आलेख : कश्मीर के बर्फानी बाबा (अमरनाथ तीर्थ) - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 26 जून 2022

आलेख : कश्मीर के बर्फानी बाबा (अमरनाथ तीर्थ)

amarnath-yatra
भारतवर्ष तीर्थों की पवित्र भूमि है। इस धरा पर शायद ही ऐसा कोई प्रांत होगा जहाँ तीर्थस्थल न हों। ये तीर्थस्थल दीर्घकाल से भारतीय जनमानस की आस्था एवं विश्वास के प्रमुख केंद्र रहे हैं। कश्मीर प्रांत में स्थित 'अमरनाथ' नामक तीर्थस्थल का विशेष महत्व है। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में इस तीर्थ को ‘अमरेश्वर’ बताया गया है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित शिव के द्वादश ज्योतिर्लिगों: सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी-विश्वनाथ आदि के अतिरिक्त ‘अमरनाथ’ का विशेष महत्व है। शिव के प्रमुख स्थलों में अमरनाथ अन्यतम है। अत: अमरनाथ को तीर्थो का तीर्थ कहा जाता है। अमरनाथ तीर्थस्थल जम्मू-कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 141 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 3,888 मीटर (12756 फुट) की ऊंचाई पर स्थित है। इस गुफ़ा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। यह गुफ़ा लगभग 150 फीट क्षेत्र में फैली है और गुफ़ा 11 मीटर ऊंची है तथा इसमें हज़ारों श्रद्धालु समा सकते हैं। प्रकृति का अद्भुत वैभव अमरनाथ गुफ़ा, भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। एक पौराणिक गाथा के अनुसार भगवान शिव ने पार्वती को अमरत्व का रहस्य (जीवन और मृत्यु के रहस्य) बताने के लिए इसी गुफ़ा को चुना था। मृत्यु को जीतने वाले मृत्युंजय शिव अमर हैं, इसीलिए 'अमरेश्वर' भी कहलाते हैं।श्रद्धालु 'अमरेश्वर' को ही अमरनाथ कहकर पुकारते हैं।शिव-भक्त इसे बाबा अमरनाथ या बर्फानी-बाबा भी कहते हैं। अमरनाथ हिंदी के दो शब्द “अमर” अर्थात “अनश्वर” और “नाथ” अर्थात “भगवान” को जोड़ने से बनता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व के रहस्य को प्रकट करने के लिये कहा, जो वे उनसे लंबे समय से छिपा रहे थे,तब यह रहस्य बताने के लिये भगवान शिव, पार्वती को हिमालय की इस गुफा में ले गए, ताकि उनका यह रहस्य कोई भी न सुन पाये और यहीं पर भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।


११ मीटर ऊँची अमरनाथ गुफा में पानी की बूंदों के जम जाने की वजह से ठोस बर्फ की एक सुंदर मूर्ति बन जाती है। हिन्दू धर्म के लोग इसी बर्फीली मूर्ति को शिवलिंग मानते है। कहा जाता है की भगवान शिव पहलगाम (बैल गाँव) में नंदी और बैल को छोड़ गए थे। चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटाओं से चन्द्र को छोड़ा था और शेषनाग सरोवर के किनारे उन्होंने अपना साँप छोड़ा था। महागुनास (महागणेश पहाड़ी) पर्वत पर उन्होंने भगवान गणेश को छोड़ा था। पंजतारनी पर उन्होंने पाँच तत्व: धरती, पानी, हवा, आग और आकाश छोड़ा था। और इस प्रकार दुनिया की सभी वस्तुओं  का त्याग कर भगवान शिव ने वहाँ तांडव नृत्य किया था और अंत में भगवान शिव देवी पार्वती के साथ पवित्र गुफा अमरनाथ आये थे। इतिहासकारों का विचार है कि अमरनाथ यात्रा हज़ारों वर्षों से चली या रही है तथा अमरनाथ-दर्शन का महत्त्व पुराणों में भी मिलता है। बृंगेश सहिंता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिणी आदि में इस तीर्थ का बराबर उल्लेख मिलता है। नीलमत पुराण में अमरेश्वर के बारे में दिए गए उल्लेख से पता चलता है कि इस तीर्थ के बारे में छठी-सातवीं शताब्दी में भी लोगों को जानकारी थी। कश्मीर के महान् शासकों में से एक थे 'जैनुलबुद्दीन' (1420-70 ईस्वी), जिन्हें कश्मीरी लोग प्यार से ‘बड़शाह’ कहते हैं। माना जाता है कि उन्होंने भी अमरनाथ गुफ़ा की यात्रा की थी।(इस बारे में इतिहासकार जोनराज ने उल्लेख किया है।) अकबर के इतिहासकार अबुल-फ़जल (16वीं शताब्दी) ने आइना-ए-अकबरी में भी उल्लेख किया है कि अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। गुफ़ा में बर्फ़ का एक बुलबुला बनता है जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। स्वामी विवेकानन्द ने 1898 में 8 अगस्त को अमरनाथ गुफ़ा की यात्रा की थी और बाद में उन्होंने गदगद होकर कहा कि मुझे, सचमुच,लगा कि बर्फ़ का लिंग स्वयं शिव हैं। मैंने ऐसी सुन्दर, इतनी प्रेरणादायक कोई चीज़ नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक-स्थल की यात्रा का इतना आनन्द आया ।


इस यात्रा का सबसे अच्छा समय गुरु पूर्णिमा और श्रावण पूर्णिमा के समय में होता है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्रद्धालुओ/तीर्थयात्रियों की सुख-सुविधाओ के लिये रास्ते भर में सभी सुविधाए उपलब्ध करवाई हैं ताकि भक्तजन आसानी से अपनी अमरनाथ यात्रा पूरी कर सकें । जम्मू से लेकर पहलगाम (7500 फीट) तक की बस-सेवा भी उपलब्ध है। अधिकारिक तौर पर यात्रा का आयोजन राज्य-सरकार श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के साथ मिलकर कराती है। सरकारी एजेंसी यात्रा के दौरान अपेक्षित सभी सुख-सुविधाए श्रद्धालुओ को प्रदान करती है, जिनमें ऊनी कपडे, खाना, टेंट, टेलीकम्यूनिकेशन जैसी सभी सुविधाए शामिल हैं। इस के अलावा गुफा के रास्ते में बहुत सी समाजसेवी संस्थाए श्रद्दालुओ को खाना, आराम करने के लिये टेंट या पंडाल की व्यवस्था भी करते हैं । निचले कैंप से पंजतारनी (गुफा से 6 किलोमीटर) तक की हेलिकॉप्टर सुविधा भी अब उपलब्ध है। अमरनाथ की यात्रा श्रीनगर स्थित दशनामी अखाड़ा से श्रावण मास की पंचमी तिथि को प्रारम्भ होती है और पहलगाम में रुकती है और पुन: द्वादशी तिथि को प्रस्थान प्रारम्भ होता है। श्रावण मास में पवित्र हिमलिंग के दर्शनार्थ हज़ारों लोग भिन्न-भिन्न प्रदेशों से यहाँ आते हैं। जैसा कि पूर्व में कहा गया कि गुफा में ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें यत्र-यत्र गिरती रहती हैं और यहीं पर एक ऐसा स्थान है, जहाँ इन बूंदों से लगभग दस फुट ऊँचा शिवलिंग बनता है। चंद्रमा के घटने-बढने के साथ ही इस हिमलिंग का आकार भी परिवर्तित होता है, जो श्रावण पूर्णिमा को अपने पूर्ण रूप में आ जाता है तथा अमावस्या तक धीरेधीरे छोटा हो जाता है। विस्मय का विषय यह है कि गुफा में सामान्यतः कच्ची बर्फ ही दिखाई देती है जो भुरभुरी होती है लेकिन यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है। मुख्य शिवलिंग से कुछ दूरी पर गणेश, भैरव तथा पार्वती के पृथक्-पृथक् हिमलिंग रूप भी दृष्टिगत होते हैं।


