विशेष आलेख : बेटियों की बलि आखिर कब तक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

विशेष आलेख : बेटियों की बलि आखिर कब तक

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हमारे देष में बेटियों के साथ भेदभाव की कहानी नई नहीं है जिसके कारण अनेक राज्यों में लिंगानुपात का अंतर बढ़ रहा है। भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं रूक नहीं पा रही है जबकि बेटियों को षिक्षा और रोज़गार सुलभ कराने में सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर बाधाएं बराबर कायम हैं। कहने को जमाना बदल चुका है लेकिन कुछ लोग आज भी पुरानी सोच के साथ जी रहे हैं। लड़कियों को आज भी समाज में बुरी नजर से देखा जाता है। इस आधुनिक दौर में भी कुछ लोग ऐसा करने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे परिवारों में अगर लड़का होता है तो पूरे घर में खुषी का माहौल छा जाता है। लेकिन लड़की पैदा हो जाए तो मातम सा छा जाता है। आखिर ऐसा क्यों? जंग का मैदान हो या खेल का मैदान या राजनीति अथवा कोई भी प्रतिस्पर्धा वाला क्षेत्र, लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। इसके बावजूद लड़कियों को परिवार या समाज में उनका अधिकार मिलना तो दूर उन्हें जन्म से पहले ही मां के गर्भ में खत्म कर देने का घिनौना पाप जारी है। इसके अलावा अगर लड़की जन्म ले भी लेती है तो उसकी भावनाओं का हर पल गला घोटा जाता है। हमारे देश में आज भी ऐसे कई परिवार हैं जहां लड़कियां अपनी इच्छा के कपड़े भी नहीं पहन सकतीं। इसके अलावा कुछ परिवारों में लड़की को नाना-नानी और दूसरे रिष्तेदारों के यहां भी जाने की इजाजत नहीं क्योंकि माता-पिता को हमेषा इस बात का डर रहता है कि यदि उनकी बेटी बाहर निकली तो उसके साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए। ऐसी बातें सुनते-सुनते लड़कियां स्वयं भी घर से बाहर जाने से डरने लगी हैं। इसके पीछे बहुत से कारण है क्योंकि घर के साथ-साथ समाज में महिलाओं के साथ छेड़-छाड़ की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। 
          
स्त्री-पुरूश के अनुपात में लगातार हो रही कमी के चलते जम्मू एवं कष्मीर सरकार ने एक नई पाॅलिसी षुरू की है। इस पाॅलिसी के तहत हर नवजात बालिका को 14 वर्श तक प्रतिमाह 1000 रूपये दिए जाएंगे। राज्य के वित्तमंत्री डाक्टर हसीब दराबू ने इस पाॅलिसी का एलान करते हुए कहा कि-‘‘ इस तरह 21 साल की आयु तक पहुंचने तक प्रत्येक नवजात बालिका को 6.5 लाख रूप्ये प्राप्त होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इस योजना को सरकार प्रतिकूल लिंग अनुपात वाले छह जि़लों में एक पायलट प्रोजैक्ट के तौर पर भी षुरू कर सकती है। हर साल राज्य में तकरीबन एक लाख बालिकाएं जन्म लेती हैं। अगर हम एक तिहाई आबादी की बात करतें तो इस तरह छह जि़लों में तकरीबन 35 हज़ार बालिकाएं होंगी और इन पर तकरीबन 35 करोड़ रूपये से ज़्यादा का खर्च आएगा।’’ 2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू एवं कष्मीर में लिंग अनुपात घटकर 889 रह गया था। इसमें सबसे ज़्यादा चैकाने वाली बात यह है की 6-10 की उम्र के बच्चों के लिंगानुपात में तेज़ी से गिरावट आ रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार राश्ट्रीय स्तर पर जहां एक हजार पुरूशों के मुकाबले 940 महिलाएं हैं वहीं 2001 की जनगणना के अनुसार यह संख्या 922 थी। सरकार लिंगानुपात में कमी लाने के लिए नई-नई नीतियां बना रही है। तमाम प्रयासों के बावजूद भी लिंगानुपात का अंतर बढ़ता जा रहा है। 
           
खतरे की घंटी बज चुकी है, इससे पहले की खतरा सिर पर आ जाए हमें इसके लिए जरूरी कदम उठाने होंगे। सोनोग्राफी के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सरकार की ओर से बहुत सारे कदम उठाए गए हैं। बावजूद इसके इस तकनीक का गलत इस्तेमाल आज भी जारी है। कुछ डाक्टर थोड़े से पैसे के लालच में इस घिनौने अपराध में षामिल हो जाते हैं और इसका खामियाज़ा उस बच्ची को भुगतना पड़ता है जिसने अभी दुनिया में जन्म ही नहीं लिया। जो लोग समाज और इंसानियत के कातिल हैं और जिन लोगों ने लड़कियों के कत्ल को अपना पेषा बना लिया है, उनके खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। लोगों को भी चाहिए कि वह मिलकर रोषनी की एक नई षमा जलाएं और समाज को रूढि़वादी सोच से निकालकर बुलंदी की ओर ले जाएं। हमें गंभीरता से सोचना होगा कि यदि हम घर में खुशियां चाहते हैं तो केवल लक्ष्मी की पूजा से यह संभव नहीं है। हमें बेटियों के जीवन और उसकी महत्ता को समझना होगा। वंश की चाहत में अंधे समाज को समझना होगा कि बेटी को जि़दगी दिये बिना बेटे के जन्म का सपना हकीकत में नहीं बदल सकता। इस महत्ता को जितनी जल्दी समझा जायेगा भविष्य को उतना ही बेहतर बनाया जा सकेगा।
           
