आलेख : शश व भद्र राजयोग और बुधादित्य योग में मनेगी नवरात्रि - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

आलेख : शश व भद्र राजयोग और बुधादित्य योग में मनेगी नवरात्रि

हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की प्रतिपदा तिथि 14 अक्टूबर को रात 11 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी। प्रतिपदा तिथि का समापन 15 अक्टूबर को रात 12 बजकर 32 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, शारदीय नवरात्रि इस बार 15 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी. पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगा. ऐसे में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त इस साल 48 मिनट ही रहेगा. कलश स्थापना के साथ पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. इसमें पूरे 9 दिनों तक दुर्गा मां के नौ स्वरूपों की पूजा-आराधना की जाती है. इस दौरान लोग माता दुर्गा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं. दसवीं यानी 24 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा. नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना करने का भी विशेष महत्व, लाभ और कुछ नियम होते हैं. हालांकि, शुभ मुहूर्त को देखकर ही कलश स्थापना की जानी चाहिए. मान्यता है कि कलश स्थापना करने से मां दुर्गा प्रसन्न होकर सभी भक्तों की इच्छाओं की पूर्ति करती हैं. उन पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं. इस वर्ष मां भगवती हाथी पर सवार होकर पृथ्वी पर आएंगी, जो शुभ संकेत है. इसके साथ ही 30 साल बाद शारदीय नवरात्रि की शुरुआत शश राजयोग, भद्र राजयोग और बुधादित्य योग के साथ होगी. पहले दिन इन तीन शुभ योग की तिकड़ी कई राशि वालों को जीवन में धन, नौकरी में अपार लाभ मिलेगा.

 

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वैसे तो ईश्वर का आशीर्वाद हम पर सदा ही बना रहता है, किन्तु कुछ विशेष अवसरों पर उनके प्रेम, कृपा का लाभ हमें अधिक मिलता है। पावन पर्व नवरात्र में देवी दुर्गा की कृपा, सृष्टि की सभी रचनाओं पर समान रूप से बरसती है। इसके परिणामस्वरूप ही मनुष्यों को लोक मंगल के क्रिया-कलापों में आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है। कलश स्थापना, देवी दुर्गा की स्तुति, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध। यह नौ दिनों तक चलने वाले साधना पर्व नवरात्र का चित्रण है। नवरात्र नवरात्र यानि नौ रातों का समूह। इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। देवी दुर्गा के नौ स्वरुप हैं-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। नवरात्र ही एक ऐसा वक्त है जिसमें ईश-साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है। इसीलिए माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय नवरात्र ही है। नवरात्र ही एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है। देवी दुर्गा की स्तुति, कलश स्थापना, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध- नौ दिनों तक चलने वाला आस्था और विश्वास का यह अनोखा त्योहार है। यही वजह है कि नवरात्र के दौरान हर कोई एक नए उत्साह और उमंग से भरा दिखाई पड़ता है। देवी दुर्गा की पवित्र भक्ति से भक्तों को सही राह पर चलने की प्रेरणा मिलती है। इन नौ दिनों में मानव कल्याण में रत रहकर, देवी के नौ रुपों की पूजा या आह्वान की जाय तो देवी का आशीर्वाद, शारीरिक तेज में वृद्धि, मन निर्मल, आत्मिक, दैविक, भौतिक शक्तियों का लाभ मिलता है, सभी संकटों, रोगों, दुश्मनों, प्राकृतिक आपदाओं से छुटकारा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त इन्हें साधना सिद्धि के लिये भी प्रयोग किया जा सकता है। तांन्त्रिकों व तंत्र-मंत्र में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के लिये यह समय और भी अधिक उपयुक्त रहता है। गृहस्थ व्यक्ति भी इन दिनों में माता की पूजा आराधना कर अपनी आन्तरिक शक्तियों को जाग्रत करते हैं। इन दिनों में साधकों के साधन का फल व्यर्थ नहीं जाता है। मां अपने भक्तों को उनकी साधना के अनुसार फल देती है। इन दिनों में दान पुण्य का भी बहुत महत्त्व कहा गया है। ज्योतिषि पं रामदुलार उपाध्याय की मानें तो इस बार का नवरात्र सभी के लिए विशेष उन्नतिदायक है।


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वैसे वर्ष में चार नवरात्र चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीने की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं, परंतु प्रसिद्धि में चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। इनमें देवीभक्त आश्विन यानी शारदीय नवरात्र अधिक करते हैं। इनको यथाक्रम वासन्ती और शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। इनका आरम्भ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से होता है। अतः यह प्रतिपदा ’सम्मुखी’ शुभ होती है। आश्विन महीने की नवरात्र में रामलीला, रामायण, भागवत पाठ, अखंड कीर्तन जैसे सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान होते है। रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है। इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्त्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं। वैसे भी पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियां हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं, अतः उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णतरू स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम नवरात्र है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमशः मन शुद्ध होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति यानी शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री के रुप में मां का स्थायी निवास होता है। इसीलिए नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं।


मुहूर्त

शश राजयोग - शारदीय नवरात्रि के पहले दिन शश राजयोग बन रहा है. शनि के प्रभाव से एक महायोग का निर्माण होता है जिसे शश राजयोग कहते हैं. कहते हैं जिसकी कुंडली में शश राजयोग बनता है उसके अच्छे दिन शुरु हो जाते हैं. वह राजा की तरह जिंदगी जीता है. धन, संपत्ति की कमी नहीं होती.


भद्र राजयोग - इस योग का संबंध बुध ग्रह से है. इस योग के प्रभाव से जातक लेखन, कारोबार के क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त करता है. उसकी बुद्धि, वाणी प्रभावशाली हो जाती है, जिससे कार्य में सफलता मिलने लगती है।     


बुधादित्य योग - सूर्य और बुध अभी कन्या राशि में विराजमान है, इससे नवरात्रि में बुधादित्य योग का लाभ भक्तों को मिलेगा. करियर और कारोबार में तरक्की के लिए इस योग को बहुत अच्छा माना जाता है. इसके प्रताप से जातक अपने जीवन में ऊँचा मुकाम हासिल करता है.


इन राशियों को होगा लाभ

वृषभ राशि - मेष राशि के लोगों के लिए शारदीय नवरात्रि अच्छे दिन लेकर आएगी. नवरात्रि पर बन रहा शुभ संयोग मेष राशि वालों के लिए आर्थिक लाभ लाएगा. भाग्य का अच्छा साथ आपको मिलेगा. मां दुर्गा की कृपा से आपकी नौकरी में चल रही परेशानियों का अंत होगा. कारोबार में अच्छी कमाई होगी. धन लाभ के नए स्तोत्र खुलेंगे. परिवार में खुशहाली आएगी.


कर्क राशि - नवरात्रि में योगों की तिकड़ी कर्क राशि वालों के लिए वरदान साबित होगी. व्यापार से जुड़े लोगों को दोगुना फायदा मिलेगा. काम को लेकर विदेश यात्रा सफल होगी. देवी दुर्गा के आशीर्वाद से परिवार में आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. छात्रों को नौकरी के अच्छे अवसर मिल सकते हैं.


मेष राशि - धन के मामले में मेष राशि वालों के लिए नवरात्रि बहुत शुभफलदायी होने वाली है. पुराना अटका धन वापिस मिलेगा. नौकरीपेशा लोगों को कार्यस्थल पर नई जिम्मेदारी मिल सकती है. संतान पक्ष की तरफ से खुशखबरी मिल सकती है. पैतृक संपत्ति से लाभ मिलेगा.


कलश स्थापना

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नवरात्रि के शुभारंभ पर कलश स्थापना का विधान है. माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में विधि-विधान से स्थापित किया गया कलश सुख, संपन्नता और आरोग्य लेकर आता है. कलश मिट्टी, सोना, चांदी या तांबा का होना चाहिए. लोहे या स्टील का कलश प्रयोग नहीं करना चाहिए.नवरात्रि के पहले दिन कलश की स्थापना घर की पूर्व या उत्तर दिशा में करनी चाहिए. इसके लिए कलश स्थापना वाली जगह को गंगा जल से शुद्ध करके वहां हल्दी से चौक पूरते हुए अष्टदल बनाना चाहिए. कलश में शुद्ध जल लेकर हल्दी, अक्षत, लौंग, सिक्का, इलायची, पान और पुष्प डालने के बाद कलश के बाहर रोली से स्वास्तिक बनाया जाना चाहिए. इसके बाद, कलश को पवित्र की गई जगह पर स्थापित करते हुए मां भगवती का आह्वान करना चाहिए. नवरात्रि पर कलश स्थापना किए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. नवरात्रि की शुरुआत बिना कलश स्थापना के नहीं होती है. मां दुर्गा की विधि-विधान से आराधना करने के लिए कलश स्थापना का विशेष महत्व है. इसे ही घटस्थापना भी कहा जाता है. माना जाता है कि यदि गलत मुहूर्त पर घटस्थापना की जाए तो इससे मां दुर्गा अत्यंत क्रोधिक हो सकती हैं. रात के समय और अमावस्या पर कभी भी कलश की स्थापना नहीं करनी चाहिए. कलश स्थापना करने से पूजा सफल माना जाती है. शुभ फल की प्राप्ति होती है. घर में सुख-समृद्धि आती है.


महत्वपूर्ण तिथियां

15 अक्टूबर : प्रतिपदा तिथि, पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी, घटस्थापना

16 अक्टूबर : द्वितीया तिथि, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी

17 अक्टूबर : तृतीया तिथि, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ दिन

18 अक्टूबर : चतुर्थी तिथि यानी चौथे दिन की जाएगी मां कुष्मांडा की पूजा

19 अक्टूबर : पंचमी तिथि, पांचवें दिन होगी मां स्कंदमाता की पूजा

20 अक्टूबर : षष्ठी तिथि पर की जाती है मां कात्यायनी की पूजा-आराधना

21 अक्टूबर : सातवें दिन, सप्तमी तिथि पर होगी मां कालरात्रि की पूजा

22 अक्टूबर : आठवां दिन, दुर्गा अष्टमी पर मां महागौरी की भक्त करेंगे पूजा-उपासना

23 अक्टूबर : महानवमी यानी नौवें दिन शरद नवरात्रि, व्रत पारण, कन्या पूजन, महागौरी पूजन

24 अक्टूबर : दशमी तिथि पर विजयादशमी (दशहरा), मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन   





Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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