
भारत ने तरक्की की राह पर लंबा सफर तय तो कर लिया लेकिन लोगों की भूख मिटाने में उसे अब तक कामयाबी नहीं मिली. हर दिन दो वक्त की रोटी से महरूम लोगों की तादाद में कोई खास कमी नहीं आई है.
चीन की अर्थव्यवस्था भारत से चार गुनी बड़ी है और उसने अपने देश में भूखे लोगों की संख्या को कम करने में बड़ी कामयाबी हासिल की है. नतीजा ये हुआ है कि चीन इस सूची में नौवें नंबर पर पहुंच गया है. 2009-10 में भारत की अर्थव्यवस्था का विकास दर 7.4 फीसदी रहा है जबकि इस साल ये दर 8.5 फीसदी रहने की उम्मीद है. अशोक गुलाटी ने बताया कि चीन ने अर्थव्यवस्था के विकास के साथ ही एक तरफ कृषि क्षेत्र में सुधार किए हैं तो दूसरी तरफ उत्पादन और सेवा क्षेत्र को भी बेहतर बनाया है. "इसके विपरीत भारत के विकास की कहानी मुख्य रुप से सेवा क्षेत्र के विकास पर आधारित है उसमें भी आईटी और टेलिकॉम सेवा की इसमें ज्यादा बड़ी भूमिका है. भारतीय खेती आज भी सुधार होने के इंतजार में है."
इतना ही नहीं आर्थिक मामले में पिछड़ा होने के बावजूद पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका ने अपने नागरिकों की भूख मिटाने में अच्छी सफलता पाई है. इस सूची में श्रीलंका 39वें नंबर पर है जबकि म्यांमार 50वें नंबर पर और पाकिस्तान 52वें नंबर पर. बांग्लादेश भारत से सिर्फ एक स्थान नीचे है 68वें नंबर पर. गुलाटी ने बताया कि कृषि में एक फीसदी का सुधार भूखे लोगों की तादाद 2 से 3 फीसदी की कमी लाता है. फिलहाल देश में खेती को सुधारने के लिए कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा. खासतौर से सेवा और आईटी क्षेत्र के लिए जितना कुछ किया जा रहा है उसके मुकाबले तो खेती कहीं टिकती ही नहीं. भारतीय खेती की विकास दर 2009-10 में घट कर 0.2 फीसदी रह गई जबकि इससे पिछले साल ये 1.2 फीसदी थी.
इस साल के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक सूची में निचले स्थान पर मौजूद भारत में बच्चों का जरूरत से कम वजन होना एक आम बात है. इसकी वजह है देश में महिलाओं की खराब दशा जिन्हें पौष्टिक भोजन भरपेट नहीं मिलता. ग्लोबल हंगर इंडेक्स आईएफपीआरआई ने जर्मन संस्था कंर्सन वर्ल्डवाइड और वेल्टहुंगर हिल्फे के साथ मिलकर बनाई है.
इस रिपोर्ट का कहना है कि विश्व में साढ़े 92 करोड़ लोग भूख और कुपोषण का शिकार हैं और हर छठे सेकंड एक बच्चा भूख या कुपोषण से मर रहा है. रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया में वेल्टहुंगर हिल्फे ने जर्मन सरकार की विकास सहायता नीति की आलोचना की है. संस्था की अध्यक्षा बैर्बेल डीकमन ने कहा है कि लघुकालीन आर्थिक हित ग्रामीण विकास और खाद्य सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण नहीं होने चाहिए. उन्होंने जर्मन सरकार से ग्रामीण क्षेत्रों के विकास और खाद्य सुरक्षा को विकास सहायता के केंद्र में लाने की अपील की.
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