दुमका (मनोज केशरी) दुमका जिले के मसलिया प्रखंड के नुनबिल नदी के तट पर मकर संक्रांति के बाद लगता है अनोखा मेला, जहाँ इस मेला में आने बाले श्रद्धालु नमक से माता नुनबिल की पूजा करते है। पहाड़िया जनजाति के द्वारा शुरु किया गया यह मेला लोगों के आकर्षण का केंद्र रहता है। नुनबिल मेला का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है। 8 दिनों तक चलने वाले इस मेले में दूर दराज से लोग यहाँ पहुचते है, जहाँ मेले में मनोरंजन और खाने का खास इन्तजाम किया जाता है। नुनबिल नदी के तट पर लगने बाले इस मेले के इतिहास के संबंध में पुरानी मान्यता यह है कि नमक के कुछ व्यापारी नमक से भरे बैलगाड़ी ले कर नुनबिल नदी से गुजर रहे थे। अँधेरा घिर जाने के कारण इसी जगह पर व्यापारियों ने पड़ाव डाला। देर रात एक बूढी जिसका शरीर घावों से भरा था ने व्यापारियों से खाना माँगा, लेकिन व्यापारियों से उसे दुत्कार ही मिली। उसी में से एक दयालु व्यापारी ने उसे थोड़ा नमक और बतासा खाने को दिया। उस बूढी ने उस दयालु व्यापारी को अबिलंब वहां से चले जाने को कहा। उसके जाते ही वहां भीषण तूफान आ गया। अचानक भीषण तूफान से सारे व्यापारी घिर गये। देखते ही देखते व्यापारियों के विश्राम का स्थल दल दल में परिणत हो गया। उसी रात धोबना गाँव के फुकाई पुजहर को एक सपना आया की मकर संक्रांति के दिन उक्त स्थान पर बेदी की स्थापना कर नमक और बताशा से पूजा करो तभी से फुकाई पहाड़ियां के बंशज यहाँ पूजा कराते आ रहे है। प्रतिवर्ष इसी उपलक्ष्य में नुनबिल नदी में पूजा-अर्चना की जाती है और नमक व बतासे की अत्यधिक बिक्री होती है। लोग नमक व बतासे चढ़ाकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। यह मेला आज भी पूर्ववत जारी है।
रविवार, 15 जनवरी 2017
नुनबिलः यहां देवी को लगता है नमक और बताशे का भोग
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