भारत-रूस संबंध ‘विशिष्ट विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ में बदले है : प्रधानमंत्री - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 21 मई 2018

भारत-रूस संबंध ‘विशिष्ट विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ में बदले है : प्रधानमंत्री

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सोची , 21 मई, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी अब एक ‘‘ विशिष्ट विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी ’’ में बदल गयी है जो एक ‘‘ बहुत बड़ी उपलब्धि ’’ है।  मोदी ने अपने पहले अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के लिए काला सागर के इस तटीय शहर में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की।  प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और रूस लम्बे समय से मित्र हैं और उनके बीच एक अटूट दोस्ती है।  उन्होंने कहा ,‘‘ " मैं राष्ट्रपति पुतिन का आभारी हूं जिन्होंने मुझे अनौपचारिक बैठक के लिए आमंत्रित किया और इसलिए , हमारी लंबी दोस्ती में , यह एक नया पहलू है जो हमारे संबंध से जुड़ा हुआ है। ’’  मोदी ने कहा ,‘‘ आपने द्विपक्षीय संबंधों में अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का एक नया पहलू जोड़ा है जो मुझे लगता है कि एक महान अवसर है और विश्वास पैदा करता है। ’’  प्रधानमंत्री ने 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ रूस की अपनी पहली यात्रा को याद किया और कहा कि पुतिन दुनिया के पहले नेता थे जिनसे वह गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद मिले थे। मोदी ने कहा ,‘‘ मेरे राजनीतिक करियर में भी , रूस और आप (पुतिन) बहुत महत्वपूर्ण हैं ... गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में , एक विदेशी नेता के साथ यह मेरी पहली बैठक थी। इसलिए , मेरे अंतरराष्ट्रीय संबंधों की शुरुआत आप से और रूस से हुई। ’’ 

उन्होंने कहा ,‘‘ इसके 18 वर्षों बाद मुझे कई मुद्दों पर विचार विमर्श करने के लिए आप से मिलने के कई अवसर मिले और मैंने भारत तथा रूस संबंध आगे ले जाने के प्रयास किये। ’’  उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी और राष्ट्रपति पुतिन ने ‘ रणनीतिक साझेदारी ’ के जो बीज बोये थे , वे अब ‘‘ विशिष्ट विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी ’’ में बदल गये हैं जो अपने आप में एक ‘‘ बहुत बड़ी उपलब्ध है। ’’  मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन में स्थाई सदस्यता दिलाने में भारत की मदद में एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए रूस को धन्यवाद दिया।  शंघाई सहयोग संगठन में आठ देश सदस्य हैं जिसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच सैन्य और आर्थिक सहयोग करना है। भारत और पाकिस्तान पिछले वर्ष इस संगठन में शामिल हुए थे।  मोदी ने कहा ,‘‘ हम अंतरराष्ट्रीय उत्तर - दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) और ब्रिक्स पर एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। ’’  उन्होंने प्रचंड बहुमत के साथ चौथी बार राष्ट्रपति बनने के लिए पुतिन को बधाई दी।  उन्होंने कहा ,‘‘ यह मेरे लिए खुशी की बात है कि मुझे फोन पर आपसे बात करने का मौका मिला और जल्द ही आपको व्यक्तिगत रूप से बधाई देने के लिए मिला। ’’  मोदी ने कहा ,‘‘ वर्ष 2000 से जब से आपने कार्यभार संभाला तब से हमारे संबंध ऐतिहासिक रहे है। ’’ 

सोची के बोचोरेव क्रीक में प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के मद्देनजर प्रधानमंत्री का स्वागत करते हुए पुतिन ने कहा कि उनकी यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों को एक नई गति मिलेगी।  पुतिन ने कहा ,‘‘ हमारे रक्षा मंत्रालय करीबी संपर्क और सहयोग कायम किये हुए है । ’’ उन्होंने विदेशी राजनीति के क्षेत्र विशेषकर संयुक्त राष्ट्र , ब्रिक्स (ब्राजील , रूस , भारत , चीन और दक्षिण अफ्रीका) और एससीओ में दोनों देशों की गतिविधियों की भी प्रशंसा की।  पुतिन ने यह भी कहा कि पिछले वर्ष आपसी व्यापार में काफी वृद्धि हुई थी और इस वर्ष पहले कुछ महीनों में इसमें 17 प्रतिशत से अधिक की बढोत्तरी हुई है।  आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि अनौपचारिक वार्ता का उद्देश्य दोनों देशों के बीच आपसी मैत्री और विश्वास के आधार पर महत्वपूर्ण वैश्विक एवं क्षेत्रीय मुद्दों पर साझा राय बनाना है।  उन्होंने कहा दोनों नेता ‘ बिना किसी एजेंडे ’ के चार से छह घंटे वार्ता करेंगे जहां द्विपक्षीय मुद्दों पर विचार - विमर्श बहुत सीमित होने की संभावना है।  इस दौरान दोनों नेताओं के बीच बातचीत के मुद्दों में ईरान के साथ परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने से भारत और रूस पर पड़ने वाले आर्थिक असर , सीरिया और अफगानिस्तान के हालात , आतंकवाद के खतरे तथा आगामी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और ब्रिक्स सम्मेलन से संबंधित मामलों के शामिल होने की संभावना है।  सूत्रों ने कहा कि ‘ काउंटरिंग अमेरिका एडवेर्सरीज थ्रू सेंक्शन्स एक्ट ’ (सीएएटीएसए) के तहत रूस पर लगाए अमेरिकी प्रतिबंधों के भारत - रूस रक्षा सहयोग पर पड़ने वाले प्रभावों के मुद्दे पर भी इस बातचीत के दौरान चर्चा हो सकती है।  इस तरह की आशंका बनी हुयी है कि अमेरिका के ईरान परमाणु समझौते से हटने का वहां से नयी दिल्ली के तेल आयात और ‘ चाबहार बंदरगाह परियोजना ’ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।  सऊदी अरब और इराक के बाद भारत को कच्चा तेल आयात करने वाला ईरान तीसरा सबसे बड़ा देश है। 

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