विशेष आलेख : पुल एक ख्वाब बनकर रह गया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 31 जुलाई 2014

विशेष आलेख : पुल एक ख्वाब बनकर रह गया

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जम्मू एवं कष्मीर का सीमावर्ती जि़ला पुंछ सरहद पर होने की वजह से हमेषा किसी न किसी घटना को लेकर सुर्खियों में रहता है। नई सरकार बनने के बाद से ही सीमा पार से संघर्ष विराम के उल्लंघन अ©र मिलिटेंट्स की घुसपैठ जैसी बहुत सी घटनाअ¨ं की वजह से पुंछ ने राष्ट्रीय मीडिया में जगह बनाई। लेकिन इन खबर¨ं के इतर भी पुंछ की अपनी बहुत सी समस्याएं हैं ज¨ राष्ट्रीय मीडिया में अपनी जगह नहीं बना पाती हैं। पुंछ जि़ले की तहसील सुरनकोट को कुदरत ने अनमोल हुस्न से नवाज़ा है। लेकिन सरकार की ओर से इस पर  कोई खास ध्यान नहीं दिया गया। यह क्षेत्र आज भी तमाम मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। पीर पंजाल क्षेत्र से निकलने वाले छोटे छोटे नदी नाले मिलकर एक बड़ा दरिया बनाते हैं जिसे सुरन नदी के नाम से जाना जाता है। यह नदी पुंछ की खुबसूरती में चार चांद लगा रही है। इस नदी ने पुंछ में कभी भी पानी की कमी को महसूस नहीं होने दिया लेकिन दूसरी ओर कही-ंकहीं पर इस नदी ने लोगों का जीना दूभर कर रखा है। इसकी मिसाल है जम्मू एवं पुंछ हाइवे पर स्थित मदाना गांव का पुल है। मदाना गांव के पुल का निर्माण पूरा न होने की वजह से लोगों की जिंदगी थमी हुई है। इस पुल के निर्माण का काम 2003 में षुरू हुआ था जो आज तक पूरा नहीं हो सका है। 2014 का भी आधा साल बीत चुका है लेकिन इस पुल के निर्माण का काम अभी भी ठप्प पड़ा हुआ है। 
             
मदाना पुल हाड़ी बुढ्ढा, सेढ़ी ख्वाजा, नडि़या होरगी ठक्की, नड़ाई ढ़ोबा आदि गांवों की लाइफ लाइन है। इन गांवों के लोग आज भी पुल निर्माण के सपने देख रहे हैं कि कब इस पुल का निर्माण होगा और उन्हें राहत मिलेगी। हाड़ी बुढ्ढा के एक छात्र मोहम्मद इमरान (17 ) का कहना है कि हमारे गांव में सरकार की कुछ ऐसी योजनाएं चल रही हैं जिनकी हमें जानकारी तक नहीं है। इस दूरदराज़ इलाके में न ही कोई सड़क है और न ही षिक्षा का कोई उचित बंदोबस्त। इसकी बड़ी है अभी तक पुल का निर्माण न होना। सरकार की बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएं दूर दराज़ के इलाकों में विकास के पहिए को गति देने के लिए चल रही हैं लेकिन हाड़ी बुढ्ढा जैसे दूरदराज़ इलाके में सिर्फ पुल का निर्माण न होने की वजह से इन स्कीमों का कार्यान्यवन ठीक से नहीं हो पा रहा है। इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गांव में न तो कोई आंगनबाड़ी केन्द्र है और न ही मनरेगा के तहत लोगों को रोज़गार मिल पा रहा है। मोहम्मद इरफान आगे बताते हुए कहते हैं कि हमारे गांव में एक हाईस्कूल है जो गवर्नमेंट हाईस्कूल, हाड़ी बुढ्ढा के नाम से जाना जाता है। स्कूल में जो अध्यापक हैं उन्हें पुल न होने की वजह से रोज़ाना आने-जाने में बड़ी मुष्किल का  होती है। इसके अलावा गांव में हायर सेकेंडी न होने की वजह से यहां के छात्र-छात्राओं को  11 किलोमीटर का सफर पूरा कर लिसाना तक पैदल जाना पड़ता है। हमारे इस दूरदराज़ इलाके में लड़कियां दसवीं से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाती हैं क्योंकि आज के इस दौर में भी माता-पिता अपनी लड़कियों को दूर पढ़ने के लिए नहीं भेजते हैं। यह लड़कियां पढ़ने की इच्छा रखने के बावजूद भी आगे की पढ़ाई नहीं कर सकतीं। 
          
