बिहार : मोडिफाइड एरिया डेंवलपमेंट एप्रोच (माडा) के तहत मिली गाय - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 26 मार्च 2019

बिहार : मोडिफाइड एरिया डेंवलपमेंट एप्रोच (माडा) के तहत मिली गाय

जो आज भी पूर्व उप मुखिया दिनेश मुंडा केे पास है विराजमान
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कुर्सेला, 26 मार्च। बिहार विभाजन 15 नवम्बर 2000 को हुआ।  अनुसूचित जनजाति बहुल्य झारखंड प्रदेश का गठन हुआ। बिहार में अनुसचित जाति के विकास के लिए मोडिफाइड एरिया डेंवलपमेंट एप्रोच (माडा) चलाया गया। इससे अनुसूचित जाति के लोगों को खुद्दार बनाने की योजना संचालित होती है। इससे कुर्सेला और समेली प्रखंड में रहने वाले आदिवासियों को सहायता मिली है। पूर्व उप मुखिया दिनेश मुंडा को 2007-2008 में पशुपालन करने में गाय मिली हैं। वह आज भी जीर्वित है। समेली और कुर्सेला प्रखंड के अन्य लोगों को माडा से लाभान्वित कराने का प्रयास किया गया। परन्तु सफलता नहीं मिली है। कारण प्रखंड जिला कल्याण पदाधिकारी अस्वस्थ है। इसके कारण कार्य रफ्तार में गति नहीं आ सकी है।  अंग्रेजों के द्वारा अविभाजित झारखंड से लाए गए थे आदिवासी। आकर बसुहार मजदीया ग्राम पंचायत में बस गए। कुछ अंग्रेजों की खेती करने लगे और कुछ देवीपुर नील फैक्ट्री में कार्य करने लगे। दिन जाते जाते आदिवासियों ने पहचान बना ली और जहां पर रहते हैं। उसका नामकरण कर दिए। इस समय बसुहार मजदीया मुंडा टोला में 40 आदिवासी परिवार रहते हैं। तीन पुश्त से रहते आ रहे हैं। यहां की  जनसंख्या 160 और वोटर 100 हैं। कोई 10 आदिवासी मैट्रिक और नाम 2 आई.ए. उत्र्तीण हैं। केवल जोएल टोप्पनो एम.ए. और सामुएल टोप्पनो बी.ए.उत्र्तीण हैं। दो सरकारी टीचर हैं। 30 घरों के लोग बकरी पालन करते हैं। 2 घर में गाय पालन होता है। इसमें उप मुखिया दिनेश मुंडा की गाय है। मोडिफाइड एरिया डेंवलपमेंट एप्रोच में मिला था। इसके अलावे सभी खेतिहर मजदूर हैं। रोजगार के लिए नौजवान पलायन कर जाते हैं।

बसुहार मजदीया मुंडा टोला के प्रथम व्यक्तिः
बसुहार मजदीया मुंडा टोला के प्रथम व्यक्ति हैं दिनेश मुंडा जो बसुहार मजदीया ग्राम पंचायत के वार्ड सदस्य बने और उप मुखिया पद पर काबिज हुए। अभी पूर्व मुखिया हो गए हैं दिनेश मुंडा। इनके पिता का स्व.वीरो मुंडा और माता का नाम मुंगिया देवी है। इनके दो भाई और दो बहन हैं। भाई में दिनेष मुंडा व वकील मुंडा हैं। बहन में आषा मुंडा व उषा मुंडा हैं। केवल दिनेश मुंडा ही बी.ए.पास हैं और शेष साक्षर हैं। दिनेश मुंडा की पत्नी जयंती देवी हैं। दोनों के 4 लड़का और 2 लड़की है। एक दिव्यांग हैं। वह स्कूल जाता था। स्कूल की दूरी होने से जा नहीं सक रहा है। उसको तीनपहिया वाहन दिलवाने का प्रयास हो रहा है। 

आदिवासियों को मिली है माडा से सरकारी सहायता 
कुर्सेला और समेली प्रखंड में रहने वाले आदिवासियों को मिली है माडा से सरकारी सहायता। इस संदर्भ में पूर्व उप मुखिया दिनेष मुंडा कहते हैं कि 2007-2008 में हैं कि बसुहार मजदीया मुंडा टोला में रहने वाले 12 आदिवासियों को मोडिफाइड एरिया डेंवलपमेंट एप्रोच (माडा) से देशी गाय मिली थी। अच्छी नस्ल और ठगी नीति के कारण गाय मर गयी। केवल दिनेश मुंडा ही गाय सुरक्षित रखने में कामयाब हुआ है। इसी कामयाबी के बल पर कुर्सेला और समेली प्रखंड में रहने वाले आदिवासियों ने माडा के तहत रोजगार करने की इच्छा जाहिर की है। ये लोग भी अपनी पंसद से गाय, खेत खलियान में इस्तेमाल करने वाली मशीन, सिलाई मशीन आदि माडा के तहत प्राप्त करना चाहते हैं। 

जिनको नहीं मिली है सहायता माडा सेः
कुर्सेला और समेली में रहने वाले आदिवासियों को जिनको माडा से सहायता नहीं मिली है। ऐसे लोग इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसाइटी के साॅल थ्री के सहयोग से कार्यरत प्रगति ग्रामीण विकास समिति के सदस्यों से सहयोग लेना शुरू कर दिये हैं। ऐसे लोगों को कुर्सेला के प्रखंड समन्वयक  आवेदन लिखने में सहायता कर रहे हैं।ं जिला कल्याण पदाधिकारी के समक्ष आवेदन दिया है। माडा से रोजगार हेतु सहायता सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं।  समेली प्रखंड के डूमर पंचायत में है डूमर आदिवासी टोला। यहां पर 50 से आदिवासी परिवार रहते हैं। यहां पर स्वर्गीय बंसत उरांव की विधवा मुन्नी देवी रहती हैं। मां-पिता के 6 बच्चे हुए। 3 लड़के और 3 लड़किया। 1 लड़की और 2 लड़कों की मौत हो गयी है। सिम्पल बाड़ा 25 साल का है। वह अविवाहित था।  इनका निधन 8 दिसम्बर को हो गया। धर्मपाल बाड़ा 22 साल का है। वह अंजु तिर्की से विवाह किया है। घर में 2 लड़की सपना बाड़ा और सिफोड़ा बाड़ा हैं। एक लड़का रिडॉल कुमार है। 46 साल की मुन्नी देवी कहती हैं कि एम.ए. उत्र्तीण हैं सपना बाड़ा। सिफोड़ा बाड़ा मैट्रिक उत्र्तीण हैं। संत जोसेफ स्कूल मेें रिडॉल कुमार नौवी कक्षा की पढ़ाई बीच में छोड़ दी। इनको भी माडा से रोजगार करने के लिए राषि मिली। जो सफल नहीं हुआ। तो सिलाई-कटाई कार्य करने लगी।

आठवीं कक्षा तक पढ़ी है मुन्नी देवी
जब मुन्नी 14 साल साल की थीं। पोठिया गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थीं।उसी समय सिलाई-कटाई सीखना शुरू कर दी। इसके बाद सिलाई-कटाई में परिपक्व हो गयी। इसका असर यह पड़ा कि जगह-जगह से लोग आकर मुन्नी टेलर के पास सिलाई करवाने लगे इस बीच माडा से रोजगार करने के लिए राशि मिली। परन्तु सफल नहीं हुई। तो सिलाई-कटाई सेन्टर खोल ली। चकला, मोहजान, छोहार, बखरी, डूमर, बकिया आदि से आते हैं।आज 500-600 रू.कमा लेती हैं मुन्नी देवी।सिलाई-कटाई में मास्टर हो जाने के बाद मुन्नी टेलर ने नवयुवतियों को सिलाई-कटाई में प्रशिक्षण देने लगी.अबतक सैकड़ों नवयुतियों को प्रशिक्षित कर चुकी है.6 माह का प्रशिक्षण अवधि है.बतौर फीस तीन हजार लेती हैं. ट्रेनर मुन्नी कहती हैं कि प्रशिक्षुओं का डॉप आउट अधिक है.मां-बाप विवाह पर जोर दे देते है.इसी कारण डॉप आउट अधिक है. आई.जी.एस.एस.एस. के सॉल थ्री के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति का आग्रह संचालित है। धर्मपाल बाड़ा की पत्नी अंजु तिर्की को परिवार लाभ योजना से लाभ दिलवाने का प्रयास जारी है। इसके अलावे अन्य आदिवासियों को भी मोडिफाइड एरिया डेवलपमेंट एप्रोच (माडा)से लाभ दिलवाने का प्रयास जारी है। 

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