राजस्थान में तीसरे मोर्चे के गठन की असलियत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 13 मार्च 2013

राजस्थान में तीसरे मोर्चे के गठन की असलियत


डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने उन फ्लॉप राजनेता पीए संगमा का दामन थामा है, जो स्वयं उन ईसाई आदिवासी जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हिन्दू धर्म को बदलकर भी अजजा कोटे का लाभ उठा रही हैं। ऐसे में डॉ. मीणा का आदिवासियों का राष्ट्रीय नेता बनने या राजस्थान के सभी आदिवासियों का नेता बनने और राजस्थान के सीएम बनने का सपना पहली ही सीढी पर टूटता नजर आ रहा है।



भारतीय जनता पार्टी की वसुन्धरा राजे राजस्थान सरकार में केबीनेट मंत्री रहे डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को भाजपा से निकाले जाने के बाद अपने क्षेत्र में डॉ. मीणा ने ये सिद्ध करने का प्रयास किया कि उनकी इच्छा या उनके समर्थन के बिना उनके क्षेत्र में कोई भी पार्टी जीत नहीं सकती है। वे इसमें कुछ सीमा तक सफल भी रहे और अपनी अपनढ पत्नी को कॉंग्रेस की अल्पमत की अशोक गहलोत सरकार में राज्य मंत्री बनवाकर अपनी राजनैतिक ताकत को सिद्ध भी किया।

प्रारंभ से ही इसके साथ-साथ डॉ. मीणा ने अपने आप को राजस्थान की मीणा अजजा का स्वयंभू नेता सिद्ध करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, जिसके एवज में डॉ. मीणा को मीणाओं ने अनेक बार, अनेक क्षेत्रों से लोकसभा और विधानसभा में पहुँचाकर अपना पुरजोर समर्थन भी दिया। इसी बीच डॉ. मीणा के नेतृत्व में मीणाओं का गुर्जर जाति से टकराव हुआ। जिसमें गुर्जरों के अलावा अनेक मीणा भी मारे गये। इसके उपरान्त भी डॉ. मीणा सबकुछ भुलाकर राजनीति के लिये गुर्जरों से हाथमिलाकर अपनी राजनीति की नयी पारी की शुरुआत करने निकले। जिसके तहत उन्होंने दक्षिणी राजस्थान में आदिवासी बहुल इलाके में अपनी गोटियॉं बिछायी, लेकिन स्थानीय नेताओं के वर्चस्व के कारण इसमें वे पूरी तरह से सफल नहीं हो सके और अन्तत: उन्हें उस क्षेत्र से बेदखल करके भगा दिया गया।

इसके विरोध में डॉ. मीणा ने अनशन का सहारा लिया, जिसमें राज्य मंत्री पद पर आसीन उनकी पत्नी ने भी साथ दिया और अन्तत: इसी के चलते उनकी पत्नी को राज्य मंत्री का पद गंवाना पड़ा। कुल मिलाकर स्थिति ये है कि प्रारंभ में संघ के आदर्शों पर चलने वाले डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने भाजपा और कॉंग्रेस दोनों ही सरकारों में पद और सत्ता का लुत्फ उठाया और इस बीच दोनों ही सरकारों की आलोचना भी की, ऐसे में किसी भी बड़े दल में उनकी पटरी बैठना नामुमकिन हो गया। ऐसे हालात में स्वाभाविक है कि डॉ. मीणा अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिये अपनी निजी राजनैतिक जमीन तैयार करने में जुट गये। लम्बे समय तक इस बारे में बातें करने के बाद गत 28 फरवरी को राजनीति पिटारा खोला तो आम भोली-भाली जनता को तो कुछ समझ में नहीं आ रहा, लेकिन प्रबुद्ध मतदाता का डॉ. मीणा से माहभंग हो गया है।

