रक्षाबंधन पर बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई उसे रक्षा का वचन देता है। लेकिन अब स्थिति बदल रही है। अब बहनें न केवल भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है, बल्कि उनकी रक्षा भी कर रही है। मुसीबतों में भाईयों के सामने चट्टान की तरह खड़ी हो जाती है। इतना ही नहीं बहनें न केवल परिवार की जिम्मेदारी संभाल रही हैं, बल्कि भाइयों की हर संभव मदद कर मिसाल बना रही हैं। वैसे भी भाई और बहन का रिश्ता कच्चे धागे की डोर और विश्वास के ताने-बाने से बुना संसार का सबसे प्यारा रिश्ता है। दुवाओं का आधार पाकर खड़ा होने वाला यह निश्छल नाता मासूमियत के स्नेह से पोषण पाता है। जिसे ना समय बदल सकता है और ना ही उम्र। तभी तो प्रेम और आपसी समझ का भाव हमेशा कायम रहता है। इस रिश्ते में सुख-दुःख सब साझा है। यूं तो रक्षाबंधन उस धागे का नाम है जो एक बहन अपने भाई की कलाई पर उसकी सलामती की दुआ के साथ बांधती है। लेकिन औपचारिकताओं से परे और अपनेपन से भरे भाई-बहन के स्नेहिल रिश्ते में और बहुत कुछ होता है, जो इस बंधन को मजबूती देता हैरक्षा सूत्र हर उस इंसान को बांधा जा सकता है, जो हमें मुश्किलों से बचा सके। साथ ही इस सूत्र को बांधने के पीछे भावना है कि जिस व्यक्ति को ये सूत्र बांधा जा रहा है, उसकी सभी विपत्तियों से रक्षा हो। उसके जीवन में सौभाग्य बना रहे और हर तरह की परेशानियां उससे दूर रहें। रक्षा सूत्र बहन अपने भाई को तो गुरु अपने शिष्य को, बच्चे अपने माता-पिता को, माता-पिता बच्चों को एक-दूसरे के सौभाग्य की कामना से बांधें। इस दिन अपने-अपने इष्ट देव को भी रक्षा सूत्र बांध सकते हैं। यह सच है कि विकास और आधुनिकता की चकाचौंध में सबसे ज्यादा असर अगर किसी पर डाला है तो वे हमारे रिश्ते ही हैं। इंटरनेट, तकनीक, एक्सपोजर और बढ़ती महत्वाकांक्षाएं ये तमाम ऐसे पहलू है जिन्होंने इंसान की सोच को बदलाव की ओर उन्मुख किया है। लेकिन भाई और बहन का एक ऐसा पवित्र रिश्ता हैं, जिसका उत्साह कम दिखाई नहीं देता। बदलती जीवन शैली या यूं कहे दुनियावी बर्ताव की तपिश और स्वार्थ साधने की सोच से परे होने के भाव ने इस रिश्ते की मिठास को अभी बचाएं रखा है। परंपरागत तरीके से भाई-बहन का प्रेम भरा ये रिश्ता निभाई जा रही है। प्यार, विश्वास और मुस्कुराहट की ये अनोखी डोर दिलों को बांधने वाली है। तभी तो भाई-बहन के रिश्ते को मिश्री की तरह मीठा और मखमल की तरह मुलायम माना जाता है। दूरियां चाहकर भी जगह नहीं बना सकती इस स्नेहिल रिश्ते में। राखी का पर्व इसी पावन रिश्ते और स्नेह को समर्पित हैं। इस बंधन की गहराई का जादू ही है कि नेह का यह नाता आज भी जीवंत हैं। भाई को बड़ी बहन में मां का अक्स और छोटी बहना गुड़िया ही नजर आती है तो बहन को बड़ा भाई शक्ति स्तंभ और छोटू अपनी जान से प्यारा लगता है। समय के साथ जरूरत और महत्व के अनुसार बदलाव ही किसी चीज को खास बनाता है। यह बातें रिश्ते और त्योहार पर भी लागू होती है। बदलाव को स्वीकारना ही सही मायने में समय के साथ चलना है। खास यह है कि बदलते समाज में महिलाओं की भूमिका भी बदल रही है। महिलाएं सामाजिक आर्थिक मोर्चो पर पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन रही है। अपनी सुरक्षा खुद करने में सक्षम हो रही है। महिलाओं के आत्मनिर्भर होने को राजनीतिक, सामाजिक सहमति भी मिल रही है। ऐसे में परिवार में अब बहनों को भी वो हक व अधिकार मिले जो एक भाई का होता है। किसी के परिवार में सिर्फ लड़कियां ही है तो उन्हें भी रक्षाबंधन के दिन कमी का एहसास ना हो, इसके लिए बहन बहन को भी रक्षासूत्र बांधे। या यूं कहे परिवार का हर सदस्य इस खास दिन को एक दूसरे को धागा बांधकर परिवार में एकजुटता और मजबूत बंधन के प्रतीक का दिन बना लें, जहां सब बराबर हो। कोई किसी से कम या ज्यादा नहीं। कोई किसी पर निर्भर ना हो। आपस में कुछ हो तो केवल प्रेम यूं भी भारतीय पारिवारिक मूल्यों को खास बनाते हुए। इससे पहले की नई पीढ़ी के बच्चे रक्षाबंधन को बीते जमाने की रस्म मानकर औपचारिकता निभाने तक सीमित कर दें, हमें इस परिवार में प्यार के बीज बोने होंगे।
नारी का सच्चा स्वरुप बहन के रिश्ते में ही होता है प्रकट
यूं तो नारी, मां, बेटी या पत्नी के विभिन्न रुपों में पुरुषों से जुड़ती है पर उन सब में अपनत्व और अधिकार के साथ-साथ, कहीं न कहीं कुछ पाने की लालसा रहती है। नारी का सबसे सच्चा स्वरुप बहन के रिश्ते में ही प्रकट होता है। मां-बाप भले ही लड़के-लड़कियों में भेद करें पर बहन के मन में ऐसा करने का चाव होता है जिससे भाई के जीवन में खुशहाली रहे। यही वजह है कि भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन यानी रक्षा की कामना लिए कच्चे धागों का ऐसा बंधन जो पुरातन काल से इस सृष्टि में रक्षा के आग्रह और संकल्प के साथ बांधा और बंधवाया जाता है। देखा जाए तो रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन का त्योहार नहीं है बल्कि ये इंसानियत का पर्व है। यह अनेकता में एकता का पर्व है, जहां जाति और धर्म के भेद-भाव को भूलकर एक इंसान दूसरे इंसान को रक्षा का वचन देता है और रक्षा सूत्र में बंध जाता है। रक्षा सूत्र के विषय में श्रीकृष्ण ने कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। रक्षा बंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार है, एक मामूली सा धागा जब भाई की कलाई पर बंधता है, तो भाई भी अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हो जाता है। बहनों का स्नेह, प्यार और दुलार भाइयों के लिए उनके सुरक्षा कवच का काम करता है। वहीं बहनों का मान-सम्मान भाइयों की प्राथमिकता होती है। आजकल बहनें ज्यादा सजग हो गई हैं। अब वे भाइयों के पीछे नहीं, उनके बचाव में सबके सामने खड़ी होने लगी हैं। शायद इसी सेवा भाव के रिश्ते को नमन करते हुए चिकित्सा परिचर्या में लगी महिलाओं को सिस्टर कहा जाता है। वो लोग बड़े खुशकिस्मत होते हैं जिनके बहनें होती हैं क्योंकि जीवन में यह एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जिससे आप बहुत कुछ सिखते हैं। पुरुषों के चारित्रिक विकास में मां-बाप से भी ज्यादा एक बहन का संवाद ज्यादा असर करता है। बहन से संवाद से ना केवल पुरुष के नकारात्मक विचारों में कमी आती है बल्कि उसके अंदर नारी जाति के लिए आदर भी पनपता है।
बहन का प्यार ही स्वस्थ समाज की बुनियाद
