इसी बीच उसकी नजर यूके में एवोकाडो के पैकेट पर पड़ी जिसमें लिखा था कि यह फल इजराइल से आयातित है. उसने सोचा जब इजराइल जैसे गर्म देश में इस फल की खेती हो सकती है, फिर भारत में क्यों नहीं? वह अनुसंधान में लग गया. वर्ष 2013 में 16 वर्ष की आयु में यूके में पढ़ने गया और 2017 में ही उसने किसानों के लिए उन्नत और लाभकारी खेती की बात सोचकर एवोकाडो की नर्सरी का स्टार्टअप शुरू करने का मन बना लिया. 2017 में इंटर्न पूरा करते ही वह इजराइल की ओर रुख किया. इस दौरान उसने इंटरनेट पर एवोकाडो के बारे में काफी जानकारी हासिल कर इससे जुड़ी दुनिया के व्यापारियों और किसानों से संपर्क साध चुका था. हर्षित चूंकि कम उम्र से ही सोलो टूरिज्म में दिलचस्पी लेता रहा, इसलिए उसे अकेले इजराइल जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई. वहां एक महीना रहकर उसने बाकायदा एवोकाडो से जुड़ी हर गतिविधियों का प्रशिक्षण लिया, फिर भोपाल वापस आकर अपनी पुश्तैनी जमीन पर इंडो-इजराइल एवोकाडो नर्सरी स्टार्टअप शुरू किया. वह खुद अपनी कंपनी के निदेशक हैं. उन्नत एवोकाडो के लिए वह अपने साथ इजराइल से प्रशिक्षक को भी ले आया.
पहले उसने भोपाल में अपनी पुश्तैनी जमीन के तापमान को कूलर, पंखे, ड्रिप इरिगेशन आदि से व्यवस्थित किया, मिट्टी की सेहत ठीक की. जिससे एक भी पौधा नष्ट न होने पाए. हालांकि उसे पहले से ही मालूम हो गया था कि एवोकाडो की सबसे अच्छी किस्म के लिए भारत के दक्षिणी भाग का जलवायु उपयुक्त है. फिर भी उसने भोपाल में इसकी बागवानी को उपयुक्त बनाने का जोखिम लिया. पहले परीक्षण के तौर पर उसने इजरायल से 1800 पौधे मंगवाए. उसे डेवलप किया. फिर किसानों को इस फल से होने वाले आमदानी व इसके व्यावसायिक महत्व को समझाया. धीरे-धीरे किसान स्वास्थ्य और व्यावसायिक दृष्टि से एवोकाडो के महत्व को समझने लगे. सोशल मीडिया के माध्यम से उसके काम की जानकारी इतनी फैल गई कि किसान स्वयं हर्षित को इस पौधे के लिए अग्रिम राशि देने लगे. उसने और 4 हजार पौधे इजराइल से मंगवाए. अब उसकी पूरी नर्सरी एवोकाडो के पौधों से पट चुकी है. सारे पौधों के ग्राहक पहले से ही तैयार हैं.
हर्षित ने बताया कि 2019 में जब उसने एवोकाडो की नर्सरी को डेवलप करना शुरू किया ही था कि 2020 में कोविड-19 की वजह से लॉकडाडन लग गया. इससे इजराइल से पौधों को मंगवाने के लिए सरकार की औपचारिकताएं पूरी करने में काफी समय खर्च हो गया. उसने कहा कि उसकी नर्सरी का जो डेवलपमेंट इस समय है वह मात्र एक साल का परिश्रम है. हर्षित ने कहा कि पौधों से एवोकाडो फल आने में करीब 4-5 साल का समय लग जाता है. कोई किसानों इतने समय तक इंतजार नहीं कर सकता है, इसलिए पौधों की बिक्री शुरू कर दी, ताकि पैसे का रोटेशन बना रहे. मात्र 25-26 साल का हर्षित खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए तरह-तरह की तरकीब सोचने लगा है. उसके अनुसार खेती लाभ का धंधा किसान इसलिए नहीं बना पाते हैं, क्योंकि वह रबी और खरीफ के अलावा कुछ सोच ही नहीं पाते हैं. जब नए-नए प्रोडक्ट पर सोचेंगे और 12 महीना हम खेतों में समय देंगे तभी खेती लाभ का धंधा बन बन सकता है.
लागत के बारे में हर्षित बताते हैं कि जमीन तो उनके पास थी, पौधे के लिए मिट्टी को तैयार करना था. इसमें इजराइल के मेंटोर उनके काम आए. ड्रिप इरिगेशन और सारे खर्च मिलाकर करीब 40 लाख रुपए लगे. उसने बताया कि एवोकाडो की सबसे अच्छी किस्म के लिए भारत के दक्षिणी भाग का तापमान सही है. वहीं भोपाल में लगने वाले पौधे गुणवत्ता में दूसरे नंबर पर हैं. फिर भी वह कोशिश कर रहे हैं कि यहां भी उच्च क्वालिटी की एवोकाडो लोगों को कम कीमत पर मिल पाए. वैसे उसका कहना है कि इसकी खपत ज्यादातर मेट्रो शहरों, जहां टूरिज्म ज्यादा है वहां होती है. एक एकड़ में करीब डेढ़ से दो किलो तक एवोकाडो मिल पाता है और इस पेड़ की लाइफ 6 से 7 साल की होती है.
ज्ञात रहे कि को एवोकाडो को शरीर में इम्युनिटी बढ़ाने वाला फल माना जाता है. इसमें विटामिन के साथ साथ मैग्नीशियम और ज़िंक की भरपूर मात्रा पाई जाती है जो न केवल आंखों के लिए लाभदायक है बल्कि डिप्रेशन को भी कम करने में मदद करता है. फिलहाल ये सुपरफूड भारत में बहुत महंगा बिकता है. करीब 800 से लेकर 1200 रुपए प्रति किलो है. इसका पीक सीजन जनवरी में होता है जब फ्लावरिंग होती है. अगस्त में फसल तैयार हो जाती है. हर्षित अब युवाओं के प्रेरणा स्रोत बन गए हैं. विदेश में पढ़ाई करने के बावजूद उसने बागवानी करने का फैसला लिया और न सिर्फ अपनी सेहत के बारे में सोचा, बल्कि देश और किसानों के बारे में भी सोचा और उन्हें लाभ अर्जित करने वाले इस नए प्रोडक्ट से जोड़ा.
रूबी सरकार
भोपाल, मप्र
(चरखा फीचर)
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