- शुकदेव इस संसार में भागवत का ज्ञान देने के लिए ही प्रकट हुए : कथा वाचक पंडित चेतन उपाध्याय

सीहोर। शुकदेव इस संसार में भागवत का ज्ञान देने के लिए ही प्रकट हुए है। शुकदेव का जन्म विचित्र तरीके से हुआ। कहते हैं बारह वर्ष तक मां के गर्भ में शुकदेव जी रहे। वहीं श्रीमद् भागवत कथा के प्रभाव से राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्त हुआ था। उक्त विचार शहर के बस स्टैंड के समीपस्थ गीता मानस भवन में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के अंतिम दिवस कथा वाचक पंडित चेतन उपाध्याय ने कहे। उन्होंने शुक्रवार को कथा के अंतिम दिन राजा परीक्षित मोक्ष और सुदामा चरित्र का वर्णन किया। शुकदेव परीक्षित संवाद का वर्णन करते हुए कहा एक बार राजा परीक्षित शिकार करते हुए घने वन में चले गए। उन्हें प्यास लगी। पास में समीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे। उन्होंने कहा ऋषिवर मुझे पानी पिला दो प्यास लगी है। लेकिन समीक ऋषि समाधि में थे इसलिए पानी नहीं पिला सके। परीक्षित ने सोचा इसने मेरा अपमान किया है मुझे भी इसका अपमान करना चाहिए। उन्होंने पास में से एक मरा हुआ सर्प उठाया ओर समीक ऋषि के गले में डाल दिया। यह सूचना पास में खेल रहे बच्चों ने ऋषि के पुत्र को दी। ऋषि के पुत्र ने नदी का जल हाथ में लेकर श्राप दे डाला जिसने मेरे पिता का अपमान किया है आज से सातवें दिन उसकी मौत हो जाए। समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित है। यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है। देवयोग वश परीक्षित ने आज वही मुकुट पहन रखा था। समीक ऋषि ने यह सूचना जाकर परीक्षित महाराज को दी। आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प पक्षी तुम्हें जलाकर नष्ट कर देगा।
सुदामा चरित्र का वर्णन किया
पंडित श्री उपाध्याय ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहाकि द्वारपाल ने द्वारिकाधीश से जाकर कहा, प्रभु द्वार पर एक ब्राह्मण आया है और आपसे मिलना चाहता है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है। यह सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने राजमहल के द्वार पर पहुंच गए। यह सब देख वहां लोग यह समझ ही नहीं पाए कि आखिर सुदामा में ऐसा क्या है जो भगवान दौड़े-दौड़े चले आए। बचपन के मित्र को गले लगाकर भगवान श्रीकृष्ण उन्हें राजमहल के अंदर ले गए। अपने सिंहासन पर बैठाकर स्वयं अपने हाथों से उनके पांव पखारे। सुदामा से भगवान ने मित्रता का धर्म निभाया। दुनिया के सामने यह संदेश दिया कि जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता। राजा हो या रंक मित्रता में सभी समान है। इसमें कोई भेदभाव नहीं होता। कथावाचक पंडित चेतन उपाध्याय ने सुदामा चरित्र के अलावा राजा परीक्षित के मोक्ष व कई अन्य भावपूर्ण कथाओं का भी वर्णन किया।
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