वर्ल्ड बैंक ने मंदी के लिए तैयार रहने को कहा. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

बुधवार, 18 जनवरी 2012

वर्ल्ड बैंक ने मंदी के लिए तैयार रहने को कहा.


पिछले बार की मंदी से दुनिया अभी कराह ही रही है कि वर्ल्ड बैंक ने एक और मंदी की आहट का एलान कर दिया है. बुधवार को वर्ल्ड बैंक ने संभावित मंदी का जिक्र करते हुए विकासशील देशों से तैयार रहने को कहा है. 

विश्व बैंक ने विकासशील देशों की सालाना विकास दर के अनुमान को 6.5 फीसदी से घटा कर 5.4 फीसदी कर दिया है. विकसित देशों का तो हाल और बुरा है. यहां विकास दर 2.7 फीसदी से घट कर 1.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है. यूरो मुद्रा इस्तेमाल करने वाले 17 यूरोपीय देशों के लिए तो विकास के बजाए नुकसान के आसार जताए गए हैं. पहले जताए गए 1.8 फीसदी विकास दर के अनुमान को अब -0.3 फीसदी कर दिया गया है.

दुनिया के विकास पर यूरोप की मंदी और भारत, ब्राजील जैसे दूसरे विकासशील देशों की सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था की रफ्तार का बुरा असर हो रहा है. विश्व बैंक ने कहा है कि यूरोपीय देश अगर वित्तीय बाजारों के लिए पैसा जुटाने में नाकाम रहे तो यह स्थिति और बुरी होगी. विश्व बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री जस्टिन यिफु लिन ने बीजिंग में कहा है, "दुनिया की अर्थव्यवस्था एक ऐसे दौर में पहुंच रही है जहां अनिश्चितता और खतरा है. पुंजी बाजारों के ठप्प पड़ने और दुनिया भर में मंदी का खतरा बिल्कुल वैसा ही है जैसा 2008 में हुआ था."

विकासशील देशों ने इस दौर में मजबूत विकास दिखाया है जबकि अमेरिका और यूरोप के देश संघर्ष कर रहे हैं. लिन का कहना है कि इन देशों को अपने बजट घाटे को पूरा करने, बैंकों की हालत दुरूस्त करने और सामाजिक सुरक्षा के कवच पर खर्च के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा. पत्रकारों से बाचतीत में लिन ने कहा कि कई देश तो 2008 की मंदी के मुकाबले काफी बुरी हालत में हैं क्योंकि इन देशों का कर्ज और बजट घाटा पहले से बढ़ गया है. लिन ने कहा, "मंदी की हालत में कोई देश अछूता नहीं रहेगा. आशंका है कि गिरावट पिछली बार से ज्यादा और लंबे समय तक रहेगी."

बैंक साल में दो बार दुनिया की अर्थव्यव्था की संभावनाओं पर रिपोर्ट जारी करता है. इसमें यूरोप के कर्ज संकट और अमेरिका में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या के गहराने का जिक्र है. विश्व बैंक की विकास परियोजनाओं के निदेशक हैंस टिमर ने कहा है, "बहुत मुमकिन है कि जर्मनी समेत ज्यादातर यूरोपीय देश पिछले साल की चौथी तिमाही में मंदी के दौर में पहुंच चुके हैं." टिमर ने बताया कि 2010 से तुलना करके देखें तो निवेशकों ने पिछले साल की दूसरी छमाही में विकासशील देशों में अपने निवेश में 45 फीसदी की कटौती की है. विश्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में उसी तरह की चेतावनियां दी गई हैं जो दूसरी प्रमुख संस्था अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और निजी संगठनों ने दिए हैं.

अमेरिका के लिए विश्व बैंक ने 2012 में सालाना विकास दर 2.9 फीसदी से घटा कर 2.2 फीसदी कर दी है जबकि 2013 के लिए इसे 2.7 फीसदी से घटा कर 2.4 फीसदी किया गया है. इसके पीछे वैश्विक मंदी और अमेरिका के टैक्स और ज्यादा खर्च को कारण बताया गया है. चीन के विकास की दर 2012 की आखिरी तिमाही में ढाई सालो में सबसे कम 8.9 फीसदी रही है जबकि इससे पहली तिमाही में यह 9.1 फीसदी थी. लिन ने कहा, "यूरोप के कमजोर पड़ने से विकाशील देशों में गिरावट ज्यादा बड़ी हो सकती है क्योंकि वो दूसरी तरफ महंगाई से भी जूझ रहे हैं." 

कोई टिप्पणी नहीं: