विशेष आलेख : सड़क के बिना विकास अधूरा है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 31 दिसंबर 2014

विशेष आलेख : सड़क के बिना विकास अधूरा है

road-and-development
21 वीं सदी में भारत ने पूरी दूनिया में अपना लोहा मनवाया है। बात चाहे शिक्षा की हो, रोज़गार की या फिर हुनरमंद हाथों की, सभी क्षेत्रों में भारत का डंका बज रहा है। आर्थिक विकास के क्षेत्र में जहाँ भारत की स्थिति सुधरी है तो वहीं बुनयादी ढांचे में भी तेज़ी तरक्की हो रही है। अक्टूबर माह में विश्व बैंक की ओर से जारी ‘‘इंडिया डेवलपमेंट अपडेट’’ रिपोर्ट में भारत के विकास दर को सकारात्मक रूप में देखा गया है। रिपोर्ट में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वित्तीय वर्ष 2014-15 में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की गई है जबकि जीडीपी विकास दर के वित्त वर्ष 2015-16 में 6.4 प्रतिशत की दर से और 2016-17 में 7 प्रतिशत की दर से बढ़ने की संभावना व्यक्त की गई है। स्वयं सरकार ने संसद में प्रस्तुत छमाही आर्थिक समीक्षा में देश का सकल घरेलू उत्पाद 5.5 रहने की उम्मीद ज़ाहिर की है जो पिछले वर्ष के 4.7 प्रतिशत की तुलना में अधिक है। समीक्षा में आने वाले वर्षों में 7 से 8 प्रतिशत उच्च आर्थिक वृद्धि दर प्राप्त करने की उम्मीद भी की गई है जो उभरते भारत की बुलंद तस्वीर प्रस्तुत करता है।
             
पूरे विश्व की नज़र इस वक्त भारत पर ही है। प्रधानमंत्री की कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है ‘‘मेक इन इंडिया’’ की चर्चा दुनिया भर में हो रही है। लालकिले की प्राचीर से देष को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अर्थव्यवस्था को नई उचाईंयो पर ले जाने के लिए ‘‘मेक इन इंडिया’’ अभियान प्रारंभ करने का जिक्र किया था। जिसके तहत दुनिया भर के उधोगपतियों को भारत आमंत्रित किया गया है। सितंबर माह में बाकायदा इसे षुरू भी कर दिया गया। इस अभियान के अंतर्गत जहां नौजवान युवाओं को रोजगार प्राप्त होगा वहीं विजन 2020 को प्राप्त करने मे यह मील का पत्थर साबित होगा। लेकिन देष के दूरदराज और सीमावर्ती क्षेत्रों में रह रहे लोगों को इस अभियान से किस तरह फायदा पहुंचाया जाए इस पर गंभीरता से सोच विचार करने की जरूरत है। इसके लिए केन्द्र और राज्य सरकारों को योजनाबध्द तरीके से काम करना पड़ेगा। 
            
केन्द्र सरकार की ओर से योजनाएं तो बहुत सारी बनायी जाती है लेकिन ग्रामीण भारत इन योजनाओं से वंचित रहता है। खासतौर से पहाड़ी और सीमावर्ती क्षेत्रों में केन्द्र की कल्याणकारी योजनाएं, पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं। जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले की तहसील मेंढ़र स्थित नड़ोल गांव का हाल भी कुछ इसी तरह का है। यह गांव तहसील मेंढ़र से तकरीबन 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। इस गांव को देखकर आजादी से पहले का दौर याद आ जाता है क्योंकि यह इलाका 21 वीं सदी में भी तमाम बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। इस बारे में गांव के स्थानीय निवासी और अध्यापक सैय्यद कहते हैं कि- ‘‘ यह गांव जम्मू कश्मीर के नक्शे पर अवश्य है परंतु आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। बुनियादी सुविधाओं की कमी के चलते यहां के लोगों का जीवनयापन बहुत कठिन हो गया हैै। इस गांव में आज भी सड़क नहीं है। जिसकी वजह से लोगों को दूसरी बुनियादी सुविधाओं जैसे षिक्षा, स्वास्थ्य आदि से वंचित रहना पड़ता है।’’ 
             
हालांकि 2007 में बार्डर रोड डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत नड़ोल से कलियां तक तकरीबन आठ किलोमीटर लंबी सड़क की योजना का खाका तैयार किया गया था। सड़क का काम भी जल्द ही षुरू कर दिया गया था। लेकिन एक या दो किलोमीटर की सड़क निर्माण के बाद जंगल के बीच में आ जाने की वजह से निर्माण कार्य को बीच में ही बंद कर दिया गया। एक बार काम बंद होने के बाद दोबारा किसी ने इसकी ओर मुड़कर नहीं देखा है।’’ सड़क न होने की वजह से यहां के लोगों को बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। स्थानीय निवासी मोहम्मद मुष्ताक सड़क  नहीं होने की वजह से होने वाली कठिनाइयों का जि़क्र करते हुए बताते हैं कि- ‘‘जब भी हमारे यहां कोई बीमार पड़ता है तो उसे कंधों पर उठाकर तीन-चार किलोमीटर पहाडि़यों से उतर कर सड़क तक लाना पड़ता है। इस तरह मरीज को मेंढ़र अस्पताल पहुंचाया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि सड़क न होने की वजह से कभी-कभी मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देता है। इस इलाके के 25 वर्षीय साई मोहम्मद जब बीमार पड़े तो सड़क न होने की वजह से वह समय पर अस्पताल न पहुंच सके और पहाडि़यों से उतरते-उतरते उन्होंने बीच में ही दम तोड़ दिया था। यहां के छात्र-छात्राओं को सड़क न होने की वजह से स्कूल जाने के लिए ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से उतरकर जाना पड़ता है। आने जाने की सुविधाओं की कमी के कारण अधिकतर अभिभावक अपनी बेटियों को या तो पढ़ाते नहीं हैं या फिर जल्द ही उनका स्कूल छुड़वा देते हैं। 
              
भारत दुनिया में सबसे बड़ी सड़क नेटवर्कों में से एक है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार देश में सड़कों की कुल लंबाई तकरीबन 33 लाख किलोमीटर है इसमें 200 कि.मी एक्सप्रेस वे, 92,851.07 कि.मी राष्ट्रीय राजमार्ग, 1,31,899 कि.मी राज्य राजमार्ग, 4,67,763 कि.मी मुख्य जि़ला सड़के और 26,50,000 कि.मी ग्रामीण सड़कों का योगदान है। सरकार सड़कों कों को बेहतर बनाने के लिए निजी और विदेशी क्षेत्र के निवेश के लिए प्रोत्साहन प्रदान कर रही है। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपई के शासनकाल में सड़कों को उन्नत बनाने के लिए विशेष योजनाएं तैयार की गईं। स्वर्णिम चतुर्भुज और ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर इसी का परिणाम है। पिछले 60 सालों में देश में सड़कों की कुल लंबाई 11 गुना हुई है जिनमें पक्की सड़कों की लम्बाई 16 गुना से भी अधिक बढ़ी है। इसके कारण देश के ग्रामीण क्षेत्रों तक संपर्क संभव हुआ है। भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था के लिए सड़क नेटवर्क का तीव्र विस्तार और इसकी उन्नति आवश्यक है। देश के विकास में इसके विशेष योगदान से इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन प्रश्न उठता है कि जम्मू के इस दूर-दराज़ क्षेत्र नड़ोल गांव की जनता को सड़क जैसी बुनियादी अधिकार से वंचित क्यों रखा जा रहा है? क्या वह बुनियादी सुविधाओं के हकदार नहीं? अगर हैं तो उनका यह अधिकार कब मिलेगा? इस सड़क के दायरे में यहां के लोगों की निजी जमीनें भी आ गईं थी लेकिन फिर भी सड़क निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका। यह सड़क नड़ोल से निकलकर नड़ोल में ही रह गयी और कलियां तक नहीं पहुंच सकी। अब यहाँ की जनता को राज्य में बनने वाली नई सरकार से उम्मीदें हैं जो शायद सड़क जैसी इनकी बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए कदम उठाएगी। 








मोहम्मद सफीर मुगल
(चरखा फीचर्स)

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