अमरनाथ की गुफा तक पहुँचने के लिए सामान्यतः दो मार्ग हैं, प्रथम पहलगाम मार्ग और दूसरा सोनमर्ग-बालतल मार्ग।पहलगाम मार्ग अपेक्षाकृत सुविधाजनक है जबकि बालतल मार्ग हालांकि अमरनाथ की गुफा से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन यह मार्ग अत्यंत दुर्गम है। सामान्यतः यात्री पहलगाम मार्ग से ही अमरनाथ यात्रा करते हैं।  पहलगाम से अमरनाथ की दूरी 45 किलोमीटर है। इस यात्रा मार्ग में चंदनबाड़ी, शेषनाग तथा पंचतरणी तीन प्रमुख रात्रि पड़ाव हैं। प्रथम पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से 12.8 किलोमीटर की दूरी पर है। तीर्थयात्री पहली रात यहीं पर बिताते हैं। दूसरे दिन पिस्सू घाटी की चढ़ाई प्रारम्भ होती है। चंदनबाड़ी से 13 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह चढ़ाई अत्यंत दुर्गम है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। पूरी यात्रा में पिस्सू घाटी का मार्ग बहुत कठिन है। पिस्सू घाटी समुद्र तल से 11,120 फुट की ऊँचाई पर है। इसके पश्चात् यात्री शेषनाग पहुँचते हैं। लगभग डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली हुई झील अत्यंत सुंदर है। तीर्थयात्री रात्रि में यहीं विश्राम करते हैं। तीसरे दिन यात्रा पुनः आरम्भ होती है। इस यात्रा मार्ग में महागुणास दरें को पार करना पड़ता है। महागुणास से पंचतरणी का पूरा रास्ता ढलान-युक्त है। छोटी-छोटी पाँच नदियों के बहने के कारण यह स्थान पंचतरणी नाम से प्रसिद्ध हुआ है। पंचतरणी से अमरनाथ की पवित्र गुफा 6 किलोमीटर की दूरी पर है। गुफा के समीप पहुँचकर पड़ाव डाल दिया जाता है तथा प्रात:काल पूजन इत्यादि के पश्चात् शिव के हिमलिंग के दर्शनोपरांत भक्तजन पुण्य लाभ के भागीदार बनते हैं। 


जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका हैं कि शिव ने पार्वती को अमरत्व का उपदेश इसी गुफा में दिया था। जब वे उन्हें उपदेश दे रहे थे तो उस समय कपोतद्वय(दो कबूतर)भी वहीं आसपास मौजूद थे जिन्होंने यह उपदेश सुना। श्रद्धालु इन्हें अमरपक्षी कहते हैं जो शिव द्वारा पार्वती को दिए गए अमरत्व के उपदेश को सुनकर अमर हो गए। आज भी जिन श्रद्धालुओं को ये कपोतद्वय दिखाई देते हैं, तो ऐसा माना जाता है कि उन्हें शिव-पार्वती ने अपने प्रत्यक्ष दर्शन दिए हैं। प्रतिवर्ष सम्पन्न होने वाली इस पुण्यशालिनी यात्रा से अनेक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि अमरनाथ दर्शन और पूजन से महापुण्य प्राप्त होता है। शास्त्रों में इंद्रिय निग्रह पर विशेष बल दिया गया है जिससे मुक्ति की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में वर्णित है कि अमरनाथ यात्रा ‘निग्रह’ के बिना ही मुक्ति प्रदान करने वाली है क्योंकि यात्राक्रम में आने वाली कठिनाइयों तथा गंतव्य-स्थल पर पहुँचकर होने वाले हर्ष-विषाद मिश्रित अनेकविध अनुभवों के कारण तीर्थयात्री को विविध प्रकार के सांसारिक कष्टों का बोध होता है तथा साथ ही शिव के हिमलिंगरूप के दर्शन से उसका हृदय इतना संयमित हो जाता है कि इंद्रिय-निग्रह किए बिना ही उसे मुक्ति प्राप्त होती है। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि अमरेश्वर/अमरनाथ के दर्शन अत्यंत पुण्यप्रदायी हैं। बाबा अमरनाथ अपने भक्तों के समस्त भवरोगों यथा: आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक दु:खों का समूल नाश करते हैं।  आमरनाथ-यात्रा से संबंधित एक अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यावहारिक तथ्य यह है कि यह यात्रा पारस्परिक सद्भाव के प्रचार-प्रसार का कार्य भी करती है। विभिन्न प्रांतों से शिव के दर्शनार्थ आने वाले लोगों में परस्पर समभाव की भावना विकसित होती है, विभिन्न भाषा-भाषी लोगों में परस्पर वार्तालाप होता है, भाईचारे की भावना का विकास होता है और विभिन्न प्रांतों की भौगोलिक जानकारी का आदान-प्रदान भी होता है।अत: अमरनाथ तीर्थ को तीर्थाटन के अतिरिक्त श्रद्धा,ज्ञान एवं सौहार्द के समुच्चय के रूप में माना जा सकता है।




शिबन कृष्ण रैणा 

अरावली विहार,

अलवर 

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