विशेष : निर्दोष शिल्पा से शिक्षा ने छीना सरपंची का मौका - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

विशेष : निर्दोष शिल्पा से शिक्षा ने छीना सरपंची का मौका

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यह कहानी है शिल्पा पडले की। शिल्पा महाराष्ट्र के सांगली जिले के मिरज तालुका के हरिपुर गांव की रहने वाली हैं। सावन के 35 वसंत देख चुकी शिल्पा ने कक्षा छह तक की शिक्षा हासिल की है। शिल्पा का विवाह मात्र 18 साल की आयु में हो गया था। परिवार में पति, स्वयं व दो बच्चो को मिलाकर कुल चार सदस्य हैं। परिवार की आय का मुख्य साधन कृषि है और मासिक आय 10-12 हजार रूपए है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार हरिपुर गांव की कुल जनसंख्या 7595 थी जबकि महिलाओं की कुल जनसंख्या 3704 थी। 2011 में गांव का कुल साक्षरता दर 86.29 प्रतिशत था जबकि महिला साक्षरता दर 81 प्रतिशत था।

शिल्पा एक सामान्य निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की महिला हैं। अन्य परिवारों की तरह उनके परिवार की भी सामाजिक मान्यताएं हैं। परिवार में जागरूकता की कमी के चलते शिल्पा केवल कक्षा छह तक ही शिक्षा हासिल कर सकीं। शिल्पा के गांव में स्कूल नहीं था और छठी कक्षा से आगे की पढ़ाई करने के लिए उन्हें गांव से बहुत दूर जाना पड़ता। लिहाज़ा घर वालों ने बीच में उनकी पढ़ाई छुड़वा दी। हालांकि शिल्पा आगे पढ़ना चाहती थी पर परिवार को लगता था कि लड़की है तो पढ़ लिखकर क्या करेगी? शिल्पा के पूरे गांव में लड़कियों की पढ़ाई को लेकर कमोवेश सभी लोगों की एक ही सोच थी। इस बारे में शिल्पा कहती हैं कि-‘‘गांव में मेरे उम्र की कोई भी लड़की पांचवी छठी कक्षा से ज्यादा नहीं पढ़ी है और कुछ तो शायद कभी स्कूल भी नहीं गयी हैं।’’ 18 वर्ष की उम्र में ही शिल्पा पर विवाह और परिवार की जिम्मेदारियां डाल दी गयीं। इसके चलते शिल्पा कभी पढ़ने के बारे में सोच ही नहीं पायीं। वह कहती हैं कि ‘‘वास्तव में उन्हें खुद भी शिक्षा का महत्व नहीं पता था। लेकिन आज वह महसूस करती हैं कि पढ़ना जरूरी है। इस दौर में पढ़ाई के बगैर कुछ भी संभव नहीं है।’’
         
शिल्पा के पास घर की बहुत जिम्मेदारियां नहीं हैं और आज वह गांव समाज में सक्रिय हैं। उनके पास समय भी है और पृष्ठभूमि भी। परिवार का गांव में अच्छा संपर्क है और एक समय उनके देवर पंचायत से जुड़े हुए थे। इसलिए पंचायत और उसकी गतिविधियों के लिए उनके परिवार में जानकारी भी है और समझ भी। वह शासन की योजनाओं का उपयोग गांव के विकास के लिए करना चाहती हैं किन्तु उनके पास यह सामथ्र्य नहीं है क्योंकि वह शासन में ऐसे किसी स्थान पर नहीं हैं जो इस काम को कर सकें। शिल्पा कहती हैं कि ऐसी बहुत सी योजनाएं हैं जो गांव तक नहीं पहुंच रही हैं। वह कहती हैं कि ‘‘गरीब महिलाओं को खेतों में दिहाड़ी पर काम करना पड़ता है और उनके लिए रोजगार उपलब्ध नहीं है। गांव में कुछ महिलाएं ऐसी हैं जो घर व बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी वहन नहीं कर सकतीं। ऐसी महिलाओं को रोजगार मिलना बहुत जरूरी है। अगर मैं सरपंच का चुनाव लड़ती तो शायद ऐसी महिलाओं के लिए कुछ कर पाती। लेकिन मैं पंचायत के चुनावों के लिए शिक्षा के मानक को पूरा नहीं कर रही हूँ इसलिए मैं चुनाव में भाग नहीं ले सकती। 

पिछले 2017 के चुनाव में हरिपूर की सीट महिला आरक्षित सीट थी। शिल्पा यहां से सरपंच का चुनाव लड़ना चाहती थीं। मगर राज्य में सरपंच के पद पर सातवीं पास शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते शिल्पा सरपंच का चुनाव लड़ने से वंचित रह गयीं। इस अवसर से चूक जाने का शिल्पा को खासा मलाल है। वह कहती हैं ‘‘आज मैं शिक्षा के महत्व को बहुत अच्छे से समझती हूँ । शैक्षिक योग्यता के नियम के तहत सातवीं पास न होने की वजह से मैं सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकी। हमारे यहां तकरीबन सात माह पहले चुनाव हुए थे। उस समय मैंने सरपंच के पद चुनाव लड़ने के लिए योग्यता नियमों के बारे में सुना था। उस समय मुझे पता लगा था कि शैक्षिक योग्यता न होने की वजह से मैं सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकती।’’ हालांकि शिल्पा शिक्षा के महत्व को स्वीकारती हैं पर उनका यह भी मानना है कि ‘‘अच्छा काम करने के लिए केवल शिक्षा ही जरूरी नहीं है। गैर पढ़े लिखे और कम पढ़े लिखे लोग भी अपने गांव समाज के विकास के मुद्दों को समझते हैं और उस पर काम कर सकते हैं।’’ 

दूसरी ओर शिल्पा यह भी मानती हैं कि शिक्षा के लिए घर के लोगों का सहयोग बहुत जरूरी है। बच्चे को शिक्षा का महत्व बताना घर वालों का काम है अगर उन्होंने नहीं बताया तो यह उनकी गलती है। शिल्पा कहती हैं कि ‘‘अगर शादी के बाद मेरी पढ़ने की इच्छा होती तो ससुराल वाले मुझे जरूर पढ़ाते। मगर  मेरी रूचि ही विकसित नहीं की गयी और मुझे पढ़ाने का उत्साह मेरे माता-पिता ने कभी दिखाया ही नहीं। लिहाजा मेंरी रूचि ही खत्म होती चली गयी।’’ वह कहती हैं कि ‘‘अब कभी मैं पढ़ने के बारे में सोचती हूँ तो एक संकोच सा होता है कि लोग क्या कहेंगे? हालांकि मुझे इस बात का सदा अफसोस रहेगा कि इसी शिक्षा की वजह से मैं सरपंच के चुनाव में भाग नहीं ले सकी।’’ 

यह बात सत्य है कि पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते जहां एक ओर पढ़े-लिखे नौजवान तबके की स्थानीय शासन में भागीदारी सुनिश्चित होगी तो वहीं इस नियम के चलते शैक्षिक योग्यता न रखने वाली बहुत सी महिलाएं चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकेंगी और यह तकरीबन एक पीढ़ी होगी जो अपने इस लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाएगी।  



(निखिल शिंदे)

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