विशेष आलेख : कई बदलावों का गवाह बना हिंदुस्‍तान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 31 दिसंबर 2014

विशेष आलेख : कई बदलावों का गवाह बना हिंदुस्‍तान

साल 2014 ने जहां गैरजिममेदार दलतंत्र को आईना दिखाया है वहीं देश मे बड़े राजनीति बदलाव के लिए भी इस साल को इतिहास मे याद किया जायेगा ।अब तक सत्‍ता से कोसों दूर रही भाजपा के लिए ये परिवर्तन सुखद रहा । जनसंघ सहित भाजपा के अब तक के इतिहास में यह बीता साल 2014 उसके लिए स्वर्णिम वर्ष साबित हुआ जिसमें उसने न केवल पहली बार लोकसभा में अपने दम पर पूर्ण बहुमत पाया बल्कि एक के बाद एक विधानसभाओं में भी अपने परचम गाड़ते हुए वह देश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गई।वहीं सौ साल पुरानी कांग्रेस को जबर्दस्‍त  निराशा हाथ लगी ।चुनावी इतिहास मे सबसे खराब प्रर्दशन के चलते उसके खाते मे इतनी कम सीटे आयी जिससे उसका सदन मे विपक्ष के नेता का दर्जा भी छिन गया ।वहीं धमाकेदार अंदाज़ मे अपना राजनीतिक सफर शुरू करने और कई जनपक्षीय पहल कर के मिसाल कायम करने वाली आम आदमी पार्टी राजनीतिक बियाबान मे चली गयी ।बीता साल क्षेत्रीय दलों को भी एक सबक दे गया और गैर राजक दलों की भविष्‍य की राजनीति के लिए आपसी बैर मिटाने के लिए प्रेरित कर गया ।बिहार के दो विरोधी और बड़े क्षत्रप नीतीश वा लालू का मिलाप , भाजपा को रोकने के लिए करीब तीन दशक बाद पुराने जनता दल के कुनबे का एक छत के नीचे आकर राष्‍ट्रीय राजनीति के लिए प्रेरित होना गुजरे साल की प्रमुख घटना है ।चीन जैसा ताकतवर देश जो नही कर सका वह भारतीय वैज्ञानिकों ने कम अवधि मे मंगल पर कदम रख कर अंतरिक्ष मे इतिहास रच कर दुनियां को अपनी ताकत का एहसास करा दिया ।बारूद के ढ़ेर पर बैठे पाकिस्‍तान और बंग्‍लादेश से मिले अनुभव इस साल भी खट्टे ही रहे ।अलबत्‍ता पाकिसतान के पेशावर मे सवा सौ मासूम बच्‍चों के कत्‍लेआम पर देश का हर संवेदनशील नागरिक गमगीन और आंसू बहाता दिखा ।जिससे दुनिया ने
फिर ये माना की भारत दिल से भी उदार देश हे ।
                                   
महंगाई स्‍थिर और नियंत्रण मे जरूर है लेकिन अंर्तराष्‍ट्रीय बाजार मे कच्‍चे तेल का दाम काफी कम होने के बाद भी देश की जनता को इसका पूरा लाभ नही मिल सका । केन्‍द्र सरकार और पेट्रोलियम कम्‍पनियों के खजाने मे इस मद  की ज्‍़यादातर रकम फिर चली गयी ।मामूली राहत से ही अवाम को एक बार फिर संतोष करना पड़ा ।  राष्‍ट्र के सैकड़ों परिवारों को सदा के लिए रूलाने वाला आतंकवाद और अपनों का साया छीनने वाले नक्‍सलवाद वा उग्रवाद पर देश की सरकारें एक बार फिर प्रभावी लगाम नही लगा सकी ।जिसके चलते साल के अंत मे असम फिर जल उठा समाज और का सबसे गरीब तबका एक बार फिर हिंसा का शिकार हो गया ।जहां साल के शुरूआती छह माह देश के लिए निराशाजनक थे लेकिन आखरी महीने उत्‍साह और उमंग के साथ आशा के पंख लगा गये । यूं भी सन 2014 को देश के इतिहास मे भारी मतदान के लिए याद किया जायेगा ।मतदाताओं की हिम्‍मत के आगे बुलेट पर बैलेट को बड़ी कामयाबी मिली ।प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के वादों , नारों की असलियत
और विकास योजनाओं की परख तो अब नये साल मे ही होगी लेकिन साल का अंत भारतीय लोकतंत्र के लिए कुछ बेहतरीन यादें छोड़ कर ये जताते हुए गया कि देश मे अब जाति , पंथ और मजहब की राजनीति पराजित हो चुकी है और विचारहीन राजनीति भी लस्‍त – पस्‍त हो रही है ।दलतंत्र का जनतंत्र और राष्‍ट्र के लिए प्रतिबध्‍द होना ही सन 2014 का मुख्‍य संदेश लगता है ।
                                
कई मामलों मे साल 2014 को युगांतकारी वर्ष कहा जा सकता है ।भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह साल जहां खुशियों की कई सौगातें लाया ,वहीं कांग्रेस के लिए यह एक बुरे स्‍वप्‍न से ज्‍़यादाकुछ नही रहा ।भाजपा 10 साल तक विपक्ष मे रहने के बाद इस साल हुए आम चुनाव मे जीत दर्ज कर सत्‍ता पर काबिज होने मे कामयाब रही ।कई सुबे भी कांग्रेस के हाथ से निकल गये ।  हालांकि क्षेत्रीय पार्टियों पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) तथा तमिलनाडु में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने बीजेपी के विजयरथ को रोक दिया ।   अगर वास्‍तव मे देखा जाये तो 2014 में मोदी भारतीय राजनीति के नायक रहे । गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री ने भाजपा के भाग्य को इस कदर बदला कि बाकी पार्टियां सीटों के लिए तरसती रह गईं । प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी के चुनाव अभियान को बखूबी संभाला, जिसकी बदौलत पार्टी हरियाणा, महाराष्ट्र तथा झारखंड में विजय ध्वज फहराने में कामयाब रही. वहीं, कश्मीर में पार्टी सत्ता की दहलीज पर खड़ी है । लेकिन, चांद पर दाग की तरह दक्षिणपंथी हिंदू समूहों की गतिविधियों ने मोदी के सुशासन के एजेंडे की मिट्टी-पलीद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी ।जिससे विपक्ष को संसद मे उन्‍हें घेरने का मौका मिल गया । 2014 में प्राकृतिक आपदाओं ने दुनिया के कई देशों में विध्वंसकारी रूप दिखाया था। इन प्राकृतिक आपदाओं को काबू में लाने के लिए अभूतपूर्व मानवीय प्रयास भी देखने को मिले, जिसके बाद जीवन पहले की तरह पटरी पर लौटा।

भारत 2013 में उत्तराखंड में भारी तबाही मचाने वाली जल प्रलय के सदमे से अभी उबरा भी नहीं था कि जम्मू-कश्मीर में आई भीषण बाढ़ ने एक बार फिर उसके जख्म हरे कर दिए। 2 सितंबर 2014 को मानसून के आखिरी चरण में हिमालयी क्षेत्र में शुरू हुई मूसलाधार बारिश से झेलम व चेनाब जैसी नदियों का जल-स्तर इस कदर बढ़ गया कि अगले एक हफ्ते के भीतर जम्मू-कश्मीर, पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान और पाक पंजाब समेत कई इलाके पानी में डूब गए।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कश्मीर में 60 साल के इतिहास में आई सबसे भीषण बाढ़ और उससे घटी भूस्खलन व इमारत ढहने की घटनाओं में भारत में 277, जब कि पाकिस्तान में 280 लोगों की मौत हो गई । आपदा से निपटने में सेना के प्रयासों को देखते हुए कश्मीरी अवाम का उसके प्रति नजरिया भी बदला। भारतीय फौज के प्रति बढ़ती सकारात्मकता से पाक सेना बौखलाई नजर आई। बाढ़ की आड़ में एलओसी पर संघर्ष-विराम के उल्लंघन के जरिए आतंकी घुसपैठ की कोशिशें जारी रहीं। अलगाववादियों की ओर से अवाम को भड़काने के प्रयास भी सामने आए। वहीं अक्तूबर 2014 को अंडमान सागर में उठे ‘हुदहुद’ तूफान ने पूर्वी भारत और नेपाल में भारी तबाही के निशान छोड़े हैं ।साल के बिदा लेते लेते बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू की आहट ने देशवासियों मे दहशत जरूर फैलादी है ।हर साल की तरह इस साल भी खेल के मैदान को अलविदा कहने का सिलसिला जारी रहा ।दक्षिण अफ्रिका के हरुनमौला जैक कालिस ने टेस्‍ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया तो वहीं साल के आखरी दिन का सूरज उगने से पहले ही भारतीय क्रिकेट कप्‍तान महेन्‍द्र सिहं धोनी ने भी सफेद जर्सी को अलविदा कह दिया ।
                                    
जीवन के साठवें बसंत मे कैलाश सत्‍यार्थी ने भारत मे पैदा होने वाले आठवें नोबेल पुरस्‍कार विजेता बन कर इतिहास मे सुनहरे अक्षरों मे अपना नसम लिखवा लिया ।बीता साल राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के उभार वाला भी रहा ।दस साल तक राजनीतिक वनवास मे रहने के बाद संघ ने 2014 के चुनावों मे गहरी दिलचस्‍पी दिखायी और मोदी की कामयाबी के साथ दमदार मौजूदगी भी दर्ज करायी ।देश का सुप्रीम कोर्ट इस साल भी लोगों कि उम्‍मीद का किरण था ।सुप्रीम कोर्ट वह संस्‍था है जिस पर देश के हर तबके को पूरा भरोसा है ।बीते साल भी देश की अदालतों के कई फैसलों ने जयकारे सुनने के आदी नेताओं के गुरूर को चूर –चूर किया है ।बहरहाल जब साल 2015 के सूरज की पहली किरण फैलेगी तो नये सवेरे के साथ देशवासियों के अरमानों को पंख मिलेगा और शासन सत्‍ता से उम्‍मीदें बंधेंगी कि अब विकास लव जेहाद वा धर्मांतरण जैसे अर्थहीन मुद्दो पर भारी पड़ेगा और नेता सत्‍ता की मलाई से परहेज़ करेगें ।







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** शाहिद नकवी **

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