बिहार : विधान परिषद चुनाव में भी तीसरे स्‍थान पर पहुंच सकता है जदयू - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 28 मार्च 2022

बिहार : विधान परिषद चुनाव में भी तीसरे स्‍थान पर पहुंच सकता है जदयू

  • ‘सादगीपूर्ण भ्रष्‍टाचार’ में अधिकतर निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं शामिल

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विधान परिषद की 24 सीटों के लिए हो रहे चुनाव का प्रचार काफी तेज हो गया है। मतदान 4 अप्रैल को होना है, जबकि मतगणना 7 अप्रैल को होगी। मतदान में लगभग एक सप्‍ताह का समय रह गया है। इस बीच वीरेंद्र यादव न्‍यूज ने सभी जिलों में मतदाताओं से बातचीत की, स्‍थानीय राजनीतिक कार्यकर्ताओं से विमर्श किया और कुछ उम्‍मीदवारों के दावों को टटोलने का प्रयास किया। इस बातचीत में एक बात साफ हो गयी है कि लोकल बॉडी के विधान परिषद चुनाव में भी जदयू को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।  विधानसभा चुनाव की तरह उसे तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ सकता है। स्‍थानीय स्‍तर पर जिन क्षेत्रों में भाजपा के उम्‍मीदवार हैं, वहां जदयू के कार्यकर्ता गठबंधन के पक्ष में जमकर काम कर रहे हैं, लेकिन जहां जदयू के उम्‍मीदवार हैं, वहां भाजपा के कार्यकर्ता निष्क्रिय दिख रहे हैं। इसका नुकसान जदयू को होता दिख रहा है, जबकि भाजपा कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता का लाभ राजद उम्‍मीदवारों को मिल रहा है। लोगों से बातचीत के बाद वीरेंद्र यादव न्‍यूज का आकलन है कि विधान परिषद चुनाव में भाजपा अपनी 13 सीटों में से 10 सीट पर जीत दर्ज कर सकती है, जबकि जदयू अपनी 11 सीटों में से 5 सीट निकाल सकता है। इधर, राजद अपने गठबंधन के साथ 24 में से 7 सीट निकाल सकता है। 2 सीटों पर कांग्रेस या निर्दलीय की भी जीत की उम्‍मीद है।


विधान परिषद चुनाव में ‘वोट के बदल नोट’ का फार्मूला हर क्षेत्र में प्रभावी है। एक वोट भी फ्री में मिलने की चर्चा नहीं है। लेकिन वोट की कीमत को लेकर बातें बढ़ा-चढ़ाकर की जा रही हैं। किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में वोट की कीमत 10 हजार रुपये से अधिक नहीं है। एक वोटर तक अधिकतम 10 हजार रुपये ही पहुंच रहे हैं। इसके साथ यह बात भी है कि नोट डिस्‍ट्रीब्‍यूशन में भी काफी पैसों की खपत हो रही है। यह चुनाव दलीय आधार पर हो रहा है। इसलिए सभी पार्टी ने अपने सांसद, विधायकों एवं पार्टी पदाधिकारियों को वोट समेटने का निर्देश दिया है। सांसद, विधायक या पार्टी पदाधिकारी वोट मैनेज करने में मध्‍यस्‍थ की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। ये पार्टी, संगठन या जाति के नाम पर वोट की कीमत कम करवाने में उम्‍मीदवार की मदद कर रहे हैं। लेकिन बिना पैसे के एक वोट भी कोई पार्टी नेता नहीं दिलवा पा रहे हैं। ‘सादगीपूर्ण भ्रष्‍टाचार’ के इस चुनाव में हर निर्वाचित जनप्रतिनिधि शामिल हैं। इस चुनाव में वोट की कीमत पर बहस हो सकती है, बिना कीमत के वोट पर बात नहीं हो सकती है। इस बातचीत में यह भी बात निकलकर सामने आयी कि वरीयता के आधार पर मतदान का मतलब क्‍या होता है, यह वोटरों को पता ही नहीं है। जबकि इस चुनाव में जितने उम्‍मीदवार हैं, वोटर सबके पक्ष में मतदान कर सकता है। उन्‍हें हर उम्‍मीदवार की वरीयता तय करनी होती है। वरीयता के फेर में वोटर उलझ नहीं जाये, इसलिए उम्‍मीदवार बस एक वोट देने की चर्चा करते हैं और बैलेट पेपर का नमूना दिखाकर क्रम संख्‍या, नाम और फोटो समझाकर वोट करने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। कुल मिलाकर पैसों की ताकत पर लोकतंत्र को ‘खरीदने’ के इस महापर्व में हर निर्वाचित जनप्रति‍निधि अपने लिए उचित मूल्‍य वसूलने की कोशिश में जुटा हुआ है। यह सामान्‍य धारणा बनी है कि विधान परिषद के चुनाव में निर्वाचित उम्‍मीदवार सदन में पहुंच कर विकास योजनाओं में लूट का हिस्‍सेदार बनने का हक पा लेगा। इसलिए इन उम्‍मीदवारों से पैसे वूसलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। 





----- वीरेंद्र यादव न्‍यूज --------

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