सम्पादकीय : हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 21 जून 2022

सम्पादकीय : हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं

violence-no-solution-agniveer
कुछ वर्ष पहले की बात है। रविवार का दिन था। मेरे बचपन के मित्र आशुतोष मुझसे मिलने घर पर आए थे ,उनके साथ एक युवक भी था। आशुतोष ने ही परिचय कराया - ये मनु हैं ,भारतीय सेना में कार्यरत हैं। मालूम चला कि मनु अपनी ट्रेनिंग पूरी कर सीमा क्षेत्र में पदस्थापन के बाद कुछ दिनों की छुट्टी में अपने घर आए हैं। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद ही मनु का चयन भारतीय सेना के जवान के रूप में हो गया था। मैंने मनु से पूछा - ' कैसा लग रहा है मनु ,सेना में भर्ती होकर और बॉर्डर में पोस्टिंग पाकर ?' बिलकुल तपाक से मनु ने जवाब दिया था - " भैया ,लगना क्या है ,मजा आ रहा है। मुझे तो बस यही लगता है कि आगे सीमा रेखा है और सामने लहलहाता मेरे देश का तिरंगा झंडा। जान चली जाएगी पर अपने देश का झंडा नहीं झुकने दूंगा।" मैं कुर्सी से उठ खड़ा हुआ था और मनु को जोर से गले लगा लिया। अनायास ही मेरे मुंह से निकला - " जब देश की सीमा पर तुम जैसे जवान खड़े हैं ,तभी हम सुरक्षित बेफिक्र चैन की नींद सो पाते हैं। गर्व है ,सीमा पर देश की सुरक्षा करने वाले तुम जैसे जांबाज प्रहरियों पर। " एक 19 - 20 साल का साधारण परिवार का नौजवान ,भारतीय सेना का सम्मानित सिपाही ,जिसकी ऐसी भावना हो ,ऐसे विचार हों ,उस देश के युवाओं को अपनी ऊर्जा ,दिल और दिमाग हमेशा देश की मर्यादा ,कीर्ति ,गरिमा और संसाधन को सुरक्षित संरक्षित रखने में ही लगानी चाहिए। देश सेवा का जज्बा ,राष्ट्रभक्ति और कर्त्तव्य परायणता के लिए किसी नारेबाजी की जरुरत नहीं होती वह तो आपके विचारों और कार्यों में स्वतः झलक जाती है। जरुरी नहीं कि सरकार के सभी फैसलों से आप सहमत हों या समझने में कहीं संवाद रिक्तता हो। किसी भी समस्या का हल संवाद से ही सुलझ सकता है ,बातचीत से मसला हल हो सकता है ,नया रास्ता निकल सकता है।  हिंसा ,उपद्रव ,मार पीट ,तोड़ फोड़ ,आगजनी ,देश के संसाधनों को विध्वंस करना एक सभ्य समाज से लिए न तो उचित है , न व्यावहारिक और न ही क्षम्य है। पूरी दृढ़ता के साथ हमारा मानना है कि देश की सेवा और सुरक्षा का सपना संजोने वाले युवा व छात्र कभी गलत दिशा अख्तियार कर हिंसा और आगजनी जैसी निकृष्ठ हरकत नहीं कर सकते , यह घृणित कार्य भावी राष्ट्र प्रहरियों की आड़ में समाज व देश विरोधी ताकतें ही कर सकती हैं ,जिनका रोकथाम व उपचार करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। राष्ट्र की संपत्तियों को नुकसान से बचाने के समुचित उपाय हों और दोषी चाहे कितना भी प्रभावशाली  हो ,कड़ी सजा जरूर सुनिश्चित की जानी चाहिए। पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक विरोध और मतभिन्नता स्वाभाविक है लेकिन देश पहले है और विरोध की सीमा रेखा जरूर निर्धारित की जानी चाहिए ,एक स्वतः स्फूर्त नीति का पालन सभी को अवश्य करना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि युवाओं की जिज्ञासा को शांत करें ,विभिन्न माध्यमों से सीधा संवाद कर उनके भ्रम और संवादहीनता को दूर करने का प्रयास करें और एक बेहतर अवसर की संरचना देश के युवाओं के समक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश करें। कहते हैं कि बात करने से ही बात बनती है और जब मन से मन की बात होगी तो बेहतर प्रतिफल अवश्य उदीयमान होगा। ध्यान रखना होगा कि युवा शक्ति ही राष्ट्र की शक्ति है ,इसे अच्छे कामों में लगाएं ,देश हित में उपयोग करें ,इसी में राष्ट्र और सबका उज्जवल भविष्य निहित है। देश हम सभी का है तो उसकी मान मर्यादा और गरिमा भी सभी के लिए सर्वोपरि है। दिग्भ्रमित नहीं हो ,सही - गलत का फैसला खुद कीजिए । किसी की कुंठा की हवन अग्नि का शांति जल बनने के लिए खुद का दुरुपयोग होने से आप ही स्वयं को रोक सकते हैं। सोचिए ,विचार जरूर कीजिए।






विजय सिंह ,लाइव आर्यावर्त

जय हिन्द।

कोई टिप्पणी नहीं: