अम्बेडकर के तीन से चार हज़ार पृष्ठ अभी तक अप्रकाशित - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

अम्बेडकर के तीन से चार हज़ार पृष्ठ अभी तक अप्रकाशित

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नयी दिल्ली 13 अप्रैल, भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर के साहित्य के करीब पंद्रह हज़ार पृष्ठ अब तक प्रकाशित हो चुके हैं लेकिन अब भी उनके तीन से चार हज़ार पृष्ठ न तो प्रकाशित हुए हैं और न ही कहीं संग्रहीत हुए हैं। इन पन्नो के प्रकाशन से अंबेडकर के जीवन दर्शन के बारे में देश को नयी जानकारी मिल सकेगी। यह कहना है राज्यसभा के पूर्व मनोनीत सदस्य एवं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री तथा दलित चिन्तक प्रो.भालचंद्र मुंगेकर का जिन्होंने बाबा साहब की श्रेष्ठ रचनाओं का एक संचयन सम्पादित किया है जिसका कई भाषाओं में अनुवाद होगा ताकि देश भर के लोग उनके विचारों से अवगत हो सके। श्री मुंगेकर ने बाबा साहब की रचनाओं के पंद्रह हज़ार पेजाें में से 436 पेजों का यह संचयन अंग्रेजी में निकाला है। रूपा पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित इस संचयन में 14 अध्याय हैं और यह पहला संचयन है। मुम्बई विश्विद्यालय के कुलपति रह चुके श्री मुंगेकर ने यूनीवार्ता को अम्बेडकर जयन्ती के मौके पर एक भेंटवार्ता में कहा कि सरकार अम्बेडकर की 125 वीं जयन्ती मना रही है उसे इन अप्रकाशित एवं असंग्रहित पेजों को जनता के सामने लाना चाहिए । उन्होंने कहा कि अंबेडकर के विचार बड़े क्रांतिकारी थे और वे समाज और राजनीति के ढांचे को बदलना चाहते थे। उन्होंने इस संचयन में 1947-48 में ही कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह पूंजीपतियों से चंदे लेती है। बाबा साहब का मानना था कि अगर राजनीतिक दल चुनाव के लिए इसी तरह चंदा लेंगे तो वे जनता का भला कैसे करेंगे लेकिन आज तो कार्पोरेट द्वारा चंदे की सीमा को ही हटाया जा रहा है। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के अध्यक्ष रहे श्री मुंगेकर ने कहा कि बाबा साहब न केवल हिन्दू धर्म बल्कि इस्लाम धर्म की कट्टरता के भी खिलाफ थे। हिन्दू धर्म की जड़ता एवं बुराइओं के खिलाफ थे, इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया क्योंकि उनका मानना था कि हिन्दू धर्म जाति पर आधारित है और जब तक जाति का बंधन नहीं टूटेगा देश का विकास नहीं हो सकता है। भारतीय समाज में इतनी असमानतायें है कि देश का आर्थिक विकास ही ठीक से नहीं हो पा रहा है इसलिए देश के सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाने के लिए सभी जातियों के लोगों को आर्थिक मुख्यधारा में लाना जरुरी है लेकिन आज भी बड़ी संख्या में दलित आदिवासी बेरोजगार हैं। अब तो विश्वविद्यालय में उनके साथ भेदभाव भी होने लगा है और वे प्रताड़ित किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि समाज में दलितों पर अत्याचार बढ़ने का कारण यह है कि अब दलित स्वर्ण समाज और व्यवस्था को चुनौतो देने लगे हैं जिसके कारण ऊँची जाति के लोग उस पर दमन करने लगे हैं। रोहित वेमुला और जेएनयू के मुथु कृष्णन की आत्महत्या इसका प्रमाण है। उन्होंने कहा कि रोहित वेमुला की आत्महत्या को लेकर गठित एक समिति के वे सदस्य होने के नाते वह अपने अनुभवों के आधार पर ये बाते कह रहे हैं। श्री मुंगेकर ने कहा कि बाबा साहब ने इस संचयन में अपने लेखों में देश की हर समस्याओं पर विचार किया है लेकिन देश में कम्युनिस्ट आन्दोलन भी इसलिए विफल हो गया कि उसने जाति के सवाल को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। उन्होंने हिन्दुत्ववादी ताकतों से भी दलितों को सतर्क रहने की सलाह दी और दलित बुद्धिजीवी वर्ग को भी सत्ता के प्रलोभनों से बचने की सलाह दी, क्योंकि मौजूदा सत्ता उनका इस्तेमाल कर रही है। इस संचयन में अंबेडकर ने स्त्री मुक्ति संसदीय लोकतंत्र समान मानवाधिकारों के अलावा हिन्दू दर्शन पर भी गंभीर अध्ययन किया है और क्रांतिकारी विचार व्यक्त किये हैं। श्री मुंगेकर अंबेडकर जयंती के मौके पर साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय दलित लेखक सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे।

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