श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : मिलेगा बैकुंठ लोक वरदान, कट जायेंगे सारे पाप - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 4 सितंबर 2023

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : मिलेगा बैकुंठ लोक वरदान, कट जायेंगे सारे पाप

योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जगत पालक श्री हरि विष्णुजी के 8वें अवतार है। उनका जन्म द्वापर युग में धर्म की रक्षा के लिए हुआ था। उनका पूरा जीवन ही रोमांचक कहानियों से भरा पड़ा है। चाहे बचपन में नंद किशोर की शैतानियां हो या जवानी में गोपियों के साथ की गयी रासलीला हो, मित्रता हो, राजा का कर्तय हो, युद्ध में दिया गया गीता का ज्ञान हो या सच का साथ, हर घड़ी में श्रीकृष्ण ने मानवता या यूं कहे इंसानियत व धर्म का संदेश दिया है। यही वजह है कि हर तबका उनके आदर्शो को न सिर्फ आत्मसात करता है, बल्कि जन्मदिन भी बड़े ही धूमधाम से मनाता है। खास बात यह है कि वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार जन्माष्टमी के मौके पर ऐसा संयोग है कि यदि जिस किसी ने भी विधि विधान से पूजा-अचर्ना की, उसके सारे पाप नष्ट तो होंगे ही वह जन्म बंधन से मुक्त होते हुए प्राणी परम दिव्य बैकुंठ धाम का निवासी हो जायेगा। बता दें, इस बार जन्माष्टमी 6 और 7 सितंबर दोनों दिन ही मनाई जाएगी। क्योंकि अष्टमी तिथि 6 और 7 दोनों तारीख को पड़ रही है। भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इसलिए दोनों दिन जन्माष्टमी मना सकते हैं। लेकिन इस बार जन्माष्टमी पर 30 साल बाद विशेष मुहूर्त बनने जा रहा है, क्योंकि इस साल सर्वार्थ सिद्धि योग, चंद्रमा वृष राशि में और रोहिणी नक्षत्र बन रहा है। साथ ही शनि देव 30 साल बाद अपनी स्वराशि कुंभ में संचऱण कर रहे हैं। जिससे 3 राशि के जातकों को आकस्मिक धनलाभ और भाग्योदय के योग बन रहे। सर्वाधिक चौकाने वालर बात यह है कि यदि भाद्र कृष्णाष्टमी यदि रोहिणी नक्षत्र और सोम या बुधवार से संयुक्त हो जाएं तो वो जयंती नाम से विख्यात होती है तथा ऐसा योग जन्म-जन्मान्तरों के पुण्यसंचय से मिलता है. जिस मनुष्य को जयंती उपवास का सौभाग्य मिलता है, उसके  यशोदा-नन्द के लाला और देवकी-वसुदेव के पुत्र भगवान श्री कृष्ण का उसे सीधे आर्शीवाद पाने का भागीदारी हो जाता है।

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वैसे भी कृष्ण कन्हैया की बाल लीलाओं पर कौन नहीं रीझता, उनकी रास लीला की गाथा भक्ति की पराकाष्ठा है तो उनकी विद्वता अपने में अनूठी। ऐसे सम्मोहक शख्सयित भगवान श्री कृष्ण को कैसे मिली, इसके पीछे उनके जन्म नक्षत्र की भूमिका भी मानी जाती है। श्री कृष्ण का जन्म भाद्र मास कृष्ण पक्ष में अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि को बारह बजे हुआ था। रोहिणी का स्वामी शुक्र है। इस नक्षत्र को वृष राशि का मस्तक कहा जाता है। इस नक्षत्र का शुक्र स्वामी होता है। इस कारण ऐसे लोग संगीत, काव्य और लेखन विधा में अत्यंत प्रवीण होते हैं। इनका दार्शनिक अंदाज सबको मनमोहित करते हुए अपने प्रेम के आगोश में डुबो देता है। इस दिन कृष्णोपासक दिनभर व्रत रखकर रात्रि में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। धर्मोपदेशक, रक्षक और संस्थापक द्वारकाधीश वासुदेव नन्दलाला बांकेबिहारी के जीवन का हररूप मोहक और प्रेरक है। कंस से दुराचारी के षड्यंत्रों से बचने से लेकर धर्मयुद्ध कुरुक्षेत्र में गीता का पाठ पढ़ाने वाले मुरलीधर की लीलाओं से विश्व सदैव लाभांवित होता आया है, चिरकाल तक होता रहेगा। देखा जाएं तो जन्माष्टमी के दिन भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था. हर साल जन्माष्टमी भाद्रपद माह के अष्टमी तिथि के दिन मनाई जाती है. 6 सितंबर को रोहिणी नक्षत्र में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी. खास यह है कि इस साल जन्माष्टमी पर तीस सालों के बाद ग्रह नक्षत्रों का विशिष्ट संयोग भी बन रहा है. पंचांग के अनुसार ग्रह नक्षत्रों की यह स्थिति भगवान कृष्ण की भक्ति और जन्म के लिए शुभ है. इस बार 6 सितंबर को बहुत ही शुभ जयंती योग भी बन रहा है. पंचाग के मुताबिक गृहस्थ लोगों के लिए 6 सितंबर के दिन जन्माष्टमी का व्रत रखना बहुत ही शुभ रहेगा. वहीं साधु और ऋषियों के लिए 7 सितंबर के दिन जन्माष्टमी का व्रत रखना शुभ रहेगा. पंचांग अनुसार 6 सितंबर के दिन तीन अत्यंत शुभ योग का निर्माण हो रहा है. हर्षण योग- रात्रि 10ः26 मिनट तक, स्वार्थ सिद्धि- पूरे दिन और रवि योग-सुबह 6 से 9ः20 तक रहेगा. हिन्दू पंचांग के मुताबिक भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर बुधवार का दिन और मध्य रात्रि में ही रोहिणी नक्षत्र का अनुक्रम रहने से सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है. इस दिन चंद्रमा अपने उच्च अंश में वृषभ राशि में विराजमान होंगे. ऐसे में यह योग पूजन में विशेष फल देने वाला है. इस दौरान सर्वार्थसिद्धि योग में पूजा आराधना की जा सकती है.


इन चार राशियों की पलटेगी किस्मत

इस बार की जन्माष्टमी पर बाल गोपाल चार राशियों के लिए शुभ समाचार लेकर आएंगे. कर्क, वृश्चिक, सिंह और वृषभ राशि के लोगों की किस्मत चमकने वाली है. भाग्य इनका साथ देगा, धन लाभ के अलावा करियर में भी ग्रोथ होगी. सालों से अटके पड़े कार्य भी पूरे हो सकते हैं. वहीं, करियर में भी ग्रोथ होगी. अपार धन आने की प्रबल संभावना है. परिवार के साथ भी हंसी-खुशी के पल बीतेंगे. वृषभ राशि के जातकों का भाग्य पूरी तरह साथ देगा.


सिंह राशि

सिंह राशि वालों को जन्माष्टमी के अवसर पर सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी. वर्कप्लेस पर इनका मान-सम्मान बढ़ेगा, बड़े अधिकारी भी इनसे संतुष्ट रहेंगे. बरसों से रुका हुआ धन मिलने की संभावना है. कुल मिलाकर सिंह राशि के जातकों का समय अच्छा बीतेगा.


वृश्चिक राशि

इस राशि के लोगों की इनकम में ग्रोथ होगी, मुमकिन है कि प्रमोशन भी हो. यदि कोई बीमार है तो उसकी तबियत में भी सुधार देखने को मिलेगा. जिनसे रिश्ते बिगड़े हुए थे, वे अब सुधरेंगे. संपत्ति का लाभ होने के योग भी बन रहे हैं.  


कर्क राशि

यह जन्माष्टमी कर्क राशि के लोगों के लिए अच्छा वक्त लेकर आई है. इस राशि के लोगों का घर-परिवार और समाज में नाम ऊंचा होगा. विदेश यात्रा का भी योग है.


वैष्णव संप्रदाय सात सितम्बर को मनाएगा

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वैष्णव संप्रदाय के उदय व्यापिनी रोहिणी मतावलंबी वैष्णव जन सात सितंबर को व्रत पर्व मनाएंगे। अबकी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जयंती नामक विशिष्ट योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष व काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री प्रो. विनय कुमार पांडेय के अनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी छह सितंबर की शाम 7.58 बजे लग रही जो सात सितंबर की शाम 7.52 बजे तक रहेगी। रोहिणी नक्षत्र का आरंभ छह सितंबर को दोपहर 2.39 बजे हो रहा जो सात सितंबर को दोपहर 3.07 बजे तक रहेगी। ऐसे में छह सितंबर की मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र का संयोग होने से छह सितंबर को ही जन्माष्टमी मनाई जाएगी। यह जयंती व्रत अन्य व्रत की अपेक्षा विशिष्ट फल प्रदान करने वाली होती है। विष्णु रहस्य में कहा गया है कि ‘अष्टमी कृष्ण पक्षस्य रोहिणीऋक्षसंयुता भवेत् प्रौष्ठपदे मासी जयंती नाम सास्मृता...’।


जहां श्रीकृष्ण है वहां विजय निश्चित

वैसे भी श्रीकृष्ण अवतार से जुड़ी हर घटना और उनकी हर लीला निराली है। श्रीकृष्ण के मोहक रूप का वर्णक कई धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। सिर पर मुकुट, मुकुट में मोर पंख, पीतांबर, बांसुरी और वैजयंती की माला। ऐसे अद्भूत रूप को जो एकबार देख लेता था, वो उसी का दास बनकर रह जाता था। उनके जीवन से स्पष्ट है कि वे उस युग के आध्यात्मिक और राजनीतिक दृष्टा रहे है। समाज की मंगल कामना के लिए, धर्म, सत्य और न्याय को सिंहासन पर प्रतिष्ठित करने के लिए सज्जनों की रक्षा और दुर्जनों के समूल विनाश करने के लिए उन्होंने अवतार लिया था। तमाम उनके जीवन के क्रियाकलापों की गाथा कहते हुए धर्मग्रंथ यह उद्घोषणा करते है ‘जहां जहां श्रीकृष्ण है वहां वहां विजय निश्चित है। 


कर्म ही प्रधान

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चेहरे पर मुस्कान और मस्तिष्क में कर्म की दिशा का ज्ञान! बालसुलभ बातें और जीवन की गूढ़ समस्याओं के हल निकालने की गहरी समझ! यही श्रीकृष्ण के चमत्कारी व्यक्तिव के सबसे आकर्षक पहलू हैं। तभी तो कृष्ण की दूरदर्शी सोच समस्या नहीं बल्कि समाधान ढूँढने की बात करती है। वे उदासी नकारात्मकता के विरोधी है। कृष्ण यह समझाते, सिखाते हैं कि जीवन की लड़ाई संयम और सधी सोच के साथ लड़ी जाये। उनका जीवन इस बात को रेखांकित करता है कि जीवन में आने वाली हर तरह की परिस्थितियों में कहीं धैर्य तो कहीं गहरी समझ आवश्यक है। कर्म के समर्थक कृष्ण सही अर्थों में जीवन गुरु है। क्योंकि हमारे कर्म ही जीवन की दशा और दिशा तय करते हैं। कर्म की प्रधानता उनके संदेशों में सबसे ऊपर है। इसी कारण वे ईश्वरीय रूप में भी आम इंसानों से जुड़े से दीखते हैं। मनुष्यों ही नहीं संसार के समस्त प्राणियों के लिए उनका एकात्मभाव देखते ही बनता है। श्रीकृष्ण को दूध, दही और माखन बहुत प्रिय था। इसके अलावा भी उन्हें गीत-संगीत, राजनीति, प्रेम, दोस्ती व समाजसेवा से विशेष लगाव था। जो आज हमारे लिए प्रेरणाश्रोत और सबक भी है। उनकी बांसुरी के स्वरलहरियों का ही कमाल था कि वे किसी को भी मदहोश करने की क्षमता रखते थे। उन्होंने कहा भी है, अगर जिंदगी में संगीत नहीं तो आप सुनेपन से बच नहीं सकते। संगीत जीवन की उलझनों और काम के बोझ के बीच वह खुबसूरत लय है जो हमेसा आपको प्रकृति के करीब रखती है। आज के दौर में कर्कश आवाजें ज्यादा है। ऐसे में खुबसूरत ध्वनियों की एक सिंफनी आपकी सबसे बड़ी जरुरत हैं। जहां तक राजनीति का सवाल है श्रीकृष्ण ने किशोरावस्था में मथुरा आने के बाद अपना पूरा जीवन राजनीतिक हालात सुधारने में लगाया। वे कभी खुद राजा नहीं बने, लेकिन उन्होंने तत्कालीन विश्व राजनीति पर अपना प्रभाव डाला। मिथकीय इतिहास इस बात का गवाह है कि उन्होंने द्वारका में भी खुद सीधे शासन नहीं किया। उनका मानना था कि अपनी भूमिका खुद निर्धारित करो और हालात के मुताबिक कार्रवाई तय करो। महाभारत युद्ध में दर्शक रहते हुए भी वे खुद हर रणनीति बनाते और आगे कार्रवाई तय करते थे। जबकि आज पदो ंके पीछे भागने की दौड़ में राजनीति अपने मूल उद्देश्य को भूल रही है। ऐसे में श्रीकृष्ण की राजनीतिक शिक्षा हमें रोशनी देती हैं।





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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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