योग आयुर्वेद को आज़ादी के बाद ही बढ़ावा दिया जाता तो मानवता का कल्याण होता : मोदी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 4 मई 2017

योग आयुर्वेद को आज़ादी के बाद ही बढ़ावा दिया जाता तो मानवता का कल्याण होता : मोदी

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हरिद्धार 03 मई, योग एवं आयुर्वेद के क्षेत्र में उच्चस्तरीय अनुसंधान एवं नवान्वेषण पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि गुलामी के लंबे दौर में ध्वस्त किये गये भारत के पुरातन ज्ञान को अगर आज़ादी के बाद भी हमारी परंपराओं से जोड़ कर प्रोत्साहित किया जाता तो मानवता का बड़ा कल्याण होता। श्री मोदी ने यहां योगगुरू बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ के आधुनिक आयुर्वेदिक अनुसंधान केेन्द्र के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि एक समय था जब विश्व में हम इतने छाये हुए थे और इतनी ऊंचाई पर थे कि बाकी दुनिया को लगता था कि वहां तक पहुंचना उसके लिये संभव नहीं है। इसलिये उन्होंने हमारे श्रेष्ठ ज्ञान, विज्ञान एवं परंपरा को नष्ट करने और नेस्तनाबूद करने का रास्ता चुना। इस हजार से बारह सौ साल के ‘गुलामी के कालखंड’ में हमारे इस श्रेष्ठ को बचाये रखने की हमारे ऋषि, मुनि, संत, आचार्य, किसान, वैज्ञानिक, हर किसी की शक्ति खत्‍म कर दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामी के कालखंड में जिस ज्ञान को नष्ट करने का प्रयास हुआ, पर हम उसे बचा पाये लेकिन अाज़ादी के बाद के लंबे कालखंड में उसे भुलाने का प्रयास किया गया जिससे हमारी तीन-तीन पीढि़यां दुविधा के कालखंड में जिंदगी गुजारती रहीं। उन्होंने कहा, “आजादी के बाद जो बचा था उसे पनपाते, उसे पुरष्‍कत करते, समयानुकूल परिवर्तन करते, नए रंग-रूप के साथ सज्‍जा करते, और आजाद भारत की सांस के बीच उसे विश्‍व के सामने हम प्रस्‍तुत करते, लेकिन वो नहीं हुआ। गुलामी के कालखंड में नष्‍ट करने का प्रयास हुआ, आजादी का एक लम्‍बा कालखंड ऐसा गया जिसमें इन श्रेष्‍ठताओं को भुलाने का प्रयास हुआ। उन्होंने कहा, “दुश्‍मनों ने नष्‍ट करने की कोशिश की, उससे तो हम लड़ पाये, निकल पाये, बचा पाये, लेकिन अपनों ने जब भुलाने का प्रयास किया तो हमारी तीन-तीन पीढि़यां दुविधा के कालखंड में जिंदगी गुजारती रहीं। ....अच्‍छा होता कि हमारी सभी ज्ञान, आधुनिक से आधुनिक ज्ञान भी, उसको भी हमारी इन परम्‍पराओं के साथ जोड़ करके आगे बढ़ाया होता तो शायद मानवता की बहुत बड़ी सेवा हुई होती।”

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