विशेष : बुनकरों का उत्थान ही स्मृति ईरानी का एजेंडा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 28 मार्च 2017

विशेष : बुनकरों का उत्थान ही स्मृति ईरानी का एजेंडा

हाल के दिनों में जिस तरह केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी बुनकरों की दिनहीन दिशा व दशा सुधारने के लिए कल्याणकरी योजनाएं चला रखी है, उससे साफ झलकता है कि वह बुनकरों के उत्थान के लिए संकल्पित है। वह चाहती है कि जो बुनकर अपनी हाड़तोड़ मेहनत के बूते सात समुन्दर पार भारतीय हस्तकला का जलवा बिखेर रहा है उसकी दैनिक जीवन चर्या भी बदले। बुनकरों के बच्चे भी पढ़ लिखकर समाज की मुख्यधारा से जुड़े। प्रस्तुत है सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी की स्मृति इरानी से बातचीत पर आधारित एक विस्तृत रिपोर्ट 

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बुनकर भारतीय ‘हस्तकला‘ की शान है, से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यह भी सच है कि बुनकर के इस हाड़तोड़ मेहनत का ईनाम उसे नहीं मिल पाता। उसके हिस्से में सिर्फ और सिर्फ मुफलिसी ही हाथ लगती है। मेहनत का वाजिब दाम न मिल पाना एक बड़ा संकट तो है ही, उसके परिवार की भी दिनहीन दशा में सुधार नहीं हो पाया है। इसके लिए कोई और नहीं बल्कि सरकारें ही जिम्मेदार है। इन्हीं संकटों से बुनकरों को उबारने की मंसूबा पाले केन्द्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने न सिर्फ कई योजनाएं चला रखी है, बल्कि उनके लिए रोजगार के साधन भी मुहैया करा रही है। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के तत्वाधान में प्रगति मैदान, नयी दिल्ली में आयोजित चार दिवसीय ‘इंडिया कारपेट एक्सपो-2017- के उद्घाटन मौके पर स्मृति जुबिन ईरानी का बुनकरों के प्रति प्रेम उस वक्त और छलछला उठा जब वह उनके हुनर को चार सौ से अधिक कारपेट स्टालों पर देखा। बलबूटेदार रंग बिरंगी आकर्षक डिजाइन वाली कालीनों को देख उनके मुंह से बरबस ही निकल पड़ा, ‘अब दिखा भारतीय संस्कृति और हस्तकला का नमूना। इस दौरान सीइपीसी चेयरमैन महाबीर प्रताप शर्मा, प्रथम उपाध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह एवं सीनियर प्रशासनिक सदस्य उमेश गुप्ता ने स्मृति इरानी को एक्स्पो में लगे आकर्षक कालीनों के बारे में विस्तार से बताया। सबकुछ जानने के बाद उन्होंने साफ तौर पर कहा, पहली अप्रैल से कालीन उद्योग, हैंडलूम को बढ़ावा देने के लिए सरकार विशेष पैकेज देने वाली है। 


खासकर बुनकरों को ऋण मुहैया कराने के लिए नाबार्ड में कारपेट इंडस्ट्री को भी एक इकाई की तरह जोड़ा गया है ताकि उन गरीब बुनकरों को ऋण मुहैया कराया जा सके, जो कालीन व हैन्डलूम की बुनाई करते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार बुनकरों व मजदूरों के हितों को ध्यान में रखकर कई योजनाएं लागू की है। जिसमें उनके शिक्षा व रोजगार पर विशेष ख्याल रखा है। क्योंकि जब बुनकर व मजदूर विकास करेगा तभी हस्तकला भी विकसित होगी। ऐसे में जरुरी है कि उद्यमी भारतीय परंपराओं को भी अपने साथ जोड़े रखें। यह तभी संभव है जब उद्यमी व बुनकर का आपसी सामंजस्य बना रहे। इसके लिए सीइपीसी का प्रयास सराहनीय है। क्योंकि कारपेट एक्स्पोंएक ऐसा माध्यम है जो भारतीय बुनकरों की कला को पूरी दुनियां में पहुंचने का अवसर उपलब्ध कराती है। साथ ही एक ही मंच पर कालीन उद्यमियों को अच्छा कारोबार मिल जाता है। उन्होंने ऐलान किया कि बुनकर जहां भी लूम लगाना चाहते हैं, उन्हें औजार एवं उपकरण का 90 फीसदी भुगतान सरकार करेगी।

बुनकर समुदाय के लोगों और उनके बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार आगामी एक अप्रैल से एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू करने जा रही है जिसके तहत अनुसूचित जाति, जनजाति, बीपीएल, ओबीसी, महिला एवं दिव्यांग लोगों की शिक्षा पर आने वाला 75 प्रतिशत खर्च केंद्र सरकार उठाएगी। इसके लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) और राष्ट्रीय दूरस्थ शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) के साथ हथकरघा विकास आयुक्त ने दो सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं। एक अप्रैल से पावरलूम सेक्टर के लिए भी सरकार एक विशेष पैकेज की घोषणा करने वाली है। बुनकरों को ऋण मुहैया कराने के लिए नाबार्ड में हैंडलूम को भी एक इकाई की तरह जोड़ा गया है ताकि बुनकरों को ऋण उपलब्ध कराया जा सके। बुनकरों को उनकी पसंद के अनुसार लूम मुहैया कराने के लिए भी सरकार हथकरघा संवर्धन सहयोग योजना पर काम कर रही है जिसके तहत बुनकर को केवल दस फीसदी का निवेश करना होगा और लूम पर आने वाला बाकी 90 फीसदी खर्च सरकार वहन करेगी। 

इसके अलावा स्मृति ईरानी ने खुद लोगों से ज्यादा खादी और हैंडलूम इस्तेमाल करने की अपील की है। स्मृति ईरानी ने खुद ट्विटर पर अपनी एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, ‘मैं भारतीय बुनकरों का समर्थन करती हूं। उनका मानना है कि भारतीय हाथकरगा भारत की संस्कृति और विरासत की पहचान हैं। अपनी परंपराओं को आगे ले जाने के लिए जरुरी है कि लोग बुनकरों के हाथ से बनी उत्पाद को पहने। उनके मुताबिक देश में तकरीबन 43 लाख बुनकर है और मेहनत से ही उनके परिवारों का भरण-पोषण होता है। इसलिए बुनकरों के हाथ से बनी उत्पादों का हम जितना इस्तेमाल करेंगे, उससे हम उनका समर्थन करेंगे। हालांकि उनके परिवार के महिला बुनकरों के उत्थान के लिये भी ईरानी ने कई योजनाएं चला रखी है। जिसमे मशीनों और जरूरी उपकरणों के लिए नब्बे प्रतिशत तक का सब्सिडी देने का प्रावधान है। उनका मानना है कि उनकी मदद से महिलायें आत्म निर्भर बन सकती हैं। जहां तक बुनकर परिवारों के शिक्षा का सवाल है तो यह सही है कि बुनकर परिवारों के करीब 30 प्रतिशत बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं और इनमें से मात्र 1 प्रतिशत बच्चे ही ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर पाते हैं। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि कपड़ा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला डेवलपमेंट कमीश्नर फॉर हैंडलूम विभाग ने इग्नू और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग के साथ बुनकरों के बच्चों को ओपन स्कूल और डिस्टेंस लर्निंग एजुकेशन के जरिए शिक्षा प्रदान करने के लिए 7 अगस्त 2016 को दो अलग-अलग एमओयू साइन किए हैं। केन्द्र सरकार एक अप्रैल से योजना शुरु करने जा रही है जिसके तहत अनुसूचित जाति-जनजाति बीपीएल ओबीसी महिलाए एवं दिव्यांग लोगों की शिक्षा पर आने वाला 75 प्रतिशत खर्च केन्द्र सरकार उठायेगी। इग्नू स्कूल बाद की शिक्षा प्रदान करता है जबकि एनआइओएस सेकेंडरी और सीनियर सेकेंडरी स्तर की पढ़ाई करवाता है। इसके अलावा इस एमओयू के जरिए आगे चलकर बुनकरों के बच्चों के करियर संबंधी कोर्स भी मुहैया कराए जाएंगे। 



केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बुनकरों के बच्चे जो इसकी योग्यता के मानदंडों को पूरा करते हैं इन शिक्षण संस्थानों से शिक्षा प्राप्त कर पाएंगे। इसके अलावा इग्नू ने दो एकेडमिक प्रोग्राम- बैचलर प्रीपेटरी प्रोग्राम और कंप्यूटर लिट्रसी प्रोग्राम शुरु किए है। इन कार्यक्रमों में अब तक बुनकर परिवार से जुड़े 6175 छात्र रजिस्टर करवा चुके है। एनआईओएस को खास बुनकर परिवारों के बच्चों के लिए स्पेशल कोर्स शुरु करने के लिए 10 लाख रुपये आवंटित किए जा चुके हैं। इसके अलावा बुनकरों की गणना भी अलग से कराई जाएगी। उनका कहना है कि देश के हरेक नागरिक की जानकारी प्राप्त करना हमारे लिए बहुत जरूरी है। बुनकरों की अलग से गणना कराकर प्रधानमंत्री जन-धन योजना, सुरक्षा बीमा योजना और मुद्रा योजना सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सीधा उन तक पहुंचाया जा सकेगा। वह चाहती है कि बुनकरों को हाईटेक बनाने के साथ-साथ सरकारी सुविधाओं को सीधे उनतक पहुंचाया जा सके। इसीलिए बुनकरों के लिए पहली बार हेल्पलाइन बनाने का निर्देश दिया गया है ताकि उनकी समस्याओं और जरूरतों को समझा जा सके। 




--सुरेश गांधी--

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