रक्षाबंधन पर्व की भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फिल्में भी इससे अछूते नहीं हैं। गुरुकुल परंपरा के अंतर्गत शिक्षा पाने वाला युवा जब शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था, तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बांधता था, जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बांधता था कि वह भावी जीवन में अपने ज्ञान कासमुचित ढंग से प्रयोग करे। मौजूदा समय में पूजा आदि के अवसर पर बांधा जाने वाला कलावा भी रक्षा-सूत्र का ही प्रतीक होता है, जिसमें पुरोहित और यजमान एक-दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए एक-दूसरे को अपने बंधन में बांधते हैं। रक्षा-बंधन का पर्व हमारे सामाजिक ताने-बाने में इस प्रकार रचा-बसा हुआ है कि विवाह के बाद भी बहनें भाई को राखी अवश्य बांधती हैं, फिर चाहे उनका ससुराल मायके से कितनी ही दूर क्यों न हो। या तो वे भाई के घर इसी विशेष प्रयोजन से स्वयं पहुंचती हैं अथवा भाई उनके घर आ जाते हैं। अगर आना-जाना संभव न हो, तो डाक से राखी अवश्य भेज दी जाती है। आज के दौर में महिलाओं पर जो अत्याचार बढ़ रहे हैं, उसका मूल कारण यही है कि लोग बहन की अहमियत भूलते जा रहे हैं। बेटों का वर्चस्व बढ़ने और बेटियों को उपेक्षित करने से समाज खोखला होता जा रहा है। गौर कीजिए एक समय, बहन जी शब्द में अपार आदर छलकता था और लोग किसी भी बहन के लिए न्योछावर होने के लिए तत्पर रहते थे। आज इन रिश्तों की सामाजिक अहमियत कम होने के कारण ही महिला उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं। जबकि सच यह है कि बेटियों में छिपा बहन का प्यार ही स्वस्थ समाज की बुनियाद गढ़ पायेगा।
जहां महिलाएं खुश, वहीं तरक्की
वैसे भी हिन्दू धर्म में स्त्रियों का मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है। लगभग हर घर में मां लक्ष्मी मां, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में वास करती हैं। अगर घर की महिलाएं खुश रहती हैं तो घर में धन-दौलत की कभी कमी नहीं होती है। इससे बड़ी बात और क्या होगी कि जो बहन और बेटियां दुसरे घर की अमानत हो गयी है, लेकिन रक्षाबंधन के दिन जरुर भाई की कलाई पर राखी बांधने जरुर पहुंचती हैं। बहन के राखी बांधने के बाद भाई उसे तोहफा देता है। मनु स्मृति में स्वयं मनु ने बताया है कि ऐसी तीन चीजें हैं जिन्हें घर की महिलाओं को देने से घर में खुशहाली आती है। यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवताः। माता लक्ष्मी को घर का साफ और स्वच्छ माहौल बहुत ज्यादा पसंद होता है। जिस घर के पुरुष और महिलाएं दोनों साफ-सुथरे से रहते हैं और अच्छे वस्त्र धारण करते हैं, मां लक्ष्मी उनसे काफी प्रसन्न रहती हैं। ऐसे में रक्षाबंधन के दिन आप अपनी बहन को सुन्दर वस्त्र तोहफे के रूप में दें। जो लोग ऐसा नहीं करते हैं, उन्हें जीवन में दरिद्रता का मुख देखना पड़ता है। गहनों को भी मां लक्ष्मी का प्रतिरूप माना जाता है। जिस घर की महिलाएं सुन्दर गहनों से सजती-संवरती हैं, वहां मां लक्ष्मी का बसेरा हमेशा बना रहता है। घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। जब भी कोई विशेष त्योहार हो उस मौके पर पुरुषों को घर की महिलाओं को तोहफे में सुन्दर गहने देने चाहिए। सभी तोहफों से बढ़कर मीठी वाणी होती है। जिस घर के पुरुष महिलाओं को सम्मान देते हैं और उनसे अच्छे से बात करते हैं, उस घर पर मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। जिस घर की स्त्रियां चिंतित होती हैं, उस घर की तरक्की रुक जाती है। जहां महिलाएं खुश रहती हैं वहां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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