बिहार : उम्मीद है कोई सहायक बनकर दोनों की समस्या हल कर सके। - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 2 जनवरी 2016

बिहार : उम्मीद है कोई सहायक बनकर दोनों की समस्या हल कर सके।

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पटना। उत्तरी मैनपुरा ग्राम पंचायत में सुमन कुमारी और पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत में जुसी कुमारी रहती हैं। आंखों से सुमन कुमारी नहीं देख सकती और कमर से नीचे से शरीर का उपयोग जुसी कुमारी नहीं कर सकती हैं। वर्ष 2015 में कोई मसीहा रूपी दाता नहीं आए जो एल.सी.टी.घाट में रहने वाली सुमन कुमारी और मखदुमपुर में रहने वाली जुसी कुमारी को सहायता कर सके। अब वर्ष 2016 में उम्मीद है जो कोई सहायक बनकर दोनों की समस्या हल कर सके।

एल.सी.टी.घाट में  अर्जुन मांझी और गीता देवी की बेटी सुमन कुमारी हैं। जो बीमारी के बाद आंख से देख नहीं सकती हैं। गरीबता के कारण सुमन कुमारी का इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। अब तो सुमन कुमारी के पिताश्री अर्जुन मांझी भी बीमार है। चलना और फिरना बंद हो गया है। ऐसा लग रहा है कि नस में खामियां आ जाने के कारण शरीर में दर्द होने लगता है। केवल सुमन कुमारी की मां रीता देवी कागज आदि चुनकर परिवार को खाना खिलाने में सफल हो रही हैं। एनजीओ और सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। पटना जिले के जिलाधिकारी से आग्रह है कि सुमना कुमारी का इलाज करवाएं।

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जुसी की मां लीला देवी कहती हैं कि बड़ी बेटी जुसी कुमारी बीमार है। अभी 24 साल की हैं। जुसी का जन्म दशहरा त्योहार के समय 1991 में हुआ था। बोरिंग रोड स्थित चिल्ड्रेन पार्क के बगल में सी0एन0एस0 हॉस्पिटल है। वहीं पर नर्सिग करती थीं। अभी 6 माह ही नर्सिग की थीं। वह 18 वर्ष की अवस्था में 2009 में बीमार पड़ी। जब 19 साल की थीं। तब 2010 में पैर में दर्द हुआ। इससे बढ़कर कमर,रीढ़,बांह और अंगुली तक पहुँच गया। दुर्भाग्य से 2010 से ही जुसी कुमारी खड़ी नहीं हो सकीं। लोहानीपुर स्थित आयुर्वेदिक अस्पताल में 6 माह भर्ती होकर चिकित्सा करायी। यहाँ पर ठीक नहीं होने पर पी0एम0सी0एच0 में 5 माह भर्ती करके चिकित्सा करायी। चिकित्सक कहते कि जुसी को गठिया हो गया है। इस बीच ठेंहुना जकड़ गया। पैर पसार नहीं सकती हैं। चलना-फिरना दुस्वाह हो गया है। पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत की मुखिया ने जुसी कुमारी को विकलांगता प्रमाण-पत्र और सामाजिक सुरक्षा पेंशन दिलवाने की व्यवस्था कर दी है। 

लगभग अपाहिज बन गयीं जुसी कुमारी का कहना है कि बचपन से ही अपने पैर पर खड़ी होकर नौकरी करना चाहती थीं। जब ऐसी अवस्था में आ गयी हूँ। तब भी हिम्मत नहीं हारी हूँ। कोई व्हीलचेयर दिलवा दें। व्हीलचेयर चलाकर नौकरी की अभिलाषा को पूर्ण कर लूंगी। कोई मुझको चलने लायक बना दें। वह किसी मसीहा की तलाश कर रही हैं जो 10 लाख रू0व्यय करके गतिमान कर दें। उसकी माँ लीला देवी कहती हैं कि कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल द्वारा 3 लाख रू0 की माँग की जा रही थी। प्रत्येक दिन 5 हजार रू0 खर्च करने के बाद चलने लायक बना देते। हड्डी प्रतिस्थापन कर देते। अर्थाभाव के कारण नहीं हो सका।

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