विशेष : ईसाई समुदाय धर्मसंकट में - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 3 नवंबर 2013

विशेष : ईसाई समुदाय धर्मसंकट में

bihar issai
एक भोलेभाले ईसाई वंदा ने मिशनरी स्कूल में नौकरी के लिए आवेदन दिया। आवेदन के साथ स्कूल और कॉलेज का प्रमाण पत्र पेश किया। उसमें उल्लेखित जन्मतिथि के आधार पर ही नौकरी में बहाल कर लिया गया। अब भोलेभाले ईसाई वंदा से बपतिस्मा प्रमाण पत्र देने की मांग की जा रही है। उसी बपतिस्मा प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी से बाहर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। इस तरह आये थे नौकरी में कॉलेज के प्रमाण पत्र से अब अवकाश ग्रहण बपतिस्मा प्रमाण पत्र से करेंगे।

क्या है बपतिस्मा प्रमाण पत्रः

ईसाई धर्म स्वीकार करते समय बपतिस्मा संस्कार दिया जाता है। इस संस्कार को ग्रहण करने बाद ही ईसाई धर्म में प्रवेश कर जाता है। बपतिस्मा संस्कार ग्रहण करते समय व्यक्ति का नाम, पिता और माता का नाम, धर्ममाता और धर्मपिता का उल्लेखकर रजिस्टर पर लिखा जाता है। इसके अलावे जिस दिन बपतिस्मा संस्कार दिया जाता है। उस दिन की तिथि अंकित होता है। बपतिस्मा संस्कार देने वाले पुरोहित का नाम लिखा जाता है। बपतिस्मा लेने वाले मां-बाप से उसका जन्मतिथि पूछ कर रजिस्टर में अंकित कर लिया जाता है। एक तरह से पूरी तरह से प्रमाणित कर दिया जाता है। बपतिस्मा प्रमाण पत्र को निर्गत पल्ली पुरोहित करते हैं। इस बपतिस्मा प्रमाण पत्र को कानूनन मान्यता प्राप्त है। बपतिस्मा सार्टिफिकेट भी कहा जाता है। इसमें चर्च के पुरोहित रजिस्ट्रार की हैसियत से प्रमाण-पत्र निर्गत करते हैं। ईसाई पुरोहितों के द्वारा वयस्क को शादी करने के पूर्व बपतिस्मा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की मांग की जाती है। इससे पता चल जाता है कि वयस्क युवा-युवती बपतिस्मा संस्कार ग्रहण किये हैं। वहीं बच्चों को मिशनरी स्कूलों में नामांकन करवाते समय भी बपतिस्मा प्रमाण पत्र की मांग की जाती थी ताकि स्कूल में उल्लेखित जन्म तिथि को लिख सकें। इसी मांग को लेकर बिहार में ईसाई समुदाय ने बवाल काटा था। ईसाई समुदाय का कहना था कि गैर ईसाइयों की तरह ही अस्पताल,पंचायत,निगम,कोर्ट आदि का आयु प्रमाण पत्र पेश करने की इजादद मिले। ताकि गैर ईसाइयों की तरह ही परिस्थितिवश आयु में संशोधन करके पेश किया जा सके। काफी जद्दोजद करने के बाद अवकाश प्राप्त विकर जेनरल बी.जे.ओस्ता ने पत्र निकालकर मिशनरी स्कलों के संचालकों को आदेश दिया कि गैर ईसाइयों की तरह ही ईसाई समुदाय के बच्चों से ही अस्पताल, पंचायत,निगम,कोर्ट आदि का आयु प्रमाण पत्र स्वीकार किया जाए। इसे सिर्फ धर्म कार्यों तक ही सीमित रखा जाए। 

जब अशिक्षित ईसाई समुदाय थाः

प्रारंभ में जब अशिक्षित ईसाई समुदाय था। तो उनका धर्म परिवर्तन करके मिशनरी संस्थाओं में अपने अधीन सेवाकार्य में रख लिया जाता था। चूंकि ईसाई मिशनरियों के द्वारा बड़े पैमाने पर केन्द्र और राज्य सरकारों से संस्थाओं को पंजीकृत कराकर स्कूल, दवाखाना, अस्पताल, सामुदायिक केन्द्र आदि संचालित किया जाता है। इसमें लोगों को कम तनख्याह देकर कार्य करवाया जाता है। हाल यह है कि राज्य सरकार के द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी को ही मासिक वेतन बनाकर कुशल, अर्द्धकुशल और अकुशल मजदूरों को यानी कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है। अब तो मानदेय ही देकर कार्य निकाला जाता है। गैर सरकारी संस्थाओं के कर्ताधर्ता मिशनरियों के द्वारा अपने अधीन के सेवा कार्य में रखा जाता है। अंग्रेजी के वर्णमाला से कार्य शुरू होता था। आया, बार्वची, कारपेंटर, दरबान आदि चतुर्थवर्गीय पद पर ही रखा जाता है। इनको ईसाई धर्म कबूलते समय बपतिस्मा संस्कार दिया गया। उसी बपतिस्मा संस्कार के बपतिस्मा प्रमाण पत्र के आलोक में बहाल करने और नौकरी से अवकाश करते समय इस्तेमाल करने लगे। जो आज भी करना चाहते हैं। जबकि अब लोग कुछ पढ़ लिखकर स्कूल और कॉलेज के प्रमाण पत्र पेश कर रहे हैं। इसको लेकर भी लोगों में आक्रोश है। आज भी कमोवेश नौकरी में बहाल करते समय स्कूल और कॉलेज के प्रमाण पत्र मान्य करते हैं। परन्तु नौकरी से हटाने और अवकाश ग्रहण करने के पूर्व में बपतिस्मा प्रमाण पत्र देने की मांग करते हैं। किसी तरह के प्रशिक्षण में बपतिस्मा प्रमाण पत्र की चर्चा भी करना अपराध साबित होता है। सरकारी महकमे में स्कूल और कॉलेज के ही प्रमाण पत्र की मांग की जाती है। परन्तु बपतिस्मा प्रमाण को कानूनी मान्यता प्राप्त है। इसी के आधार बनाकर मिशनरी बपतिस्मा प्रमाण पत्र देने की मांग करते हैं। 

अब बिहार के बाहर के प्रदेशों में भी बपतिस्मा प्रमाण पत्र देने की मांग उठीः

यह सच है कि पटना धर्मप्रांत के ईसाइयों के द्वारा लगातार बवाल काटने के बाद ही अन्ततः पटना महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष बी.जे.ओस्ता ने आदेश रूपी कानून बनाकर मिशनरी स्कूलों के संचालकों को पेश किया था। इसके बल पर अब ईसाई बच्चों से मिशनरी स्कूलों में नामांकन करवाने वक्त बपतिस्मा प्रमाण पत्र की मांग नहीं की जा रही है। उनको अस्पताल, पंचायत, निगम, कोर्ट आदि से आयु प्रमाण पत्र पेश करने को कहा जा रहा है। मगर आज भी मिशनों में कार्यरत कर्मचारियों से बपतिस्मा प्रमाण पत्र पेश करने की मांग की जा रही है। इसी के आधार पर नौकरी से बाहर कर दी जा रही है। अभी यह हाल है कि यह पसर कर अन्य प्रदेशों में भी चला गया है। वहां भी बपतिस्मा प्रमाण पत्र की मांग की जा रही है। वह स्कूल और कॉलेज के प्रमाण पत्र से नौकरी में बहाल हुआ था। अब अवकाश ग्रहण करने के पहले बपतिस्मा प्रमाण पत्र की मांग की जा रही है। इसी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी निकाला की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। नवीनतम जानकारी के अनुसार अब पढ़े-लिखे ईसाई समुदाय कॉलेज और स्कूल के प्रमाण पत्र ही उल्लेखकर नौकरी कर रहे हैं। कॉलेज और स्कूल के प्रमाण पत्र पर नौकरी देते हैं मगर अवकाश ग्रहण करने के पूर्व बपतिस्मा प्रमाण पत्र की मांग की जाती है। मिशनरियों के द्वारा बपतिस्मा प्रमाण पत्र में उल्लेखित जन्म तिथि को ही मान्य करके नौकरी से अवकाश ग्रहण करवाने का मामला सामने में आया है। आये थे नौकरी में कॉलेज के प्रमाण पत्र से अब बपतिस्मा प्रमाण पत्र से अवकाश ग्रहण करेंगे। 2 नवम्बर को कुर्जी कब्रिस्तान के बाहर इसी बात को लेकर चर्चा का बाजार गरम था।




आलोक कुमार
बिहार 

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