विशेष : जैवीक खेती से हुई आजीविका में बढ़ोतरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

विशेष : जैवीक खेती से हुई आजीविका में बढ़ोतरी

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शहर के चकाचौंध से कोसों दूर रहने वाली बाँसवाड़ा जिले  ग्रामीण क्षेत्र की  वागधारा संस्था की हजार से ज्यादा महिलाएं सक्षम समूह से जुड़कर कम लागत में जैविक खेती करने का हुनर सीख रही हैं। ये अब बाजार से खाद और बीज खरीदने के लिए चक्कर नहीं लगाती बल्कि घर पर ही केंचुआ खाद और दसपरनी  दवाइयां बनाकर कम लागत में बेहतर उपज ले रही हैं। इनकी रोजी-रोटी का मुख्य जरिया खेती है और खेती में सब्जी का उपज कर रही हैं।    अतएव  घर की खाद और दवाइयों का इस्तेमाल करके सब्जियों की बेहतर उपज ले रही हैं। अगर हम राजस्थान  के बाँसवाड़ा जिले के आनंदपूरी,गागडतलाइ पहाड़ी और सुदूर गाँवों की बात करें तो यहाँ रहने वाले परिवार सदियों से परम्परागत तरीके से खेती करते आये हैं जिससे ये खानेभर की ही उपज ले पाते थे। ये महिला किसान मेहनती तो थीं पर इन्हें खेती करने के आधुनिक तौर-तरीके नहीं पता थे इसलिए ये मेहनतकस किसान बेहतर उपज नहीं ले पाते थे। यहां की महिलाएं बेहतर तरीके से खेती करें जिससे उनकी आय बेहतर हो और ये आर्थिक रूप से सशक्त महसूस कर पाएं इस दिशा में के तहत इन्हें कम लागत में बेहतर उपज के तौर-तरीके सिखाए जा रहे हैं। ये महिला किसान खेती के साथ-साथ बागवानी भी कर रही हैं। जिससे इन्हें खेती के साथ बागवानी से भी इजाफा हो रहा है। क्षेत्र की ये महिलाएं कभी घर से नहीं निकलती थीं, अब अपनी खेती की जैविक उपज बाजार में बेच रही है | अपने विगत दिनों के बारे में आनंदपूरी तहसील के डिफोर ग्राम निवाशी जशोदा फुलचद  हुवार बताती है की , "जब जानकारी नहीं थी तब खेतों में सालभर खाने की पूर्ति हो जाए तो बड़ी बात होती थी। अब तो खाते भी हैं और बेचते भी हैं। पिछले साल  आधा बीघा  खेत में  प्याज लगाई  जो 5 क्विंटल का उपज हुआ जो हमने १५००० रुपये की आमदनी हुई |


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जशोदा आगे बताती है मेरे पास तीन भीगा जमीन है  जिसमें 2 भीगा में मक्का  लगाईं थी बाकी आधा  भीगा  में अरहर और सब्जियां (बैगन, मिर्च, टमाटर) से 50 हजार की सब्जियां बेची एवम आधा भीगा में प्याज  लगाई थी। इतनी अच्छी उपज होगी हमें भी नहीं पता था। अगर समूह से न जुड़ते न तो हमें खेती करने की अच्छी जानकारी मिल पाती और न हम इतना कम पाते।"  वागधारा गठित सक्षम महिला समूह  से जुड़ी महिलाओं की विशेषता ये है कि सिर्फ एक फसल पर निर्भर नहीं रहती। खेत ज्यादा न होने की वजह से ये जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों में कई तरह की मौसमी सब्जियां उगाते हैं जिससे इनकी रोज की आमदनी हो सके। ये किसान महिला सक्षम  समूह  मिश्रित खेती से कमा रही मुनाफा, दूसरे किसान भी ले रही सीख जब ये महिलाएं सामूहिक तरीके से मिलकर कम लागत में खेती करने का हुनर सीखती हैं तो इनका आत्मविश्वास बढ़ता है और ये मिलकर काम करती हैं। इनमे से अगर किसी एक महिला की अच्छी पैदावार हो जाती तो दूसरी महिलाएं देखादेखी खुद भी अच्छे तरीके से खेती करने लगती हैं। खेती का हुनर सीखने के बाद अब ये महिलाएं सब्जी बेचकर अपने रोज के खर्चे के साथ फसल बेचकर मुनाफा भी कमा लेती हैं जिससे ये अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पा रही हैं। जिले की हजारों महिलाएं सच्ची खेती का प्रशिक्षण वाग्धारा से  लेकर सब्जियों के साथ विभिन्न तरह की फसलें ले रही हैं। बाँसवाड़ा  जिले के कुसलगड  ब्लॉक के बोर खेडी गाँव में    महिला सक्षम  समूह की सदस्य अपने जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों में सब्जियां उगाती हैं और वहीं एक हिस्से में केंचुआ खाद, गोबर खाद भी बनाती हैं। कई किसानों ने अजोला भी लगाया है जिससे खेत को खाद मिल सके। ये महिला किसान खेत में सब्जियां उगाने से लेकर बेचने तक का काम खुद करती हैं। ये खेतों में मजदूर नहीं लगाती खुद मेहनत करती हैं .

 

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बाँसवाड़ा  जिले के कुसलगड  ब्लॉक के चुडादा गाँव  की महिला किसान सविता कटारा कहती है की में खेत में कोई भी जगह हम खाली नहीं छोड़ते उसका कुछ न कुछ उपयोग कर लेते हैं।" उन्होंने बताया, "सब्जियों के साथ पपीता  बाजार में बेच लेते हैं।सक्षम  समूह की महिलाएं आपस में एक दूसरे से बीज भी बाँट लेती हैं जिससे इन्हें बाजार में बीज खरीदने भी नहीं जाना पड़ता। सविता कटारा ने बताया, "घर का खर्चा चलाने के लिए सब्जी ही एक जरिया है। इसलिए हम लोग मेहनत से खेती करते हैं। कोशिश रहती है कि बाजार में पैसा खर्च करके खेती में न लगाएं इसलिए घर पर ही खाद और दवा बना लेते हैं।" इन दवाइयों का ये करते हैं अपने खेतों में इस्तेमाल सब्जियों में उनकी बढ़ोत्तरी से लेकर कीड़ो से छुटकारा पाने के लिए ये महिलाएं कीटनाशक दवाइयां खुद बनाती हैं। सब्जियों में लगने वाले छोटे कीड़े के लिए नीमास्त्र और बड़े कीड़े के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग करती हैं। पांच किलो नीम का पत्ता कूटकर लेना है और 10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र लेकर 15 दिन के लिए एक बर्तन में रख देते हैं। 50 डिसमिल खेत में इतनी दवा का दो बार में छिड़काव करते हैं। एक बार छिड़काव करने के लिए 40 लीटर पानी मिलाना है। ब्रह्मास्त्र बनाने की विधि- फसल में बड़ा कीड़ा मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग करते हैं। दो किलो नीम के पत्ता, दो किलो सीताफल, आधा किलो तीखी लाल मिर्च, दो किलो करेला पत्ता, आधा किलो लहसुन। पूरी सामग्री को कूचकर 10 किलो देसी गाय की पेशाब में खौलाना है। ये आग पर तब तक खौलाना है जब तक पेशाब पांच किलो तक न बचे। इसके बाद इसे छानकर रख लेंगे। इतनी दवा एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। सात दिन में 200 ग्राम ब्रह्मास्त्र को 40 लीटर पानी के साथ छिड़काव करना है। वागधारा के सच्ची खेती की जैविक प्रणाली अपनाने हेतु इन सक्षम महिला समूह को प्रशिक्षण देकर प्रशिक्षित किया गया है ,और जैविक दवाई बनाना सिखाया जाता है और  इस जनजातीय अचल में समुदाय के बाजार की निर्भरता को कम करने एवं समुदाय के टिकाऊ चिरतन आजीविका हेतु प्रयासरत है।

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