धार्मिक परंपराओं का मकसद केवल मानव कल्याण : कोविंद - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

धार्मिक परंपराओं का मकसद केवल मानव कल्याण : कोविंद

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पुरी 20 फरवरी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग धार्मिक परंपराओं का पालन किया जाता है और इन सबका मकसद मानव कल्याण के लिए होता है। गौड़ीय मठ एवं मिशन के संस्थापक श्रीमन भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद की 150वीं जयंती के तीन साल तक चलने वाला समारोह का उद्घाटन करने के बाद श्री कोविंद ने कहा कि भगवान की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है लेकिन भक्ति के साथ भगवान की पूजा करने की परंपरा भारत में महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने कहा कि कई महान संतों ने यहां नि:स्वार्थ पूजा की है। ऐसे महान संतों में श्री चैतन्य महाप्रभु का विशेष स्थान है। उनकी असाधारण भक्ति से प्रेरित होकर लोगों ने भारी संख्या में भक्ति का मार्ग चुना। श्री चैतन्य महाप्रभु कहते थे कि मनुष्य को वह स्वयं को घास से भी छोटा समझकर नम्रतापूर्वक ईश्वर का स्मरण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी मनुष्य को अहंकार नहीं करना चाहिए और वृक्ष से अधिक सहिष्णु होना चाहिए तथा दूसरों को सम्मान देना चाहिए। यह भावना भक्ति मार्ग पर चलने वाले सभी लोगों में पाई जाती है। श्री चैतन्य महाप्रभु का ईश्वर के प्रति निरंतर प्रेम और समाज को समानता के सूत्र से जोड़ने के उनके अभियान ने उन्हें भारतीय संस्कृति और इतिहास में एक अद्वितीय प्रतिष्ठा प्रदान की है। उन्होंने कहा कि भक्ति मार्ग के संत धर्म, जाति, लिंग और कर्मकांड के आधार पर उस समय के प्रचलित भेदभाव से परे थे। इसलिए सभी वर्ग के लोग न केवल उनसे प्रेरित हुए बल्कि इस मार्ग की शरण भी ली। राष्ट्रपति ने गुरु नानक देव जी के बारे में बताते हुए कहा कि गुरु नानक देव जी ने भक्ति मार्ग पर चलते हुए पक्षपातहीन समाज के निर्माण का प्रयास किया। राष्ट्रपति ने कहा , “ हमारी संस्कृति में जरूरतमंदों की सेवा को शीर्ष प्राथमिकता दी गई है। हमारे डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों ने कोविड महामारी के दौरान सेवा की भावना दिखाया। वे भी कोविड से संक्रमित थे लेकिन इतनी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लोगों के इलाज में लगे रहे। हमारे कई कोरोना योद्धाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी लेकिन उनके साथियों का समर्पण अटूट रहा। ऐसे योद्धाओं का पूरा देश हमेशा ऋणी रहेगा।” उन्होंने कहा कि श्री चैतन्य महाप्रभु के अलावा भक्ति आंदोलन के अन्य महान संतों ने भी हमारी सांस्कृतिक विविधता में एकता को मजबूत किया। भक्ति समुदाय के संत अपनी शिक्षाओं में एक-दूसरे का खंडन नहीं करते थे बल्कि अक्सर एक-दूसरे के लेखन से प्रेरित होते थे। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में अपने भाषण में विश्व समुदाय को भारत का आध्यात्मिक संदेश देते हुए कहा था कि जैसे विभिन्न स्थानों से निकलने वाली नदियां अंत में समुद्र में मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते भले ही अलग-अलग लगें लेकिन अंत में सभी भगवान तक पहुंचते हैं। भारत की आध्यात्मिक एकता के इस सिद्धांत का प्रचार रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद ने किया था। जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी अपनाया था। राष्ट्रपति ने कहा कि गौड़ीय मिशन मानव कल्याण के अपने उद्देश्य को सर्वोपरि रखते हुए श्री चैतन्य महाप्रभु के संदेश को दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाने के अपने संकल्प में सफल होगा। श्री कोविंद शनिवार से ओडिशा के दो दिवसीय यात्रा पर हैं। 

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