लड़कियों के पैदा होने पर खुष न होने की एक बड़ी वजह यह भी होती है कि अक्सर माता-पिता सोचते हैं कि गरीबी में हमारा जिंदगी गुजरना मुष्किल हो रहा है। ऐसे में इसके बड़े होने पर हम इसकी षादी कैसे करेंगे। इसके विपरीत बेटे के प्रति अक्सर माता-पिता की सोच होती है कि यह पढ़ लिखकर हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा। यही वजह है बेटों के मुकाबलेे बेटियों से भेदभाव होता है। हमें अपनी इस सोच को बदलना होगा। 
        
गर्भावस्था के दौरान ही बहुत से लोग यह पता करने की कोषिष करते हैं कि मां जिस बच्चे को जन्म देने वाली है वह लड़का है या लड़की। अगर वह लड़की होती है तो दुनिया में आने से पहले ही मां के गर्भ में खत्म कर दिया जाता है। यही वजह है कि देष में स्त्री-पुरूश अनुपात घट रहा है। हालांकि इसमें कमी अवश्य आई है। परंतु इसे अधिक संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता है। इसके लिए अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। इसके लिए राज्य सरकारों, केन्द्र सरकार और गैर सरकारी संगठनो को एक मंच पर आकर साथ काम करना होगा। भारतीय दंड संहिता की धारा 315 एवं 316 के अनुसार जन्म से पहले व जन्म के बाद कन्या षिषू  हत्या कानूनी अपराध है। लिंग चयन का मूल कारण पुरूष-प्रधान समाज में महिलाओं और लड़कियों की निम्न स्थिति है जो लड़कियों के साथ भेदभाव करता है। पुत्र को महत्व देने की संस्कृति के चलते लिंग निर्धारण के लिए अल्ट्रासाउंड तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जिसके बाद प्रायः कन्या भ्रूण की हत्या कर दी जाती है। लिंग चयन दहेज प्रथा का समाधान नहीं है। दहेज प्रथा तब तक कायम रहेगी जब तक लोग बेटियों को भार समझते रहेंगे। इसके लिए आवश्यक है कि समाज में महिलाओं को दोयम स्थिति से निकालकर बराबरी का दर्जा दिया जाए। लड़कियों को संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिले तो दहेज की मांग रूकने के साथ उन्हें बराबरी का दर्जा भी मिलेगा। इससे लोग बेटियों को बोझ नहीं समझेंगे जिससे कन्या भ्रूण हत्या पर भी लगाम लग सकेगी। राज्य सरकारों, केंद्र सरकार, तमाम सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के लाख प्रयासों के बावजूद कन्या भ्रूण-हत्या के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। दुर्भाग्य से शिक्षित और संपन्न तबके में यह कुरीति ज्यादा है। गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के अन्तर्गत, गर्भाधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण-हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, इसके लिए सहयोग देना व विज्ञापन करना कानूनी अपराध है, जिसमें 3 से 5 वर्ष तक की जेल व 10 हजार से 1 लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है। इस कानून के तहत लिंग जांच करवाने वाले व करने वाले दोनों ही दोशी होते हैं। कानून के अनुसार लिंग जांच करने वाले चिकित्सक का पंजीयन हमेषा के लिए रद्द हो सकता है। बावजूद इसके कन्या भ्रूण-हत्या के मामलों में लगातार इजाफा होता जा रहा है। कन्या भ्रूण-हत्या के बढ़ते मामलों की वजह से स्त्री-पुरूश लिंगानुपात में कमी हो रही है और यह समाज के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है। 
            
बेटी बचाओ अभियान जो आज पूरे देष में चलाया जा रहा है इसका श्रेय वास्तव में मध्य प्रदेष के मुख्यमंत्री षिव राज सिंह चैहान को जाता है जिसने 1 अक्टूबर 2007 को इस योजना की षुरूआत की थी। मोदी सरकार का दावा है कि वह महिला एवं बाल विकास पर सरकार विषेश ध्यान दे रही है। इसके साथ ही कई षहरों में महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने की योजना पर 150 करोड़ रूपये खर्च करने का प्रावधान बजट में किया गया है। यह योजना गृह मंत्रालय द्वारा संचालित की जाएगी। इस योजना को राश्ट्रीय स्तर सराहना मिली। इसके स्वरूप को केंद्र सरकार ने स्वीकारते हुए मोदी सरकार ने इस बार के आम बजट में महिलाओं एवं बालिकाओं को हर क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए नई योजनाओं को षामिल किया है उसमें ‘‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’’ योजना भी षामिल है।  सरकार के साथ साथ हमारी भी जि़म्मेदारी है और समय की मांग भी कि हम बच्चियों और महिलाओं  के लिए एक ऐसा वातावरण तैयार किया जाये जहां नारी के अधिकारों का हनन करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए।  






नाजि़या सुल्ताना
(चरखा फीचर्स)

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