क्या सचमुच बदल रहा हैं बिहार ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

क्या सचमुच बदल रहा हैं बिहार ?

बिहार ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वो सबसे ज्यादा घटना प्रधान शहर हैं। खबर कोई भी हो अच्छा या बुरा जब ये बिहार में होती हैं तो घटना बन जाती हैं। सब कुछ वैसे ही हैं गन्दा और अनियोजित सा, सब अपने मर्जी के मालिक हैं और नागरिक जिम्मेदारी का कोई भाव नहीं हैं, फिर भी कही कुछ ये लगता हैं की बिहार एक ऐसी जगह हैं जहाँ बदलाव महसूस हो रहा हैं।

नए साल में बिहार में फिर से 'मिस बिहार' प्रतियोगिता शुरू होने वाली है वैसे इसमें जान डालने की शुरुवात २००८ से ही शुरू हो गयी थी की इस बार कुछ अच्छा और कुछ नया कर सके लेकिन संशय अभी भी बरकरार हैं । वैसे अंतिम बार यह प्रतियोगिता १९७० के दशक में हुई थी लेकिन ये एक अबूझ और अनकही पहेली जैसी कभी शुरू होती तो कभी बंद, कभी मिस बिहार जीतने वाली प्रतिभागी इलाहाबाद की निकलती तो कभी मिस बिहार शादी शुदा निकलती। वर्ष २००८ में तो यह प्रतियोगिता बिना किसी नतीजे के ही ख़तम हो गयी थी, कुछ प्रतिभागियों ने इसमें धोखा और बैमानी की बात कह मंच पर ही उत्पात मचाना शुरू कर दिया। साफ़ शब्दों में अगर कहे तो अखबार के पन्नो पर ये सिर्फ एक घटना बन कर रह गयी।

नए साल में १९ फ़रवरी,२०१२ को पटना मैराथन आयोजित होने जा रहा हैं। आयोजन का जिम्मा एक प्रवासी बिहारी का हैं जो अपने निवेश बैंकिंग से तीन महीने का अवकाश ले कर इस तैयारी को मुकल्लम अमली जामा पहनाने के लिए पटना में डेरा डाले हुए हैं। उनका कहना हैं की "मैराथन से एक मानवीय ऊर्जा सृजित होगी जो पूरी दुनिया में एक कारगर संकेत भेजेगी जो बिहार और बिहारियों की अंतहीन उपलब्धियों का गुणगान करेंगी।" उनका कहना हैं की समृधि केवल पटना तक ही क्यों सिमटी हैं । क्यों अभी भी हाइवे से २० किलोमीटर का बिहार वहीँ पर हैं जहाँ हमने इसे आज से ५ दशक पहले छोड़ा था।

इसी महीने नालंदा के एक युवा किसान सुमंत ने धान उत्पादन के क्षेत्र में विश्व कृतिमान कायम कर दिया। उन्होंने एक हेक्टेयर जमीन में २२४ क्विंटल धान उत्पादन करके चीनी कृषि वैज्ञानिक युआन लोंगपिंग को भी पीछे छोड़ दिया। सुमंत ने चार किसान साथियों के संग मिलकर 'श्री' जैसी नई तकनीक का इस्तेमाल किया जिससे कम पानी और बीच में अधिक पैदावार की जा सकती हैं।

इन सब कारणों के वाबजूद भी कई दूसरे कारण भी हैं जिससे यह बहुत ज्यादा नहीं लगता। देश में बिजली उपभोग के मामले में भी बिहार सबसे निचे हैं। यहाँ पर ६०० मेगावाट बिजली संयंत्रो की स्थापना हो चुकी हैं लेकिन अभी भी सिर्फ २०० मेगावाट उत्पादन ही हो रहा हैं। बढ़ में एक सुपरथर्मल बिजली संयंत्र बन रहा हैं लेकिन उसमे भी उत्पन्न कुल बिजली का केवल १० फीसदी ही राज्य को मिल सकेगा।

बिजली की बात अगर छोर भी दे तो भी जमीन की किल्लत राज्य में संभावित निवेशको को अपने से दूर कर रही हैं। साईकिल बनाने वाली दो बड़ी कंपनियों ने बिहार में संयंत्र लगाने की बात की लेकिन अब उनकी योजना भी टलती दिखाई दे रही हैं। यही हाल एक सीमेंट फेक्ट्री का भी हैं, उन्होंने भी राज्य में कारोबार शुरू करने का फैसला किया लिखे अब उसने भी अपने कदम पीछे की और मोड़ लिया हैं। एक एस्बेस्टस कंपनी भी राज्य में जमीन नहीं मिल पाने के कारण अपना धंधा शुरू नहीं कर पाया। एक बड़ी शराब कंपनी भी अपना समर्थन जाता रही थी लेकिन अब वो भी मौन दिख रही हैं।

लालू राज की जो अपहरण और फिरौती की सुर्खिया अखबारों से गायब हो गयी थी वो फिर से मुंह उठा रही हैं। बच्चे फिर से अगवा हो रहे हैं और पुलिस पर एक बार फिर लेट लतीफी होने का फब्ती कसा जा रहा हैं। गुंडे-बदमाशो की फिर से चल पड़ी हैं और फिर से कानून का मखौल उड़ाया जा रहा हैं। सड़क की ठेकेदारी जो अपराधियों की बपौती थी और जो कुछ ख़त्म सा लग रहा था फिर से शुरू होने लगा। निचे से भ्रष्टाचार बढ़ रहा हैं और आंच ऊपर तक पहुँच रही हैं। किसी के साथ अगर कोई घटना घट जाती हैं तो वो रिपोट लिखाने से भी डरता हैं। पुलिस वाले उन्हें सबसे बड़ा गुंडा नज़र आता हैं। लेकिन फिर भी बिहार बदल रहा हैं.... ।

बिहार में सबसे बड़ी समस्या खेती में भी हैं, कहीं धान जल जाता हैं तो कहीं बाढ़ की चपेट में आ जाता हैं। कभी अगर किस्मत से मानसून बढ़िया हो जाता हैं और पैदावार सही हो जाता हैं तो सरकार की खरीद तंत्र में गड़बड़ी हो जाती हैं। राज्य में कोई बड़ी मिल नहीं हैं। रैयाम और सकरी चीनी मिल पर ग्रहण लगा हुआ हैं। स्प्रिट एयरवेज ने बिहार को एक सपना दिखाया था सस्ते और सुलभ हवाई जहाज में उड़ने का लेकिन जीडीसीए के कारण इसमें भी अडंगा लगा हुआ है और ये योजना भी अधर में लटकी नज़र आ रही हैं।

योजना आयोग के सलाहकार ने सरकार पर आरोप लगाया हैं की वो सरकार योजना राशी के एक बड़े हिस्से का उपयोग नहीं कर पा रही हैं फलस्वरूप राज्य को १०,००० से १२,००० करोड़ रूपये की सहायता गवानी पड़ी हैं। उन्होंने आरोप लगाया हैं की इसके लिए कोई कारगार प्रशासनिक तंत्र नहीं हैं। उन्होंने एक मिसाल दिया की मध्याहन भोजन के लिए बिहार के १३०० करोड़ रूपये मिले जिसमे से उन्होंने केवल 780 करोड़ रूपये ही लिए जबकि और राज्यों ने पूरा का पूरा पैसा खपाया।

यह सही है कि बिहार रातोरात नहीं बदल पायेगा और ये भी सही हैं की इसे कोशिश करने के लिए pure pure अंक दिए जा सकते हैं। लेकिन मन के कोने में अभी भी एक सवाल तीस बनकर उभरता हैं की क्या सचमुच बिहार बदल रहा हैं या ये आज भी वहीँ हैं जहाँ ये पञ्च दशक पहले था।


सुनील कुमार झा 

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