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मंगलवार, 1 मई 2018

विशेष : नियम हैं मगर वह बाधा नहीं हैं

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कर्नाटक का मैसूर ज़िला। मैसूर जिले के सरगुरु तालुका की बी. मताकेरे हेडी पंचायत से 57 वर्षीया वसंथाम्मा ने 2015 में पहली बार पंचायत का चुनाव लड़ा।  2015 के पंचायत चुनाव में बी. मताकेरे हेडी पंचायत में सदस्य की सीट अनुसूचित जनजाति महिला के लिए आरक्षित थी। वसंथाम्मा अनुसूचित जनजाति वर्ग के बेट्टा कुरुबा जाति में आती हंै। वसंथाम्मा केवल कक्षा चार तक ही पढ़ी लिखी है । वसंथाम्मा चुनाव जीतकर बी. मताकेरे हेडी पंचायत के 24 सदस्यों में से एक सदस्य बनी। इन 24 सदस्यों में से 12 पुरुष और 12 ही महिलाएं सदस्य हैं। वसंथाम्मा के पति चिरुमारा खेती का काम करते है और उनका बेटा गुदस्वामी गाड़ी चालने का काम करता हैं। वसंथाम्मा के परिवार में इस समय अभी कुल सात सदस्य हैं जिसमें उनका पति, बेटा बहु और उनके तीन बच्चें शामिल है। वसंथाम्मा के परिवार की वार्षिक आय तकरीबन 2 लाख रूपए तक हो जाती है जिससे उनके परिवार का खर्चा चलता है। वसंथाम्मा को सरकार से पंचायत सदस्य होने के नाते मानदेय के रूप में 500 तक मिलते हैं।
          
कम पढ़े लिखे होने के बाद भी 2015 में पंचायत सदस्य बनने के बाद वसंथाम्मा ने अपने गाँव के लिए विकास के कई काम कराए हैं। वह अपने गाँव के वार्ड नंबर 2 में अपने प्रयासों से तकरीबन 80 प्रतिशत शौचालय बनवा चुकी हैं। साथ ही गांव के तकरीबन हर गरीब परिवार को घर के लिए जमीन दिलवा चुकी है। भविष्य में वह अपने गाँव में आदिवासी क्षेत्र का विकास करना चाहती है। उनके मुताबिक आदिवासी क्षेत्र में अभी भी मूलभूत जरूरतों की कमी है जिसके लिए वह काम करना चाहती है। गांव के आदिवासियों को पानी लेने के लिए अभी भी बहुत दूर जाना पड़ता है और अभी भी उनके वार्ड के 20 प्रतिशत लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं जिसकी वजह से गांव में गन्दगी फैलती है और कई तरह की बीमारियां पनपती हैं।
           
वसंथाम्मा ने अपने गाँव में अम्बेडकर आवासीय स्कूल और आश्रम स्कूल में छात्रावास की सुविधा मुहैया कराई है। गाँव के स्कूल में मरम्मत का काम करवाया है। वसंथाम्मा खुद एक स्वयं सहायता समूह की सदस्य है जिसमें तकरीबन 15 से 20 महिलाएं शामिल है। स्वयं सहायता समूह की कोई भी महिला ज़रूरत पड़ने पर समूह से आर्थिक मदद ले सकती हैं। इस पर समूह की महिला को कोई ब्याज भी देना नहीं पड़ता है। इस काम में वसंथाम्मा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।   वसंथाम्मा महिलाओं को इस समूह में जोड़ने और उनके बीच समन्वय बिठाने का कार्य करती रहती हैं। 
          
