स्वाधीनता संग्राम के महानायक भोगीलाल पण्ड्या - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 31 मार्च 2013

स्वाधीनता संग्राम के महानायक भोगीलाल पण्ड्या


पीढ़ियाँ गुनगुनाएंगी उनके कर्मयोग को


गोविन्द गुरु के क्रान्तिचेता व्यक्तित्व, संत मावजी महाराज की समाज सुधार धाराओं और महात्मा गांधी तथा विनोबा भावे के व्यक्तित्व से प्रभावित पद्मश्री भोगीलाल पंड्या वनांचल में लोक जागरण और स्वाधीनता संग्राम चेतना के महानायक रहे हैं। आज भी वे जन-जन की आस्था और श्रद्धा के प्रतीक तथा आदर्श समाज की रचना के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।

समाज के लिए समर्पित कर दिया जीवन

निष्काम कर्मयोगी पद्मभूषण स्व. भोगीलाल पंड्या ने अपना समूचा जीवन लोक जागरण, शैक्षिक चेतना, अछूतोद्धार, स्वातंतर््य चेतना के गांव-ढाणियों तक संवहन और सामाजिक संस्कारों को पुष्ट करते हुए आदर्श समाज की नवरचना में समर्पित कर दिया। जनजाति बहुल इस पर्वतीय अंचल के सीमलवाड़ा में 13 नवम्बर 1904 को त्रिवेदी मेवाड़ा पीताम्बर पंड्या के घर श्रीमती नाथी बाई की कोख से जन्मे भोगीलाल पंड्या ने प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा स्वयंपाठी के रूप में अपने ही गांव में प्राप्त की। मेधावी एवं विलक्षण व्यक्तित्व के धनी पंड्या उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए डूंगरपुर आए।  उन्होंने माध्यमिक शिक्षा डूंगरपुर के राजकीय स्कूल से ग्रहण के बाद मैट्रिक की परीक्षा अजमेर से उत्तीर्ण की। मात्र 17-18 वर्ष की आयु में ही राजकीय पिन्हे हाई स्कूल डूंगरपुर में शिक्षक के पेशे से उन्होंने अपनी जीवन की शुरूआत की। उनका विवाह गुजरात के सांबरकांठा जिले की मालपुर तहसील में नानावाड़ा गांव में 1920 में मणि बेन के साथ हुआ।

जनमानस पर छा गए दैवदूत की तरह

होनहार बालक पंड्या विद्यार्थी जीवन से ही लोक जागरण की गतिविधियों में जुड़े और उनमें नेतृत्व गुण पल्लवित-विकसित होते रहे। सन् 1935 में जब महात्मा गांधी ने छुआछूत के उन्मूलन के उद्देश्य से हरिजनोद्धार को प्राथमिकता दी तो डूंगरपुर में भी इसका व्यापक असर पड़ा और हरिजन सेवक संघ की स्थापना की गई और पंड्याजी इसके संस्थापक मंत्री बने।  लोक सेवा, अटूट देश भक्ति, निस्पृह जीवनादर्शों, तप और त्याग की वजह से भगवान के अवतार की तरह जनमास पर छा गए। आदिवासी समाज की सेवा, गरीबों को मदद और शिक्षा के माध्यम से दासताओं और अभावों से घिरे जन-जन को मुक्त कराने के लिए उनकी अहर्निश सेवाओं का ही प्रतिफल है कि आम जन में उन्हें ‘वागड़ गांधी’ के रूप में श्रद्धा दी जाने लगी। उन्होंने राजस्थान खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, भारतीय आदिम जाति सेवक संघ, राजस्थान हरिजन सेवक संघ जयपुर, राजस्थान की अनेक खादी संस्थाओं के साथ-साथ गांधी स्मारक निधि तथा राजस्थान सेवक संघ सहित अनेक संगठनों में आत्मीय सहभागिता निभाते हुए सेवा व्रतियों का बहुत बड़ा परिवार पनपा दिया।

वागड़ में आजादी आंदोलन के सूत्रधार

देश की आजादी के लिए वनवासी अंचल में विचार क्रान्ति की अलख जगाने से लेकर स्वाधीनता संग्राम के जबर्दस्त संघर्षो ने पंड्याजी के व्यक्तित्व को निखारा तथा वे वागड़ में आजादी के आन्दोलन के प्रमुख सूत्रधार बने। मानवीय संवेदनाओं के जीवन्त प्रतीक स्व. भोगीलाल पण्ड्या हर व्यक्ति में ईश्वर की छवि को देखने वाले कर्मयोगी थे जिनके सम्पर्क में आने वाला हर कोई व्यक्ति उनके विराट व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। 15 मार्च 1938 में सेवा संघ की स्थापना की। 1942 में उन्होंने देश की आजादी के लिए पूर्ण समर्पित होने की भावना से राजकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया। इसी वर्ष उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन का यहां नेतृत्व किया और विशाल जुलूस निकाला।

अहंकार छू भी न पाए उन्हें

रियासतों के विलीनीकरण के दौर में पूर्व राजस्थान के गठन पर वे इसके पहले मंत्री नियुक्त हुए। वृहत्तर राजस्थान बनने पर जयनारायण व्यास के मुख्यमंत्रीत्व काल में भी उन्हें मंत्री पद सौंपा गया। 1942 के बाद वे सक्रिय राजनीति में आए लेकिन सामाजिक कार्य उनके लिए सदैव पहली प्राथमिकता पर रहे। 1965 में वे डूंगरपुर जिला परिषद के अध्यक्ष बने। सन् 1969 में उन्होंने राजस्थान खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष पद को गौरवान्वित किया। आज मामूली पद-प्रतिष्ठा पा जाने के बाद आदमी अहंकार और दूसरी बुराइयों का सामीप्य पा लेता है लेकिन इतने सारे पदों के निर्वाह और लोकप्रियता के बावजूद वे सम सामयिक अहंकारों और इंसानी कमजोरियों से बेहद दूर रहे तथा शुचिता के साथ जीवन जीया जो कि आम लोकप्रिय और कर्मशील इंसान के लिए अत्यंत दुर्लभ है। उन्होंने सन् अगस्त 1944 में प्रजा मण्डल की स्थापना की और आजादी के आन्दोलन को विधिवत वृहत स्वरूप दिया। जनजाति अंचल में लोक सेवा और जन-जन को आजादी की नवीन दृष्टि एवं दिशा प्रदान करने सहित ढेरों उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार ने 3 अप्रैल 1976 को पद्मभूषण अलंकरण से सम्मानित किया।  स्वातंतर््य समर के इस महायोद्धा ने 31 मार्च 1981 को जयपुर में हर हमेशा के लिए ऑंखें मूंद ली। इसके दो दिन बाद दो अप्रैल 1981 को जब उनका अंतिम संस्कार किया गया तब जन गंगा में व्याप्त श्रद्धा का अतिरेक उनके विराट व्यक्तित्व में समाहित विलक्षण दैव स्वरूप का  यशोगान करता रहा।

चिरस्थायी हैं उनकी स्मृतियां

जन-जन की अगाध आस्था और श्रद्धा के युगपुरुष स्व. भोगीलाल पण्ड्या की मूर्ति डूंगरपुर जिले की गुजरात सरहद से सटी सीमलवाड़ा पंचायत समिति मुख्यालय के बस स्टैण्ड पर स्थापित  है। इस मूर्ति स्थल पर लघु उद्यान विकसित किया गया है। वहीं राजस्थान सेवा संघ और गांधी आश्रम उनकी यादों को चिरस्थायी बना रहे हैं। भोगीलाल पण्ड्या का समग्र व्यक्तित्व आज की पीढ़ी के उन सभी लोगों के लिए आत्मचिंतन के साथ ही प्रेरणा का महास्रोत है जो समाज सेवा और राजनीति के क्षेत्रों में रमे हुए कुछ पाना तथा समाज को देना चाहते हैं। भोगीलाल पण्ड्या के कार्यों और उपदेशों का अनुगमन ही उनके लिए आदर और सम्मान का प्रेरक स्तंभ सिद्ध हो सकता है।




---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com


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