बिहार में आरटीआई कार्यकर्ताओं की शामत! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 31 मार्च 2013

बिहार में आरटीआई कार्यकर्ताओं की शामत!


बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मनिहारी थाना क्षेत्र के रतौनी गांव में हुई पिछले सप्ताह रामकुमार ठाकुर की उस समय हत्या कर दी गई जब वे अपने भतीजा सुजीत कुमार के साथ एक मोटरसाइकिल से जा रहे थे। उनकी हत्या के पीछे स्थानीय मुखिया राजकुमार सहनी के भ्रष्टाचार को उजागर करने का परिणाम बताया जा रहा है। लोग कहते हैं कि यहां सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ताओं का यही हश्र होता है। बिहार में आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या का यह पहला मामला है। इसके पूर्व भी चार आरटीआई कार्यकर्ताओं को मौत की नींद सुला दिया है। आरटीआई कार्यकर्ताओं के प्रताड़ित करने के पिछले एक वर्ष में 200 से ज्यादा मामले राज्य सूचना आयोग के पास आ चुके हैं। 

देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिए जब सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ तो सभी खुश हुए कि भ्रष्टों का बखिया उधेड़ने का एक कानूनी हथियार आम जनता के हाथ लगा है। केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने इसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए खूब ढिंढोरा पीटा। लेकिन किसे मालूम था कि यही कानूनी हथियार जागरूक नागरिकों के गले की फांस बन जाएगा और हत्या की वजह तक बन जाएगा! बिहार ऐसा राज्य है जहां सूचना मांगने वालों को प्रताड़ित किए जाने का आरोप अक्सर लगाता रहा है। आंकड़ों के मुताबिक, पिछले तीन वर्षो में यहां पांच आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है। 

बिहार के नागरिक अधिकार मंच के संयोजक और अब तक सूचना के अधिकार के तहत 1000 से ज्यादा सूचना मांगने वाले शिवप्रकाश राय ने आईएएनएस को बताया कि नेशनल एलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट की एक टीम ने ठाकुर की हत्या मामले की जांच मौके पर जाकर की है। जांच के क्रम में यह बात सामने आई है कि पिछले सितंबर महीने में मुखिया सहनी और उनके लोगों ने ठाकुर पर तब हमला किया था, जब उन्होंने गांव की विकास योजनाओं को लेकर चल रहे सोशल ऑडिट में मुखिया द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को सबके सामने ला दिया था। इस मामले की प्राथमिकी भी थाना में दर्ज कराई गई थी मगर कोई कारवाई नहीं हुई। ठाकुर की हत्या के मामले में भी अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

इसके पूर्व बेगूसराय के फुलवरिया में आरटीआई कार्यकर्ता शशिधर मिश्र उर्फ खबरीलाल की वर्ष 2009 में और 2011 में लखीसराय जिले के बभनगामा में रामविलास सिंह की हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा वर्ष 2012 में मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर के मुरलीधर जायसवाल की और इसी वर्ष मुजफ्फरपुर के तिरिसिया जगदीश गांव में राहुल कुमार की भी हत्या हो चुकी है। राय कहते हैं कि बिहार राज्य सूचना आयोग में पिछले एक वर्ष में सूचना मांगने वालों को प्रताड़ित किए जाने की 201 शिकायतें आ चुकी हैं। 

गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा इन मामलों की निगरानी के लिए एक सेल का गठन 2010 में किया गया है, जिसकी निगरानी राज्य के पुलिस महानिदेशक और गृह विभाग के सचिव करते हैं, लेकिन आरटीआई कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इस सेल ने कोई कारगर पहल नहीं की। एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता आशीष रंजन कहते हैं कि बिहार में सभी मामलों में आरोपियों को सजा दिलाने के लिए त्वरित सुनवाई की गई, परंतु आजतक सूचना के अधिकार मांगने वालों की प्रताड़ना या हत्या जैसे मामलों की सुनवाई त्वरित रूप से नहीं की गई, जैसे सूचना मांगना कोई गुनाह हो। 

एक अन्य उदाहरण मुजफ्फरपुर जिले का है, जहां हेमंत कुमार ने बिहार ग्रामीण बैंक में अधिकारियों और कर्मचारियों की रिक्तियां की जानकारी मांगी थी। इसका हश्र देखिए कि बैंक के एक महिला कर्मचारी ने दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए इस मामले की एक प्राथमिकी मिठनपुरा थाना में दर्ज करा दी। यह बात और है कि न्यायालय ने तत्काल हेमंत को न केवल जमानत दे दी, बल्कि पुलिस अधिकारियों को भी इस गलत मामले के लिए माफी मांगनी पड़ी थी। 

राज्य के पुलिस महानिदेशक अभयानंद कहते हैं कि ऐसे मामलों पर पुलिस मुख्यालय लगातार जिलों से रिपोर्ट मांगता है और कारवाई की पहल करती है। उनका कहना है कि मामला आरटीआई से जुड़ा हो या विधि व्यवस्था का, पुलिस विधिसम्मत कारवाई करती है। उनके दावे में कितना दम है, यह शोध का विषय है।

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