'मिथिलायां महादेवी वाम स्कंधे महोदर:' (तंत्र चुड़ामणि) सती पार्वती का वाम स्कंध मिथिला में गिरा था, अत: संपूर्ण मिथिला को शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। जिसमें उच्चैठ की दुर्गा महाशक्ति पीठ अग्रगण्य है। उच्चैठ दुर्गा की प्रसिद्धि प्राचीनकाल से ही है। विश्वकवि कालिदास का इस शक्तिपीठ से संबंध रहा है। प्रमाण स्वरूप कालिदास डीह इससे सटी नदी के दूसरे किनारे पर अवस्थित है। जनश्रुति है कि दुर्गा मूर्ति को कालिदास द्वारा पूजित होने के कारण इसे कालिदास कालीन माना जाता है। इनकी महिमा अपरंपार है। उच्चैठ चतुर्भुजा दुर्गा की प्रसिद्धि राज्य में ही नहीं नेपाल में भी है। शारदीय नवरात्र में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। अश्रि्वनी शुक्ल प्रतिपदा से ही यहां भगवती के दर्शन पूजन करने को भीड़ जुट जाती है। संपूर्ण परिसर देवी गीतों से गुंजायमान रहता है। आज भी तांत्रिक साधक निकट के एकांत स्थान में अपनी साधना में रत दिखते हैं। शारदीय नवरात्र में दुर्गा का भव्य श्रृंगार करने की परंपरा है। भक्तों द्वारा प्रदत्त फूलों से दिन के 3-4 बजे भगवती परक गीत गायन के बीच श्रृंगार पंडा करते हैं। कहा जाता है कि श्रृंगार के बाद भगवती का दर्शन अत्यंत ही शुभ फलदायी है। इस समय भगवती का प्रसन्न मुद्रा भाव का दर्शन होता है। इसलिए शारदीय नवरात्र में भगवती का सांध्य श्रृंगार देखने के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। शारदीय नवरात्र में भगवती का दर्शन पूजन कर लोग जो भी माता से मांगते हैं उसे मां पूरा करती हैं। वैसे तो यहां प्रतिदिन छागर की बलि दी जाती है, लेकिन शारदीय नवरात्र की सप्तमी तिथि को निशा पूजा के पश्चात महानवमी तक प्रतिदिन सैकड़ों की तादाद में छागर को बलि दी जाती है।साभार :- जागरण डोट कॉम
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