विचार : प्रभु लीला जान सके ना केहू,नाना रुप लियो भगवाना। - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 3 सितंबर 2018

विचार : प्रभु लीला जान सके ना केहू,नाना रुप लियो भगवाना।

lord-krishna-born
बेगूसराय (अरुण कुमार) एक अनीह अरूप नाम।अज सचिदानन्द पर धाम।।ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।तेहि धरि देह चरित कृत नाना।।बालकांड में प्रभु के नाना रूपो के सगुण का भी वर्णन है।उस परमात्मा का जो एक है जिनके कोई इच्छा नही है जिनका कोई रूप और नाम नही है जो आजन्मा सचिदानन्द और परमधाम है जो सबमे व्यापक और विश्वरूप है।उन्ही भगवान ने दिव्य शरीर धारण करके नाना लीला की है। शोभित पोस्ट इसी विषय पर आज 03 सितम्बर है कृष्ण जी का जन्म पूरे भारत ही नही विश्वभर या यूँ कहें अखण्ड ब्रह्मांडो में मनाया जाएगा।।कृष्ण ने लीलाओं के माध्यम से जीने का रास्ता सुगम और सरल बनाकर प्रशस्त किया है।।क्योंकि उस परमात्मा ने अखण्ड जीवो के क्रियाकलापो और उन्हें जीवन मरण के अंतराल में वसर और उनके भरण-पोषण के लिये संसाधनों की उपलब्धियों का भी मार्ग प्रशस्त करते हुए जीवन मरण के घटनाओं से इन्सान को बांध दिया।हमारी इच्छाओं से हमे सुख दुख की अनुभूति होने लगी।संसार की वस्तुओं से सोना चांदी जमीन आदि के लालच में हम बंध गए,जबकि इसका मालिक वो परमात्मा ही है।उसने इन चीजों को हमारे भौतिक सुखों और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध कराया है।हमें इसे यहीं छोड़ जाना है।आगे अनंत यात्रा पर चलते जाना है।।लेकिन हर पड़ाव को हम हमेशा का पड़ाव मान कर लोभ से ग्रसित हो जाते है।जबकि कृष्ण कहते है।जो आज तुम्हारा है कल किसी और का था,कल किसी और का होगा।इसका नियंत्रण भी परमात्मा के ही हाथ है।फिर क्यों इसी पड़ाव में उलझे रहते है।शायद यही हमारी कमजोरी भी है फँसाव भी।।

क्या शोभित चिंतन और अशोभित चिंतन में हम कंभी भेद कर पाएंगे ??
बालकांड की ही एक चैपाई से पोस्ट बिराम कल की जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।।जन मन मंजू कंज मधुकर से।जीह जसोमति हरि हलधर से।।राम का नाम भक्तो के मनरूपी सुंदर कमल में विहार करने वाले भौंरे के समान है और जीभ रूपी यशोदाजी के लिए श्रीकृष्ण और बलराम जी के समान आनद देने वाले हैं।




---प्राप्त आलेख शोभत टंडन सीतापुर यू पी द्वारा कथा और व्यथा का समरुप आलेख है जिससे मानव वर्ग के लिये काफी मार्गदर्शन और अन्तर्मन से समझने हेतु प्रस्तुत करना उचित जान लिखा गया है।

कोई टिप्पणी नहीं: