महज ढाई दिन का बाढ़ लाने वाली बागमती पर तटबंध निर्माण गैरजरूरी: दिनेश कुमार मिश्र - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 29 मार्च 2017

महज ढाई दिन का बाढ़ लाने वाली बागमती पर तटबंध निर्माण गैरजरूरी: दिनेश कुमार मिश्र

बागमती तटबंध निर्माण पर आयोजित जनसुनवाई में जल विशेषज्ञों ने कहा - जब 60 वर्षों में तटबंध नहीं बने, तो छः महीने में तटबंध बनाने की सरकार को हड़बड़ी क्या है? जनुसनवाई की जूरी ने कहा - बागमती तटबंध पर अविलंब रोक लगे, परियोजना की समीक्षा के लिए रिव्यू कमिटी का गठन किया जाए और यदि ऐसा नहीं होता तो जनता करेगी जनसमीक्षा समिति का गठन. नदी व जल विशेषज्ञों के अलावा पीड़ितों ने रखी अपनी व्यथा. वास-चास-जमीन बचाओ-बागमती बचाओ संघर्ष मोर्चा ने किया था जनसुनवाई का आयोजन 10 मई को मुजफ्फरपुर के बेनीबाद में महापंचायत आयोजित करने का फैसला. 



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पटना 29 मार्च, बागमती तटबंध पर रोक लगाने व परियोजना की समीक्षा के लिए रिव्यू कमिटी का गठन करने के सवाल पर चल रहे आंदोलन के सिलसिले में आज पटना के आइएमए हाॅल में चास-वास-जमीन बचाओ - बागमती संघर्ष मोर्चा द्वारा आयोजित जनसुनवाई में प्रसिद्ध नदी विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र, एनआईटी के पूर्व प्रोफेसर संतोष कुमार, जल ऐक्टिविस्ट रंजीव कुमार, एएनसिन्हा इंस्ट्ीच्यूट के पूर्व निदेश डीएम दिवाकर, नीलय उपाध्याय, नारायण जी चैधरी, अनिल प्रकाश इंजीनियर पीएस महाराज सहित कई पत्रकारों, मोर्चा के संयोजक जितेन्द्र यादव, खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा व अन्य आंदोलनकारियों, तटबंध से प्रभावित जनता और माले के राज्य सचिव कुणाल, मीना तिवारी, सरोज चैबे, भोजन अधिकार आंदोलन के रूपेश, एनएपीएम के महेन्द्र यादव सहित कई लोगों ने हिस्सा लिया. जनसुनवाई में पीड़ितों की राय जानने के बाद नदी विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र ने कहा कि जो नदी महज ढाई दिन का बाढ़ लाती है और जानवर के खूंटे तक भी नहीं पहुंचती, उसके तटबंधों को बांधने की क्या जरूरत है? कोई भी योजना 50-60 वर्षों के लिए बनती है, लेकिन बागमती पर तटबंध निर्माण का काम ऐसा काम है, जो इतने वर्षों से चल ही रहा है. जाहिर है कि इसकी आज कोई भी जरूरत नहीं है. यदि तटबंध का पानी टूटेगा, तो बाहर के गांव प्रभावित होंगे और यदि ऐसा नहीं होगा तो तटबंध के दायरेे में पड़ने वाले 120 से अधिक गांव तबाह और बर्बाद होते रहेंगे. इसलिए इस योजना को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है और इसलिए तटबंध निर्माण का काम अविलंब रूकना चाहिए. 

