बलात्कार के दोषियों की दया याचिका स्वीकार न हो. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

बलात्कार के दोषियों की दया याचिका स्वीकार न हो.


बीजेपी ने सोमवार को मांग की कि बलात्कार के बाद पीड़ित की हत्या करने के मामलों में मृत्यु दंड सुनाए गए दोषियों के लिए दया याचिका का प्रावधान समाप्त किया जाना चाहिए. लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने पीड़ित 23 वर्षीय लड़की का ‘गोपनीय’ ढंग से अंतिम संस्कार किए जाने की आलोचना की. उन्होंने कहा कि बलात्कार के मामलों के मुकद्दमें छह महीने के भीतर पूरे हो जाने चाहिएं और बलात्कार के बाद पीड़ित की हत्या किए जाने वाले दोषियों को मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि संसद के आगामी संसद सत्र में ऐसे प्रावधान करने के लिए कानून में संशोधन किया जाना चाहिए.

सुषमा ने संप्रग सरकार द्वारा बलात्कार के बाद हत्या करने के पांच मामलों के मृत्यु दंड पाए दोषियों की दया याचिका स्वीकार कर उन्हें मौत की सज़ा से मुक्ति देने की कड़ी आलोचना की. उन्होंने कहा, ‘ऐसे मामलों के दोषियों को फांसी के फंदे पर लटकाना चाहिए और ऐसा करने वालों की दया याचिकाओं को सरकार को स्वीकार नहीं करना चाहिए.’ विपक्ष की नेता ने कहा कि इस बारे में उन्होंने प्रधानमंत्री से बात की है और वर्तमान कानूनों की समीक्षा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है. लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया. उन्होंने शिकायत की कि महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाए जाने की उनकी मांग को भी नहीं माना गया.

सरकार पर उन्होंने केवल ‘‘ड्रामा’’ करने का आरोप लगाते हुए कहा कि पीड़ित लड़की का जिस गोपनीयता से अंतिम संस्कार किया गया उसे वह गलत मानती हैं. उन्होंने कहा, ‘‘अंतिम संस्कार के बारे में सरकार हमें गुमराह करती रही.’

राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली ने कहा कि किसी लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार को महज़ ‘‘वीभत्स, बर्बर, अमानवीय’’ कहना काफी नहीं है. यह इस बात का द्योतक है कि ‘हम सभ्यता के परीक्षण में विफल साबित हुए हैं.’ उन्होंने कहा, ‘ऐसे मामलों में दोषियों को फांसी के फंदे पर लटका देना चाहिए और उनकी दया याचिका मंजूर नहीं होनी चाहिए. ऐसा करना ही पीड़ित को सम्मान देना होगा.’ वह चलती बस में सामूहिक बलात्कार की शिकार लड़की की स्मृति में यहां पार्टी मुख्यालय में आयोजित शोक सभा को संबोधित कर रहे थे.

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