बेगूसराय (अरुण कुमार) परिवर्तन प्रकृति का नियम है।धरा जो भी हुआ है सृष्टि से लेकर अभी तक और अभी तक ही क्यों आगे भी आदि और अन्त,श्रीगणेश का इतिश्री तो होना ही है।इसी नियम के अनुसार आज हमारे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हमारे बीच नहीं रहे।दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उनका निधन हो गया।उनके निधन पर पूरे देह में शोक की लहर फैल गई।वाजपेयी भारत के तीन बार प्रधानमंत्री रहे और देश के सर्वोच्च सम्मान "भारत रत्न" से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का लम्बी बीमारी के बाद गुरुवार को निधन हो गया।वाजपेयी अपने पूर्णायु के 93वे वर्ष में एम्स में संध्या 5 बजाकर 5 मिनट पर अपनी अंतिम सांस ली।पूर्व प्रधानमंत्री पिछले कई वर्षों से बीमार चल रहे थे।25 दिसम्बर 1924 इनका अवतरण दिवस था और 16 अगस्त 2018 यानि अपने पूर्णायु के 93 वर्ष 7 माह 20 दिन पूरा कर चुके थे।वाजपेयी 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन से ही राजनीति में प्रवेश किये। उत्तरोत्तर राजनीति संघर्षों के बाद सर्व प्रथम तीन दिन, दूसरी बार तरह महीने और तीसरी बार 2009 में जब चुनकर आये और 26 सहयोगी दलों के समर्थन से उन्होंने अपनी सरकार बनाई तो 5 वर्षों का कार्यकाल पूरा किया।अटल बिहारी वाजपेयी आजाद भारत के इकलौता प्रधानमंत्री थे जो गैर कॉंग्रेसी होकर भी सरकार में कार्यकाल तक बने रहे।अटल बिहारी सिर्फ राजनीति के क्षेत्र में ही नहीं अपितु साहित्य के क्षेत्र में भी अपना परचम लहराया ये एक कवि के रूप में भी स्थापित कवि रहे।जब इनकी सरकार बनीं और अल्पकाल में ही गिर गई तो इन्होंने कहा था अपने कविता के माध्यम से की:-
बाधाएं आती हैं आएं,घिरे प्रलय की घिर घटाएं।
पाँओं के नीचे अंगारे,सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं।
निज हांथों में हँसते हँसते,आग लगाकर जलाना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा.....................
इनकी काव्यात्मक शब्द मानस पटल पर एक अमिट छाप छोड़ता है।वाजपेयी संघ से जुड़े थे,तो अंत तक जुड़े रहे।इनकी खासियत ही यही थी कि एकबार जिस पथ को वरण कर लिया तो कर लिया फिर उसे अंतिम सांस तक उसका साथ निभाये।वाजपेयी एकनिष्ठ,कर्मनिष्ठ सदा अपने कार्यों पर एमाल करते हुए अटल रहने वाले थे अटल बिहारी वाजपेयी।ऐसे महा पुरुष आज हम सबों के बीच नहीं रहे ऐसा जगविदित है,और ये सत्य भी है।किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाय तो शरीर नश्वर है तो शरीर का नाश हुआ ऐसा कहा जा सकताआ है,परन्तु शरीर का भी नाश नहीं अपितु शरीर पंचतत्वों में विलीन होनेवाला है सो पंचतत्त्व में विलीन तो होगा ही किन्तु वाजपेयी दृश्य से अदृश्य,लौकिक से अलौकिक या यूं कहें कि पारलौकिक हो गए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं।इन्होंने ही अपने शब्दों में कहा है:-
मैं निःशब्द हूँ,शून्य में हूँ,लेकिन
भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है.........
"अटल"अटल ही रहे,ना यूके ना झुके कभी स्वच्छ राजनीति ही पहला और आखीऐ धेय्य रहा।इन्होंने सिद्धांतों से का ही समझौता नहीं किया,कभी भी नहीं किसी परिस्थिति में भी नहीं।यही इनके व्यक्तित्व की विशेषता रही।आज के राजनेताओं को आवश्यकता है इनसे सीख लेने की,इनके विचारों को अपने में उतारने की तभी शायद अखण्ड,निरपेक्ष,सौहार्दपूर्ण वातावरण युक्त भारत का सपना साकार होना संभव होगा।
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