विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक को फ़ोरेंसिक वैज्ञानिक इस्तेमाल कर सकते है जिससे जांच को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है. इस तकनीक के अंतर्गत ख़ून में बहने वाली टी-कोशिका के लक्षणों का अध्ययन किया जाता है. टी-कोशिका किसी भी बाहरी हमले जैसे बैक्टीरिया, वायरस या ट्यूमर कोशिकाओं को पहचानने में अहम भुमिका निभाती है. इस दौरान छोटे गोलाकार डीएनए अणु बनते हैं लेकिन इनकी संख्या उम्र के साथ-साथ एक नियमित दर से कम होती जाती है.
यह काम नीदरलौंड्स मे शोधकर्ताओं की टीम ने किया है और इस शोध का प्रकाशन पत्रिकार करंट बॉयलॉजी में किया गया है. 'करंट बॉयलॉजी' में वैज्ञानिकों ने लिखा है कि अपने इस विकास के जरिए उन्होंने जीव-विज्ञान के उस तथ्य को बताया है जिससे किसी भी व्यक्ति की सही और सटीक उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है.
इसमें हर व्यक्ति को एक अलग-अलग उम्र की श्रेणी में डाला गया है और इसमें उम्र का दायरा बीस साल का रखा गया है. नई तकनीक के ज़रिए किसी भी व्यक्ति की उम्र का अंदाज़ा लगाया जा सकता है लेकिन असली उम्र और अनुमानित उम्र में नौ साल तक का फ़र्क हो सकता है. डीएनए जानकारी के ज़रिए किसी भी व्यक्ति के बालों या आंखो के रंग का अंदाज़ा लगाना फ़ोरेंसिक क्षेत्र में नया है.
इरेस्मस युनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर रॉट्टडेम में मुख्य शोधकर्ता मेनफ्रेड केयसर का कहना है, "जांच से डीएनए जानकारी के ज़रिए मनुष्य के बारे में सबसे सटीक जानकारी मिल सकती है. फ़ोरेंसिक क्षेत्र में पंरपरागत डीएनए की जांच से जांचकर्ताओं को उन्हीं लोगो की पहचान की जा सकती है जिनके बारे में पहले से जानकारी होती है."
ऐसे में सभी फ़ोरेंसिक प्रयोगशालाओं के सामने वो मामले आते हैं जिनके बारे में घटनास्थल से मिले सबूतों के आधार पर जो डीएनए जानकारी मिलती है वो संदिग्ध व्यक्ति पर हुई जांच से मेल नहीं खाती और न ही अपराधियों के इकठ्ठा किए गए आंकड़ों से. किसी भी व्यक्ति के बारे में मिले सबूतों से रुप-रंग का अंदाजा लगाया जा सकता है और किसी अनजान व्यक्ति को ढूँढने में मदद मिल सकती है.
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