बिहार : और उसने नये जीवन जीने के लिए संघर्ष शुरू कर दी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 1 नवंबर 2018

बिहार : और उसने नये जीवन जीने के लिए संघर्ष शुरू कर दी

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बांका। इस जिले में है रजौन प्रखण्ड। इस प्रखंड के मिरजापुर में गांव में रहती हैं दिव्यांग रेखा कुमारी। उसे 40 प्रतिशत विकलांगता है। इसके आलोक में कल्याण विभाग की ओर से निःशक्तता सामाजिक सुरक्षा पेंशन दी जाती है। वह 22 साल की है। फिलवक्त इंटरनेट साथी के रूप में कार्य कर रही हैं। इसके साथ बी.ए.की पढ़ाई कर रही हैं। इस तरह के कार्य त्रिपहिया गाड़ी पर बैठकर करती हैं। बताते चले कि रेखा कुमारी महादलित राम समुदाय के सदस्य है। उसके पिता का नाम श्याम हरिजन है। पढ़े-लिखे नहीं रहने के कारण सामान्य मजदूर की तरह मजदुरी करते हैं। इनकी पत्नी का नाम रुकमणी देवी है। वह गृहणी हैं। परिवार की माली हातलत खराब होने पर दूसरों की खेत में जाकर मजदुरी भी करती है। दोनों के 6 संतान हैं 3 लड़के और उतनी लड़की। मां-बाप बच्चों की जिम्मेवारी मजबूत कन्धों पर उठा रखे हैं। इतना करने के बाद भी घर की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के बावजूद भी दो जून की रोटी भी जाती है। 

घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर दिव्यांग रेखा कुमारी टूटी नहीं
रूहासे स्वर से रेखा कुमारी कहती हैं कि एक दिन अचानक लकवाग्रसित हो गयी। दोनों पर से अपाहिज हो गयी। धरती से उठ नहीं पा रही थीं। एक घर की माली हालत खराब और दूसरे में लकवाग्रसित होना। परिवार के लिए आफत की घड़ी आ गयी। परिवार पर बोझ बढ़ गया। सामान्य व्यक्ति से अलग होने के बाद भी रेखा कुमारी हिम्मत नहीं हारी। वह जीवन के हर मोड़ पर सघर्ष डट कर मुकाबला करने लगी। किया।  बताते चले कि रेखा कुमारी को 10 वर्ष की उम्र में लकवा मार दिया था। इसके कारण बीच में ही  पढ़ाई छुट गयी । स्कूल के बदले अस्पताल जाने लगी। अस्पताल में इलाज शुरु हुआ। 

और उसने नये जीवन जीने के लिए संघर्ष शुरू कर दी
 उसने अपने जीवन को नया मोङ दिया। अधूरी पढ़ाई को पूरी करने में जुट गयी। आज रेखा कुमारी इन्टरनेट साथी बन गयी है। अपने गाँव एवं अपने आसपास के 3 राजस्व गाँव में जाकर महिलाओं और युवतियों को इन्टरनेट की शिक्षा प्रदान करती है। इस बीच इन्टर मीडिएट की परीक्षा दे दी। इन्टरनेट साथी  बनने के बाद हौसला बुलन्दी पर आ गया। बतौर इन्टरनेट साथी बनकर महिलाओं के बीच जाकर इन्टरनेट से कार्य करने के बारे में षिक्षा देती और मोबाइल चलाने के बारे में सीखाती है। 

रेखा कुमारी का मानना है.....
 वह कहती हैं कि गाँव स्तर पर समाज में महिलाओं की स्थिति अपाहिजों की तरह है। पुरूष रूपी बैषाखी के सहारे जीवन चलाती हैं। ग्रामीण समाज में लड़का और लड़़की में काफी भेद-भाव किया जाता है। पढ़ाई की बात की जाय तो उसमें तो काफी अन्तर है। लड़का को पढ़ाने के लिए हर माता-पिता अपने जमा पूँजी खर्च करते है। लड़़का की पढ़ाई हेतु जरूरत पड़़ने पर खेत तक बेच देते हैं। वहीं लड़़की की पढाई के लिए कोई माता.पिता खेत नहीं बेचते है। लड़़की को जन्म लेने के बाद से ही पराया धन समझा जाता है।  आज माता-पिता लड़़की को मैट्रिक तक इसलिए पढ़ाते है कि उसकी षादी अच्छे परिवार में हो जाय। 

पहले उच्च वर्ग की युवतियाँ ताना कसती थी
रेखा कुमारी कहती हैं कि जब वह इन्टरनेट सीखाने गाँव जाती थीं तो उच्च वर्ग की युवतियाँ ताना कसती थीं। दिव्यांग होकर बड़ा मस्टरनी बनने चली है। पर उनके ताने का कभी प्रवाह नहीं किया। हरदम अपने कार्य को सफल बनाने में जुटी रहीं। आज वह इन्टरनेट की षिक्षा की अधिक जानकारी हेतु वर्तमान में सरकार के द्वारा चलाये जा रहे कम्प्यूटर सेन्टर में दाखिला ले ली है। साथ में बी0 ए0 में नामांकन भी करवा ली हैं। जब वह त्रिपहिया साइकिल से घर से निकलती हैं तो देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि अगर अपने मन में व्यक्ति लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़े तो लक्ष्य प्राप्ति में आये हर मुसीबत को आसानी से दूर किया जा सकता है।

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