सर्वे के नतीजों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कार्बनकॉपी की प्रकाशक आरती खोसला कहती हैं, "यह आश्चर्य की बात नहीं है कि सर्वेक्षण में शामिल सभी 10 राज्यों में महामारी पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया है। हालांकि यह ध्यान देने योग्य है कि अर्थव्यवस्था और पर्यावरण दोनों को होने वाले नुकसान की समझ समान रूप से चिंताजनक पाई गई है।” अपनी बात आगे रखते हुए वो कहती हैं, “सर्वेक्षण में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि उत्तरदाताओं ने वायु प्रदूषण और अर्थव्यवस्था को कोविड-19 जितने तत्काल रूप में संबोधित करने पर अधिक ध्यान देने का आह्वान किया है। सौभाग्य से, तीनों को एक साथ ठीक किया जा सकता है। बस उन उद्योगों का प्रोत्साहन और समर्थन करने की ज़रूरत है जो कम प्रदूषण करते हैं, अधिक नौकरियां जोड़ते हैं, और वन और उनके द्वारा समर्थित जैव विविधता के संरक्षण में मदद करते हैं।” इन दस राज्यों में सिर्फ़ पश्चिम बंगाल से उत्तरदाताओं ने कहा कि सरकार कोविड-19 से निपटने के लिए पर्याप्त काम नहीं कर रही है। बात अब वायु प्रदूषण की करें तो उत्तर प्रदेश के अलावा बाकी नौ राज्य के अधिकांश उत्तरदाता वायु प्रदूषण को दूर करने के लिए अपनी सरकारों के प्रयासों से संतुष्ट नहीं हैं। उत्तर प्रदेश से मिली प्रतिक्रिया उत्तरदाताओं की अनिश्चितता की ओर इशारा करती है। वहीँ पश्चिम बंगाल, केरला, दिल्ली और कर्नाटका से 70% से अधिक उत्तरदाताओं ने वायु प्रदूषण को इस दिवाली अपनी शीर्ष चिंता के रूप में चुना और वायु प्रदूषण से निपटने में सरकार की प्रतिक्रिया को संतोषजनक नहीं पाया। कर्नाटका में यह संख्या काफी अधिक है, यहाँ कुल उत्तरदाताओं में से 88% ने वायु प्रदूषण को अपनी शीर्ष चिंता के रूप में चुना।
सर्वेक्षण किए गए सभी 10 राज्यों में अधिकांश उत्तरदाता अर्थव्यवस्था से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए अपनी सरकार के प्रयासों से संतुष्ट नहीं हैं। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में लगभग 75% से 88% उत्तरदाता अर्थव्यवस्था के प्रति अपनी सरकार की प्रतिक्रिया से संतुष्ट नहीं थे। अर्थव्यवस्था और पर्यावरणीय मुद्दे के बारे में चिंताओं के एक समान स्तर पर होने से इस बात के स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि हमारे नज़रिये में बदलाव आ रहा है। सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि भारतीय जनता में विकास के अस्थिर रूपों और वायु प्रदूषण और जलवायु संकट के साथ इसकी कड़ी के बीच की एक महत्वपूर्ण समझ है। जिन उत्तरदाताओं ने वायु प्रदूषण को अपनी मुख्य चिंता के रूप में चुना, उनमें से 91.5% इस से भी सहमत थे कि पर्यावरण के लगातार दोहन से भारत में वायु प्रदूषण, वाटर स्ट्रेस (जल तनाव) और जलवायु परिवर्तन बढ़ रहा है। दिलचस्प बात यह है कि जिन लोगों ने चीन को अपनी मुख्य चिंता के रूप में चुना, उनमें से केवल आधे इस बात से सहमत थे। सर्वेक्षण 27 अक्टूबर 2020 और 7 नवंबर 2020 के बीच फेसबुक के मैसेंजर ऐप के द्वारा किया गया था। दिल्ली और अन्य शहरों ने अभी ही पटाखों पर बैन की घोषणा की है। बैन से सर्वेक्षण के अंतिम कुछ दिनों में जवाबो के पैटर्न में बदलाव नहीं हुआ, जिससे पता चलता है कि उत्तरदाताओं का यह मानने की संभावना नहीं है कि बैन की घोषणा से वायु प्रदूषण कम होगा। पटाखों पर बैन एक ज़िम्मेदारी भरा कदम लग सकता है लेकिन असल में यह इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि प्रदूषण जैसे गम्भीर मुद्दे को कितने हल्के में लिया जा रहा है। पटाखों पर बैन लगा देने से समस्या का हल नहीं निकलेगा। साल भर की दिक़्क़त के लिए इस तरह जल्दबाज़ी से उठाया गया कदम हवा की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद नहीं करेगा। असलियत यह है कि भारत में जीवाश्म ईंधन को जलाना और फसल अवशेषों का जलना वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है। प्रदूषण को कम करने के लिए हमें स्रोत पर जाने की आवश्यकता है। पटाखे बस पहले से खराब स्थिति को बदतर बनाते हैं, लेकिन यह समस्या का मुख्य स्रोत नहीं है। कोविड-19 महामारी के बादल अभी भी हमारे आस पास मंडरा रहे हैं और ऐसे में हवा की गुणवत्ता में सुधार की प्रतिक्रिया युद्ध स्तर पर होनी चाहिए।
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