पुल का निर्माण न होने की वजह से इस गांव में सड़क का निर्माण का कार्य बंद पड़ा हुआ है। इसी के साथ इमरान ने यह भी बताया कि हाड़ी बुढ्ढ़ा की एक गर्भवती महिला रहमत बी की जब तबीयत बिगड़ी तो उन्हें सुरनकोट अस्पताल ले जाया गया। वह अस्पताल पहुंची भी नहीं थी कि मासूम बच्चे ने दुनिया में आने से पहले ही दम तोड़ दिया। मदाना के एकवृध्द गुलाम अकबर बेग (65) ने जानकारी दी कि इस पुल के निर्माण का काम 2003 में षुरू हुआ था। लेकिन तीन या चार महीने काम होने के बाद इस पुल को ज्यों का त्यों आधा अधूरा छोड़ दिया गया। उन्होंने यह भी बताया कि इस पुल से तकरीबन सात गांव जुड़ते हैं जिसकी कुल आबादी तकरीबन 30,000 हज़ार है। इस पुल के निर्माण के लिए जो भी समान आया था वह भी यहां से उठाकर फज़लाबाद के पुल के निर्माण में लगा दिया गया। अफसोस की बात यह है इस पुल के निर्माण का काम पांच साल बाद षुरू किया गया था जो मदाना के पुल निर्माण से पहले पूरा कर लिया गया। अगर मदाना का पुल तैयार हो जाता तो मदाना पुल से जुड़ने वाले गांवों की लड़कियां दसवीं और इससे आगे की षिक्षा हासिल कर पातीं, गांव के लोगों को षहर तक पहुंचने में कम वक्त लगता, मगर इन लोगों की ऐसी किस्मत कहां। 
          
पुल न होने की वजह से सरकार का कोई भी आला अधिकारी इस गांव तक नहीं पहुंच सकता है। ऐसे में पुल से जुड़ने वाले गांव के विकास की बात तो छोड़ ही दीजिए। जम्मू पुंछ नेषनल हाइवे से होते हुए केन्द्र और राज्य सरकार के न जाने कितने राजनेता गुज़रे होंगे मगर षायद ही किसी की निगाह इस ओर कभी गई हो या फिर वह सब कुछ जानकर भी अंजान बने हुए हैं। पुल निर्माण की मांग को लेकर हम लोगों ने 20 फरवरी, 2014 को दो घंटे के लिए इस नेषनल हाइवे को बंद कर दिया। ट्रैफिक रोककर अपनी मांग को मनवाने की कोषिष की लेकिन इससे राज्य सरकार के कान पर जूं भी नहीं रेंगी। पुल न होने की वजह से रोज़गार की तलाष में गांव से पलायन कर षहरों को जाने वाले लोगों काो आने जाने में काफी समय बर्बाद होता है। एक तरफ त¨ हमारे देश की सरकार देश में बुलेट ट्रेन लाने की तैयारी कर रहे हैं अ©र एक तरफ इसी देश का एक हिस्सा एक पुल के अभाव में तमाम बुनियादी सुविधाअ¨ं से वंचित ह¨ रहा है। बुलेट ट्रेन स्वागत य¨ग्य है परंतु निश्चित ही उससे पहले बहुत से ऐसे पहलु हैं जिन पर सरकार क¨ गंभीरता अ©र संवदेनशीलता दिखानी चाहिए। 




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---नियाज़ अहमद---
(चरखा फीचर्स)

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