वसंथाम्मा अपनी पंचायत के विकास कार्य के बीच कोई रोड़ा नहीं आने देना चाहतीं। इसीलिए वह समय समय पर अपनी पंचायत में अन्य पंचायत सदस्यों के साथ हर बैठक में भाग लेती हैं ताकि वह पंचायत की समस्याओं से रूबरू हो सकें । वसंथाम्मा की इन्हीं सब खूबियों की वजह से उनकी पंचायत में सब उनको खूब पसंद भी करते हैं और उनका समर्थन भी करते है। पंचायत मीटिंग में सभी लोग बहुमत से कोई भी निर्णय लेते हैं।। वसंथाम्मा अपनी पंचायत क्षेत्र में चल रहे कार्यों का स्वयं जाकर जायजा लेती हैं। अभी भी वसंथाम्मा को अपने क्षेत्र में और भी विकास कार्यों की जरूरत महसूस होती है। वसंथाम्मा भविष्य में अपने वार्ड को शौचमुक्त बनाने के लिए प्रतिबध्द हैं। इसके लिए वह अपने वार्ड के हर घर में शौचालय बनवाना चाहती हैं। साथ ही साथ वह ज़रूरतमंदों को ज़मीन उपलब्ध कराकर उनके सर पर छत का साया देखना चाहती हैं।  
            
वसंथाम्मा कहतीं है कि पहले वह चुनाव में भाग नहीं लेना चाहती थीं, मगर गाँव और स्वयं सहायता समूह के लोगों के कहने पर उन्होंने चुनाव में हिस्सा लिया। उनके परिवार ने भी उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया।  नामांकन फार्म भरने में उनके बेटे ने उनकी मदद की और सभी जरुरी दस्तावेज लाकर दिए। नामांकन भरते समय उन्होंने हाउस टैक्स, पानी का टैक्स, जाति प्रमाण पत्र आदि जमा करवाए थे। नामांकन फार्म भरने में उनके बेटे ने उनकी मदद  ज़रूर की थी मगर कम शिक्षित होने के बाद भी वसंथाम्मा को फार्म भरने में किसी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। वह कहती हैं कि यदि आपके घर में कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति हो तो उसकी मदद से आप कोई भी फार्म भर सकते हैं। लिहाज़ आवेदन फार्म भरने के काम में उनका कम पढ़ा लिखा होना भी उनके लिए बाधा नहीं बना। परिवार का यह सहयोग और हौसलाआफजाई ही था कि वह कम पढ़ी लिखी होने के बाद भी पंचायत चुनाव में खड़ी हो पाई अन्यथा वह चुनाव में भाग ही नहीं ले पातीं। 
           
कर्नाटक में पंचायत चुनावों में भाग लेने के लिए कुछ विशिष्ट शर्तें नहीं हैं। वसंथाम्मा और उनकी जैसी अनेक महिलाओं के शासन में भाग लेने का रास्ता खुला हुआ है। 50 प्रतिशत के आरक्षण के बाद महिलाओं को स्थानीय शासन में आने से राज्य में कोई नहीं रोक सकता और वसंथाम्मा इसकी मिसाल हैं। वह कहतीं हैं कि कर्नाटक पंचायत चुनाव में भाग लेने के लिए इच्छुक उम्मीदवारों के लिए जो नियम हैं वह इतने कठोर नहीं थे, जिनकी वजह से उनको या उन जैसी कम पढ़ी लिखी किसी महिला को कोई दिक्कत आई हो। वसंथाम्मा बताती है कि पंचायत चुनाव में भाग लेने लिए उनको केवल यह बताना था कि वह कितनी पढ़ी लिखी हैं, शिक्षा के लिए कोई प्रमाण पत्र भी नहीं देना पड़ा। इसके अलावा उनके यह बताना था कि क्या वह शौचालय का उपयोग अपने घर में करती है या नहीं, और यदि नहीं करती तो उनको केवल एक अंडरटेकिंग देनी पड़ती है जिसमें उनको यह बताना होता कि चुनाव जीतने के एक साल के भीतर वह अपने घर शौचालय का निर्माण करा लेंगे । चुनाव के समय जो भी दस्तावेज उम्मीदवारों से मांगे गए वह सभी आसानी से मिल जाने वाले दस्तावेज थे। इसी वजह से उनको लगता है कि वह इतनी आसानी से नामांकन पत्र भर पाई। वह कहती हैं कि यदि सरकार पंचायत चुनाव के लिए यह निर्धारित कर देती कि चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को एक तय क्लास तक पास होना अनिवार्य है तो वह कदापि चुनाव नहीं लड़ पातीं।






(शिवालिंगा)

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