आखिर डॉ. मीणा से मोहभंग के क्या कारण हैं? सबसे बड़ी बात तो ये कि डॉ. मीणा ने कोई नयी पार्टी नहीं बनायी, बल्कि पूर्वी भारत के एक फ्लॉप नेता पीए (पूर्ण ऐजिटक) संगमा की पार्टी ‘नेशनल पीपुल्स पार्टी’ का दामन थाम लिया। जिससे उनकी नयी पार्टी बनाने की बात झूठी साबित हो गयी। यही नहीं डॉ. मीणा ने ऐसे   नेता को अपना नेता माना है, जो स्वयं ही आज राष्ट्रीय स्तर पर एक अनाकर्षक व्यक्तित्व हैं। यही नहीं डॉ. मीणा ने इस बात पर जरा भी गौर नहीं किया कि अजा एवं अजजा को आरक्षण जातिगत भेदभाव के कारण हुए सामाजिक तिरस्कार और पिछड़ेपन के कारण सरकार में अपना प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये दिया गया है। ऐसे में कुछ आदिम जातियॉं हिन्दू धर्म की जातिवादी व्यवस्था के दुष्चक्र से मुक्ति पाने के लिये ईसाई धर्म ग्रहण कर चुकी हैं, जहॉं पर कोई जाति नहीं होती है और इन धर्म परिवर्तित जातियों की संतानों को बचपन से ही अंग्रेजी में पारंगत करके और ईसाई धर्म ग्रहण करने के उपरान्त भी पूर्ववर्ती हिन्दू धर्म की जाति के आधार पर अजजा कोटे का लाभ दिलाया जाता है। ऐसे में ये धर्म परिवर्तित ईसाई अजजा के लोग राष्ट्रीय स्तर पर अजजा वर्ग के राष्ट्रीय कोटे का सत्तर फीसदी हड़प रहे हैं। जिसका बिहार, म. प्र., छत्तीसगढ, गुजरात सहित राजस्थान के गैर मीणा आदिवासियों द्वारा कड़ा विरोध किया जाता रहा है और लम्बे समय से ये मांग की जा रही है कि ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके लोगों का आदिवासी दर्जा समाप्त किया जाये।

इतना होने के उपरान्त भी डॉ. मीणा ने उन पीए संगमा का दामन थामा है, जो उन ईसाई आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हिन्दू धर्म को बदलकर भी अजजा कोटे का लाभ उठा रहे हैं। ऐसे में डॉ. मीणा का आदिवासियों का राष्ट्रीय नेता बनने या राजस्थान के सभी आदिवासियों का नेता बनने का सपना पहली ही सीढी पर टूटता नजर आ रहा है। व्यक्तिगत रूप से मेरे पास म. प्र., छत्तीसगढ, गुजरात आदि पड़ोसी राज्यों से अनेक मित्रों के फोन आ रहे हैं कि ‘‘डॉ. किरोड़ी लाल मीणा जी को समझाओ वे क्यों अपने और मीणा जाति के भविष्य पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं?’’ गैर मीणा आदिवासी डॉ. मीणा के इस कदम से भयंकर रूप से नाराज हैं। जिसका नुकसान उन्हें भुगतना होगा और उन्हें अपनी गलती का अहसास हो जायेगा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

इसके अलावा डॉ. मीणा लोक सभा सदस्य हैं, इस कारण इस बात को जानते हैं कि 28 फरवरी को संसद में बजट पेश किया जाता है तो मीडिया का ध्यान और सभी लोगों का सारा ध्यान बजट पर आकर्षित रहता है। इस बात पर ध्यान किये बिना डॉ. मीणा ने 28 फरवरी को कथित रूप से अपनी पार्टी की घोषणा की, जिसकी खबर पूरी तरह से पिट गयी। मीडिया के पास बजट के आगे इस खबर को प्रसारित या प्रकाशित करने के लिये समय और स्थान ही नहीं बचा। इसके अलावा डॉ. मीणा केवल और केवल आदिवासियों की बात कर रहे हैं, जबकि लोकतन्त्र में चुनाव एक मात्र वर्ग या जाति के आधार पर नहीं जीते जाते। चुनाव जीतने के लिये समाज के अनेक तबकों को साथ लेकर चलना होता है।

इन तीन बातों से यह लगता है कि डॉ. मीणा के सलाहकारों में दूरदर्शी सोच का पूरी तरह से अभाव है। ऐसे हालात में डॉ. मीणा का ये सपना कि वे राजस्थान के सीएम बनेंगे कहीं दूर-दूर तक पूरा होता नजर नहीं आ रहा है।-



डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
98285-02666, 
85619-55619, 
0141-2222225

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