इस बार के हिंसा के बारे में जानकार बताते है कि वास्तव में कंधमाल में समस्या 23 दिसंबर को शुरू हुई जब ब्राह्मणीगांव गांव के कुछ ईसाई एक हिंदू पूजा स्थल के सामने क्रिसमस गेट बनाना चाहते थे.स्थानीय हिंदुओं ने इस पर नाराजगी जताई, जिन्होंने हिंदू पूजा स्थल के पास दूसरा गेट बनाने पर जोर देने के ईसाइयों के मकसद पर सवाल उठाया, जबकि एक गेट पहले से ही उस स्थान पर बनाया गया था, जहां हर साल क्रिसमस की पूर्व संध्या पर ऐसा किया जाता है.इसके कारण आरंभिक झड़पें हुईं. चूंकि उक्त गांव में ईसाइयों की संख्या अधिक थी इसलिए हिंदुओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. यह बताया गया कि जैसे ही झड़प की खबर स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती तक पहुंची, जो एक निस्वार्थ हिंदू संत थे - जो चार दशकों से स्थानीय लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए काम कर रहे थे - वह 24 दिसंबर को ब्राह्मणीगांव के लिए निकले. उनकी कार पर एक हिंसक ईसाई भीड़ ने हमला किया था जिसमें स्वयं संत और उनके दो अनुयायियों को गंभीर चोटें आईं.स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती और उनके चार शिष्यों की 23 अगस्त 2008 को भारत के ओडिशा राज्य में हत्या कर दी गई थी.सरस्वती एक हिंदू भिक्षु और विश्व हिंदू परिषद की नेता थीं. इस मामले में ईसाई धर्म के सात आदिवासी और एक माओवादी नेता को दोषी ठहराया गया था. इस बार 25 अगस्त 2008 से 28 अगस्त 2008 जारी चार दिवसीय ईसाई विरोधी हिंसा कंधमाल में भयावह थी. सड़कों पर लोगों का कत्लेआम किया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, उन्होंने बच्चों को भी नहीं बख्शा! 400 गांवों में 6,000 घर जला दिए गए. 395 चर्चों को अपवित्र और ध्वस्त किया गया.आधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 39 थी, लेकिन वास्तव में यह 100 के करीब थी.हिंसा के तुरंत बाद 50,000 से अधिक लोगों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.उनका पूरा जीवन उजड़ गया.भूमि और आजीविका का नुकसान हुआ. पीड़ितों में से कई आदिवासी थे जो वन उपज पर निर्भर थे और एक बार जब उन्हें उनके गांवों से बेदखल कर दिया गया तो उन्होंने खुद को बनाए रखने के लिए संघर्ष किया.पीड़ितों में से कई दलित भी थे, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़न की कई परतों का सामना किया है और आज भी जारी है.इनमें से कई लोगों ने राहत शिविरों में अपना रास्ता खोज लिया.धीरे-धीरे, उनमें से कुछ नए सिरे से जीवन शुरू करने के लिए केरल और गोवा जैसे अन्य राज्यों में चले गए.लेकिन आज भी 5,000 से 6,000 लोग अपने घर वापस गांव जाने से डर रहे हैं. वे अभी भी गंदगी और अभाव के बीच राहत शिविरों में रहते हैं.हर दिन संघर्ष है.
एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, वेटिकन ने कांतेश्वर दिगल और उनके साथियों को संत घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी दे दी है, जो 2008 में कंधमाल में ईसाई विरोधी हिंसा के दौरान अपने विश्वास के लिए शहीद हो गए थे. इस हिंसा में 35 शहीदों में 24 पुरुष और 11 महिलाएं शामिल थीं.24-30 जनवरी, 2023 को आयोजित सीसीबीआई की 34वीं पूर्ण सभा ने कंधमाल शहीदों की घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कटक-भुवनेश्वर के आर्चबिशप जॉन बरवा, एसवीडी के अनुरोध पर मतदान किया और मंजूरी दे दी. इस बीच वेटिकन ने कंधमाल के 35 शहीदों को संत घोषित करने की प्रक्रिया की अनुमति दे दी है.उड़ीसा के कंधमाल में 2008 में ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा के दौरान अपने विश्वास के लिए शहीद हुए 35 लोगों की धन्य घोषणा प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति दे दी है. भारत के लिए वाटिकन के प्रेरितिक राजदूत महाधर्माधय्क्ष लेओपोलदो जिरेल्ली ने कटक भुनेश्वर के महाधर्माध्यक्ष जॉन बरवा को प्रेषित एक संदेश में कहा कि वाटिकन के संत प्रकरण विभाग ने ईश सेवक कंथेश्वर डिगल एवं उनके साथियों की धन्य घोषणा की प्रक्रिया शुरू करने के लिए “कोई आपत्ति नहीं” (नो ऑबजेक्शन) पत्र दे दिया है.पत्र में कहा गया है कि वाटिकन विभाग के 2 अक्टूबर के पत्र को, प्रेरितिक राजदूत सहर्ष महाधर्माध्यक्ष को प्रेषित करते हैं. विभाग ने महाधर्माध्यक्ष बरवा के 31 मई के पत्र का जवाब दिया है जिसमें वाटिकन से 35 लोगों को धन्य घोषित करने पर विचार करने का अनुरोध किया गया था.महाधर्माध्यक्ष बरवा के प्रस्ताव को बेंगलुरु में 24-30 जनवरी को आयोजित बैठक के दौरान भारत के काथलिक धर्माध्यक्षों के सम्मेलन द्वारा वाटिकन को मंजूरी दे दी गई थी और सिफारिश की थी.
कंधमाल पीड़ितों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता फादर अजय कुमार सिंह कहते हैं, "यह वास्तव में उन साधारण ग्रामीणों के लिए एक महान श्रद्धांजलि है, जिन्होंने कलवारी पर येसु का अनुसरण किया." फादर सिंह ने बताया कि कंधमाल के शहीद “विश्वास और येसु को इंकार करने के प्रलोभन के आगे झुक सकते थे क्योंकि अधिकांश हमलावरों ने मृत्यु या हिंदू धर्म में परिवर्तन का विकल्प दिया था.यह उनके विश्वास और आस्था का प्रमाण है कि वे आराम, परिवार और दुनिया से ऊपर हैं.'' ईश सेवक के बेटे राजेंद्र दिगल ने अपने पिता और अन्य लोगों को संत की उपाधि देने की प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति देने के लिए वाटिकन को धन्यवाद दिया है. “यह मेरे लिए गर्व का क्षण है कि मेरे पिता ख्रीस्त में विश्वास के लिए मर गए.वे पूरी दुनिया में ईश्वर पर दृढ़ विश्वास के सच्चे गवाह हैं.'' 35 शहीदों में 24 पुरूष और 11 महिलाएँ हैं.जो इस प्रकार है.1. फादर बेर्नार्ड डिगल, 2. जुबोराज डिगल,3. सिबिनो प्रधान, 4. राजापति डिगल,5.कंथेश्वर डिगल,6. विक्रम नायर, 7. राजेश डिगल, 8. त्रिनाथ डिगल,9. परिखिता नायर,10. सुचित्र डिगल, 11. लेन्सा डिगल, 12. सुबेदाना नायक,13. मायागिनी दिगल,14. झुनिमा पारीछा, 15. बास्टिना मोंट्री,16. प्रिया दर्शनी नायक,17. डस्टिना पारीछा,18. सिरेल पारीछा, 19. भूमिका दिग्गल, 20. तपन नायक,21. बदानी दिगल,22. दिगम्बर दिग्गल,23. ललिता दिग्गल,24. ऑगस्टीन डिगल,25. तिलेश्वर पलटासिंह,26. कुन्दन मोनट्री,27. हेमन्त दिग्गल,28. बिभीसन दिगल,29. रेबोटी पारीछा,30. मेलानियो डिगल,31. कृष्णा नायक,32. जमादेई प्रधान,33. बलियारसिंह डीगल,34. गोण्डा दिघल और 35. मेरी पानी है.
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