नक्सल प्रभावित इलाकों में सेना तैनाती को लेकर निर्णय लेने की संभावना !! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 9 जून 2010

नक्सल प्रभावित इलाकों में सेना तैनाती को लेकर निर्णय लेने की संभावना !!


नक्सल प्रभावित इलाकों में सेना तैनाती को लेकर बढ़ते शोर के बीच गुरुवार को होने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की बैठक में इस दिशा में कोई ठोस निर्णय लिए जाने की संभावना है।

इस संभावित बैठक की पूर्व संध्या पर रक्षा मंत्रालय के भवन साउथ ब्लॉक और गृह मंत्रालय के नॉर्थ ब्लॉक के रुख एकदम विपरीत दिखाई दे रहे हैं। आंतरिक सुरक्षा से जुडे़ मामलों में सेना को सीधी भूमिका देने के मुद्दे पर रक्षा मंत्री ए के एंटनी से लेकर सेना प्रमुख और वायु सेना प्रमुख के रुख पहले से साफ हैं कि ऐसी स्थिति में सैन्य बलों को अंतिम हथियार के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लेकिन दांतेवाडा़ और झारग्राम की रेल त्रासदी के बाद से रक्षा मंत्रालय के स्वर थोडे़ बदल गए हैं।

मंत्रालय के अधिकारी अब सीधे इंकार करने की बजाए यह कह रहे हैं कि सेना की तैनाती के मामले के सभी पहलुओं पर बारीकी से विचार किया जाएगा। इस दौरान इस आशय की रिपोर्टें भी आती रही हैं कि सेना कमान एवं कंट्रोल राजनीतिक नेतृत्व के हाथों में चाहती है और उसका कहना है कि किसी भी संयुक्त कमान की अगुवाई राज्य के मुख्य सचिव की बजाए मुख्य मंत्री को करनी चाहिए। इन रिपोर्ट के बारे में मंत्रालय के अधिकारियों ने आधिकारिक स्तर पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया और इन्हें कल्पना की उडा़न करार दिया।

रक्षा मंत्री ए के एंटनी सेना के छत्तीसगढ़-उडी़सा सब एरिया मुख्यालय (सीओएसए) के गठन को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे चुके हैं। इसका मकसद नक्सल प्रभावित इलाकों में सेना की मौजूदगी बढा़ना और समय पर पड़ने पर तत्काल सेना की तैनाती सुनिश्चित करना है। इस समय रायपुर को इस मुख्यालय के रूप में विकसित करने की योजना है।

प्रशिक्षण गतिविधियों में योगदान करने के लिए भी सेना तैयार है। सेना के मिजोरम में वारंगटे स्थित काउंटर इंसर्जेंसी जंगल वारफेयर स्कूल और तमाम रेजीमेंटल सेंटरों में अर्ध सैनिक बलों के कर्मियों को नक्सल समस्या से निपटने के लिए प्रशिक्षित करने की प्रक्रिया को और मजबूती देने पर भी सेना राजी है। अभी तक वह अर्ध सैनिक बलों के 47,000 जवानों को प्रशिक्षण दे चुकी है। सेना नक्सल प्रभावित राज्यों में वारंगटे जैसे स्कूल खोलने के पक्ष में भी है ताकि आंतरिक सुरक्षा संबंधी तैनाती के लिए अर्ध सैनिक बलों को कारगर ढंग से तैयार किया जा सके।

सुरक्षा विश्लेषक भी नक्सल प्रभावित इलाकों में सेना की तैनाती के पक्ष में नहीं हैं। सेंटर फार लैंड वारफेयर स्टडीज के निदेशक ब्रिगेडियर गुरमीत कंवल ने कहा है कि सेना पहले ही सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा का जिम्मा संभाल रही है और आतंकवादियों से लड़ रही है। उन्होंने कहा कि सेना बेहतर ट्रेनिंग और रणनीतिक विशेषज्ञता देने में योगदान कर सकती है।
 

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