प्रो. संतोष कुमार ने जनसुनवाई में कहा कि यदि फायदा से नुकसान ज्यादा हो रहा है, तो बागमती पर तटबंध बनाना पूरी तरह गलत है.. दरअसल, बिहार सरकार के पास जल प्रबंधन का कोई उपाय नहीं है, वह पानी को बेकार बहा रही है और तटबंध बनाकर शिल्ट जमा कर रही है. उन्होंने कहा कि ये बेहद महत्वपूर्ण है कि बागमती के सवाल पर पिछले कई दिनों से आंदेालन चल रहा है. यदि महिलायें इस आंदेालन की कमान थाम लें और आगे आयें तो निश्चित रूप से सरकार को पीछे हटना पड़ेगा. डीएम दिवाकर ने कहा कि जो सरकार चंपारण सत्याग्रह का आयोजन मना रही है, वह जनता की मांग सुनने तक को तैयार नहीं है. यह बेहद शर्मनाक है. परियोजना की समीक्षा के लिए रिव्यू कमिटी गठित करने की न्यूनतम मांग भी सरकार सुन नहीं रही है. उन्होंने यह भी कहा कि यदि रिव्यू कमिटी का गठन हो भी तो उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता है, इसलिए जनपक्षीय समिति गठन करने की लड़ाई लड़नी चाहिए. निलय उपाध्याय ने जनसुनवाई में कहा कि नदियों की गोद में बसे लोग ही असली इंजीनियर है, इसलिए उनके सवालों की उपेक्षा करके विकास की बात बेमानी है. सरकार कैसा विकास कर रही है, कि उसमें आम लोग की कोई बात ही नहीं सुनी जा रही है. वाटर ऐक्टिविस्ट रंजीव कुमार ने कहा कि फरक्का पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली नीतीश सरकार 60 वर्ष पुरानी परियोजना को क्यों चला रही है? यह और कुछ नहीं जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने का तरीका और जनता को विकास के नाम पर धोखा देना है. अनिल प्रकाश ने कहा कि बिहार सरकार वार्ता करके भी इस मसले पर लगातार धोखा दे रही है और विश्वासघात कर रही है. इंजीनियर पीएस महाराज ने कहा कि आजादी के पहले हमारे यहां की नदियां आजाद थी लेकिन विकास के नाम पर तटबंध बनाकर उसकी अविरलता को नष्ट कर दिया गया. इससे न तो बाढ़ आना रूका, न ही लोगों की भलाई हुई. बल्कि आम जनता के लिए तबाही का कारण बन गया है. खेग्रामस महासचिव धीरेन्द्र झा ने कहा नदियां हमारी है, ठेकेदारों अथवा सरकार की नहीं. सरकार लूटपंथ को बढ़ावा देने के लिए नदियों को नष्ट कर रही है.


इसके पूर्व मोर्चा के संयोजक जितेन्द्र यादव ने आयोजित जनसुनवाई में आधार पत्र प्रस्तुत किया, जिसम पर मनोज कुमार यादव, राम सज्जन राय, संजीव कुमार, नवल किशोर सिंह, जगरनाथ पासवान, मोनाजिर हसल, रंजीत कुमार सिंह, दिनेश कुमार सहनी, प्रणव कुमार, डाॅ. राजीव, नीलू सिंह, संजय सिसोदिया ने जनसुनवाई में अपने विचार रखे. जनसुनवाई का संचालन एआईपीएफ के संयोजक संतोष सहर ने किया. 

जनसुनवाई की जूरी का फैसला
1. बागमती तटबंध के निर्माण पर अविलंब रोक लगायी जाए, परियोजना की समीक्षा के लिए 1 महीने के भीतर रिव्यू कमिटी का गठन किया जाए और यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो हम जनता की ओर से जन समीक्षा समिति का गठन करेंगे.
2. सीतामढ़ी-शिवहर-समस्तीपुर-दरभंगा सहित जिन इलाकों में तटबंध बन गये हैं, उस इलाके की भी वृहत्त समीक्षा हो और तटबंधों से विस्थापित हुए परिवारों को मुआवजा व पुनर्वास दिया जाए.
3. तटबंधों के भीतर जमीन की उर्वरापन और उत्पादन में आई कमी के मद्देनजर किसानों को मुआवजा दिया जाएत्र यह काम चुनिन्दा किसानों को शामिल करके किया जाए. कृषि पद्धति में आए परिवर्तन का अध्ययन हो.
4. बागमती-अधवारा नदी समूहों का अद्यतन अध्ययन करने के लिए कमिटी गठित की जाए और सिंचाई की परियोजना को लेकर वैकल्पिक नीतियों का विकास किया जाए.
5. समस्या पानी का नहीं, बालू व शिल्ट की है. इसका उपाय किया जाए.
6. जितेन्द्र यादव सहित चास-वास-जीवन बचाओ - बागमती संघर्ष मोर्चा के सभी आंदोलनकारियों पर से पफर्जी मुकदमा वापस लिया जाए.

10 मई को महापंचायत लगान को आह्वान
सरकार अगर तत्काल तटबंध निर्माण का काम रोकने का आदेश नहीं जारी करती है, रिव्यू कमिटी गठित नहीं करती है तो 10 मई को किसान-मजदूर की जनपंचायत बेनीबाद में आयोजित की जाएगी.

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