोने-कोने तक ऐसे बीमारू दफ्तरों का जमावड़ा है जो बीमारियां दे रहे हैं लेकिन इसकी गंभीरता कोई नहीं समझ रहा । जो अंदर बैठते हैं वे भी नहीं और जो इन कक्षों को देखते हैं वे भी।

इन कक्षों से एलर्जी, काम में जी नहीं लगने, तनावों आदि की स्थितियां उन सभी लोगों के जीवन में बनी रहती हैं जो इन कक्षों में बैठने को विवश होते हैं। यह स्थिति कमोबेश कई सारे क्षेत्रों में है , चाहे वे निजी हों, सरकारी या अर्द्ध सरकारी या गैर सरकारी। इनमें से कई कक्षों में बरसों से जमा धूल के कारण ऐसे घातक कीटाणु,  बैक्टीरिया और भयंकर वायरस पनप जाते हैं जिनसे किसी की भी जान पर बन आ सकती है।  दुर्भाग्य यह है कि इस गंभीरता को लोग हल्के-फुलके ले रहे हैं जबकि एकमात्र इसी वजह से किसी के भी जीवन पर खतरा मण्डरा सकता है। फाईलों और नाकारा पड़े सामान, उपकरणों आदि की वजह से फैलने वाली धूल, गंदगी और एलर्जिक माहौल को सुधारने के लिए निरन्तर सफाई के साथ ही इनका उचित संधारण और संरक्षण इस प्रकार किया जाना जरूरी है कि कक्ष में बैक्टीरिया न पनपें तथा सभी हवादार स्थान खुले और साफ रहें। बीमारियों के पनपने के इस एकमात्र कारण को हटा कर हम कई घातक बीमारियों से अपने आप को बचा सकते हैं। बीमारू दफ्तरों को सुधार दिया जाए तो देश की काफी कुछ आबादी को सेहत का वरदान दिया जा सकता है। आज जरूरत है इस विषय पर गंभीरता से सोच निर्मित करने की। वरना जो हो रहा है वह तो होता ही रहेगा।



---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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