ऑस्कर वाइल्ड कहते थे कि दुनिया में चर्चित होने से भी बुरी चीज चर्चित न होना है। शेयर बाजार में निवेश करना अच्छा है बुरा देखने वाले का चश्मा इसका आकलन अपने तरीके से करता रहा है। हालांकि सेंसेक्स चर्चा में जरूर रहता है। चर्चा में हिस्सा लेने वाले शहरी कबीलों के काबिल योद्धाओं की संख्या भले ही सीमित हो लेकिन सेंसेक्स के प्रति इनका समर्पण, दीवानापन और उम्मीद का कोई सानी नहीं है। हर दिन रोमांच से भरपूर सतरंगी सूचकांक का सफर करने वाले खिलाडियों के हाथ लगता है कभी आशा कभी निराशा, कभी घाटा तो कभी मुनाफ़ा। लेकिन एक चीज कभी साथ नहीं छोड़ता है वह है अफसोस। पेश अफसोस का सतरंगी सूचकांक।
प्रथम रंग, शेयर बाजार में जब एक निवेशक या ट्रेडर पैदा होता है तो उसे लगता है की रोमांच से भरे इस दुनिया में मेरा प्रादुर्भाव पहले ही हो जाना चाहिए था। उसे इस बात का अफसोस होता है की हमने कमाई के अनगिनत मौकों को शायद गवां दिया है। दूसरा रंग, बाजार में आगमन के साथ ही अगर कोई शेयर खरीदा और दाम बढ़ गया तो उसे इस बात का अफ़सोस होता है कि हमने ज्यादा शेयर क्यों नहीं खरीदा। अगर ज्यादा शेयर खरीदा होता तो मोटी कमाई हो सकती थी। तीसरा रंग, कोई शेयर खरीदा और भाव घट गया तो अफ़सोस इस बात का होता है कि हमने इस शेयर को खरीदा ही क्यों। इसे और नीचे के स्तर पर खरीदना चाहिए था या इसके बदले कोई और शेयर खरीदना चाहिए था। चतुर्थ रंग, किसी शेयर को खरीदने का मन बनाकर नहीं खरीदता है और इसका भाव बढ़ जाता है फिर इस बात का अफ़सोस होता है कि हमने इसको खरीदा क्यों नहीं, खरीद लेना चाहिए था। एक अच्छा मौका हाथ से निकल गया आज। शायद ही इतना अच्छा दूसरा मौका मिले। पंचम रंग, कोई शेयर बेचा और भाव बढ़ गया तो इस बात का अफ़सोस होता है कि हमने क्यों बेच दिया। बेचने के लिए और भाव बढ़ने का इंतजार करना चाहिए था। छठा रंग, कम संख्या में शेयर बेचा और भाव घट गया तो इस बात का अफ़सोस होता है कि हमे और ज्यादा या फिर पूरी होल्डिंग बेच देना चाहिए था। ऐसा ना कर मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। सप्तम रंग, आखिरकार इस बात का अफ़सोस होता है कि हम शेयर बाजार में आये ही क्यों।
लेकिन इन सब के अलावा राकेश झुनझुनवाला इस बात के उदहारण है जिन्होंने शेयर बाजार में कमाई कर आज अकूत सम्पति के मालिक है।
---राजीव सिंह---
Email – rajivr.singh@yahoo.co.in
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