विकीलीक्स में सार्वजनिक किए गोपनीय दस्तावेजों के मुताबिक अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन का कहना था कि भारत ने खुद ही अपने आपको संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की दौड़ में सबसे आगे करार दे दिया है।
अभी कुछ ही समय पहले भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता की भारत की दावेदारी का समर्थन किए जाने को भारत अपनी बड़ी जीत के रूप में देख रहा है, लेकिन विकीलीक्स ने जो दस्तावेज जारी किए हैं उनसे साफ होता है कि अमेरिका की कथनी और करनी में भारी अंतर है। ये खुलासे भारत-अमेरिका संबंधों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
विकिलीक्स के मुताबिक अमेरिका भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान (जी-4) को स्थायी सीट की दावेदारी के लिए स्वघोषित उम्मीदवार बताया गया है। इस मामले में अमेरिका मैक्सिको, इटली और पाकिस्तान की हां में हां मिलाते नजर आता है जो नए स्थायी सदस्य नियुक्त किए जाने के खिलाफ हैं।
इस महीने दिल्ली में ओबामा की ओर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन किए जाने के बाद चीन ने भले ही कहा कि वह भी सुरक्षा परिषद का विस्तार चाहता है और इस संबंध में भारत से बातचीत के पक्ष में है, लेकिन विकिलीक्स के खुलासे के मुताबिक चीन नहीं चाहता कि पांच स्थायी सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद में किसी तरह का फेरबदल हो।
जी 20 शिखर सम्मेलन से पहले चीन के अधिकारियों ने अमेरिकी अधिकारियों के साथ 30 अप्रैल 2009 में एक बैठक की थी। इसमें भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने समेत कई मुद्दों पर बातचीत हुई। इस दौरान चीन के एक अधिकारी ने साफ किया कि वह जापान को तो सुरक्षा परिषद में शामिल करने के कतई पक्ष में नहीं है।
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने विकिलीक्स के ताजा खुलासे को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर ‘हमला’ करार देते हुए कहा कि गोपनीय दस्तावेज लीक होने से लोगों की जिंदगी और अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा मंडराने लगा है। उन्होंने नए खुलासे से अमेरिका के अन्य देशों के कूटनीतिक संबंधों पर असर पड़ने की भी आशंका जताई।
विकिलीक्स के खुलासे के बाद दुनियाभर में मचे हड़कंप पर क्लिंटन ने कहा कि दुनियाभर का राजनयिक समुदाय इस बात को समझेगा कि विकिलीक्स ने जो खुलासा किया है वह दरअसल ‘एक हाथ लो, एक हाथ दो’ की वैश्विक नीति का एक हिस्सा भर है। उन्होंने विकिलीक्स से जारी ढाई लाख गोपनीय दस्तावेजों से हुये नुकसान की भरपाई करने की कोशिश करते हुए कहा कि उन्हें इस बात का भरोसा है कि दुनिया के साथ अमेरिकी साझेदारी इस चुनौती का सामना करने में सक्षम होगी।
विकीलीक्स अमेरिकी विदेश नीति से जुड़े करीब ढाई लाख केबल का खुलासा कर रहा है। अमेरिकी केबल (संदेश) भेजने का तरीका काफी गुप्त है। इसे गुप्त इंटरनेट प्रोटोकॉल रूटर नेटवर्क या एसआईपीआरनेट के जरिए भेजा जाता है। यह नेटवर्क अमेरिकी सेना का इंटरनेट सिस्टम है जो आम इंटरनेट से अलग है। इस नेटवर्क को अमेरिका का रक्षा विभाग चलाता है।
११ सितंबर, २००१ को अमेरिका पर हुए हमले के बाद सरकारी सूचनाओं और दस्तावेजों को इस नेटवर्क से जोड़ने की कवायद चल रही है। २००२ तक १२५ दूतावास एसआईपीआरनेट से जुड़ चुके थे। २००५ तक यह संख्या १८० तक पहुंच गई और इस समय दुनिया भर में फैले ज़्यादातर अमेरिकी दूतावास इस नेटवर्क से जुड़े हैं। विकीलीक्स द्वारा किए गए खुलासे में जो संदेश सामने आए हैं उनमें से ज़्यादातर २००८ से २००९ के बीच के हैं। इस नेटवर्क के जरिए भेजा गया संदेश तय दूतावास की वेबसाइट द्वारा डाउनलोड कर लिया जाता है। वहां से इस संदेश को सेना या अमेरिकी गृह विभाग का वह शख्स पढ़ सकता है जिसके पास पासवर्ड है और उसका कंप्यूटर एसआईपीआरनेट से जुड़ा हुआ है। बताया जा रहा है ऐसे करीब 30 लाख लोग इस सिस्टम से जुड़े हैं, जो संदेशों की संवेदनशीलता को देखते हुए बड़ी तादाद है।
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