मजहब नही सीखता आपस में बैर रखना । - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 12 मई 2009

मजहब नही सीखता आपस में बैर रखना ।



विभिन्नताओं में एकता को समेटे हमारा मुल्क भारत अपनी पहचान के साथ धरती पर अपनी उपस्थिति दर्ज करता आया है, आज भी वैश्विक मंच पर आर्यावर्त की उपथिति प्रासंगिक हो जाती है, क्यूंकि सम्पूर्ण मानवता का एकमात्र जीवंत परिचय "हिन्दुस्तान" है।

हमारे देश में कमोबेश सभी कौम के लोग हैं, और संविधान की बात करें तो सभी एक ही पलडे पर हैं। ना कोई कम ना कोई ज्यादा। सम्पूर्ण स्वतन्त्रता के साथ जीवन का विभीन्न आयाम देनेवाला एकमात्र देश भारत आज अपने ही अंग में हुए फोडे से द्रवित हैतकलीफ में है, असहनीय पीड़ा में है।

आदिकाल से ही भारत में एकीकरण का प्रयास रहा, चाहे वो युद्ध से हो या प्यार से, और हरेक प्रयास असफल ही रहा। दक्षिण के द्रविड़ और उत्तर के आर्य में विभीन्नता ने एकीकृत भारत के सपने को हमेशा झटके दिए। मगध नरेश महान सम्राट अशोक ने हिन्दुस्तान की सीमा का अद्वितीय विस्तार किया मगर हिंसा का जूनून एक बौध ने पल में अशोक को भिक्षु बना दिया।

लोग कहते हैं की मुगलों और अंग्रेजों ने हमारे देश को गुलाम बना कर हम हिन्दुस्तानियों पर ढेरक अत्याचार किए। सच है की मुग़ल ने पृथ्वीराज चौहान को सत्रहवेंवार में जाकर हराया और हिन्दुस्तान की गद्दी पर काबिज हुआ मगर गौरी को गद्दी किसने दी, जयचंद नामक हिन्दुस्तानी ने। अंग्रेज एक एक कर हमारे सारे प्रान्तों को हड़पता चला गया क्योँ ? क्या उस समय लडाके की कमी थी ? नही बल्की जयचंदों की भरमार थी।

देश के आजादी की लड़ाई अपने यौवन पर थी हम विजय के सन्निकट थे जब १९२५ में संघ की स्थापना की गयी थी। हेगडेवार महोदय इसके सेनानायक थे, ये वो नेता रहे जिनका स्वंतंत्रता संग्राम में योगदान कतिपय सोचनीय है मगर महत्वाकांक्षा का उन्माद, अंग्रेजों के हितैषी ने ऐसे समय में हिंदू मुसलमान का मामला उठाया जब देश को एकीकृत भारतीय की जरुरत थी ये उस समय भी अंग्रेजों से नहीं हिंदू-मुसलमान कर रहे थे अंग्रेजों की चापलूसी करना मंजूर था लेकिन उन मुसलमानों से मिल कर नहीं रह सकते जिन्होंने आजादी की लड़ाई में बराबर की शहादत दी॥१८५७ में क्रांति गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूसों के कारण हुई तो जब हमारे मंगल पांडे और अन्य बहादुरों ने अंग्रेजों से लड़ाई शुरू करी तब भी उन्होंने वही कारतूस अपने दांतो से काट-काट कर अंग्रेजों की मारी.... तब नहीं सोचा कि धर्म भ्रष्ट हो रहा है क्योंकि राष्ट्र धर्म ईश्वरीय धर्म से बड़ा है मगर आज हिन्दुओं के ठेकेदारों का धर्म भ्रष्ट हो रहा है। १९२५ में स्थापना के बाद से कितने संघ के लोगों को अंग्रेजों ने सजा दी या फ़ांसी दी? एक भी नहीं मगर जो अंग्रेज चाहते थे वो ही हुआ सत्ता की लालसा और वो भी धर्म के पंथ पर पाने की ने भारत की आजादी के अहसास को ना भूल पाने वाली पीड़ा में बदल दिया, जितने बलिदान हमने आजादी की लड़ाई में दी कई गुना ज्यादा लोगों के प्राण इन धार्मिक संगठनों की महत्वाकांक्षा ने ले ली। अंग्रेजों के पिट्ठुओं ने वो काम कर दीखाया जो अंग्रेज चाहते थे। क्या स्वतन्त्रता संग्राम में सिर्फ़ हिन्दुओं ने अपनी आहुती दी थी , धर्म के नाम पर उभरे इस दल के धार्मिक विषाद के कारण ही १९०६ में स्थापित मुस्लीम लीग ने १९३० में अलग राज्य की मांग की।"सर्वधर्म समभाव", "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय", "अतिथि देवो भव्:", इत्यादि इत्यादि हमारी संस्कृती है, और ये वो संस्कृति है जिसे ना ही हिंदू अपना बता सकता है और न ही मुसलमान, ये सिर्फ़ सिखों का नही है और न ही ईसाईयों का अपितु ये भारतीय संस्कृति है जो हमें राष्ट्रवाद सीखाती है।

आज जब हमारा देश तरक्की की रह पर है कमोबेश ही सही मगर दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है वापस इतिहास को दुहराते हुए जयचंदों की फौज हमारे देश की नींव को दीमक की तरह खोखला करने पर उतारू हैं। गांधी के देश में गोडसे की फौज तैयार हो रही है जो इस देश को अपनी जागीर समझ रही है। देश को हिंसा, उत्पात धर्म के नाम पर राजनीति अखाडे में डाल चुकी है। कभी मस्जिद का तोडा जाना तो टूटे हुए मस्जिद के कारण हजारो मंदिरों का ध्वस्त होना, धार्मिक उन्माद में गोधरा का कांड होना और प्रतिउत्तर में ट्रेन को आग के हवाले कर देना, चर्च के पादरी को परिवार समेत मरने का मामला हो या फ़िर बाकायदा चर्च को जलाने का सिलसिलेवार मामला, बम के धमाके हों या कश्मीर में अमरनाथ का मामला, उफ्फ्फ्फ्फ्फ....................... सारे कांड के पीछे सिर्फ़ धर्म और धार्मिकता के नाम पर आतंकवाद जबकी किसी भी धर्म में इस तरीके का जिक्र तक नही है तो क्या हम अपने तरीके अपने धर्म में शामिल करते जा रहे हैं ?


कश्मीर के उसपार हथियारों के साथ लोगों को तैयार करते हैं हम जिसे आतंकवाद कह रहे हैं वो ही कार्य कश्मीर के इधर होने पर आतंकवाद से अलग कैसे हो सकता है। किसी भी धर्म में बन्दूक उठानेवाले चार लोग उस धर्म के ठेकेदार नही हो सकते क्यूंकि धर्म में हिंसा बैर वैमनष्यता का कहीं स्थान नही है "मजहब नही सीखता आपस में बैर रखना"।

आज जब हमारा देश जल रहा है तो जरुरत हमारे राष्ट्र धर्म निभाने की है, देश में एकता, प्यार सद्भावना और विश्वास लाने की है, और कुछ लोग जो हमारे राष्ट्रीयता को खंडित करने का प्रयास कर रहे हैं उसको मूंह्तोड़ जवाब देखर खदेड़ देने का है और इसके लिए समस्त भारतवाशी को जात-पात, धर्म-कौम, रंग-भेद से ऊपर उठ कर वंदे मातरम् का नाद करना होगा।

जय हिन्दी

जय हिंद

वंदे मातरम

जय भारत

कोई टिप्पणी नहीं: