मैं राजस्थान के बांसवाडा जिले में पड़ने वाले तहसील कुसलगढ़ के वसूनी नाम के एक छोटे से गांव से हूं। अपने गांव के अधिकांश लोगों की तरह मैं भी भील जनजाति से आती हूं। अपने चार भाई- दो बहनों में मैं सबसे छोटी हूं; मेरे हमारे गांव में ही हमारा एक घर और एक छोटा सा खेत है और हमारे पास थोड़े से मवेशी भी हैं । जब मैं छोटी थी तो अपने भविष्य को लेकर मेरी समझ स्पष्ट नहीं थी। लेकिन मैं इस अहसास और जागरूकता के साथ बड़ी हो रही थी कि मेरी जनजाति के लोगों का जीवन उस स्थिति से बहुत अलग है जिसे एक आदर्श जीवन कहा जाता है। गाव में रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं होने से पलायन की दर तेजी से बढ़ रहा था । और गांव के कुओं की स्थिति बदतर थी और पीने के पानी का संकट था। सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैंने देखी वह यह थी कि गांव में होने वाली बैठकों जैसी महत्वपूर्ण बातचीत में महिलाओं की उपस्थिति नहीं के बराबर थी। इसलिए मुझे अपने क्षेत्र की गावों के स्थिति में सुधार के लिए अपने समुदाय, विशेषकर इसकी महिलाओं के साथ काम करने की प्रेरणा मिली। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो गांव में पला-बढ़ा है और समुदाय के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों से वाकिफ है, मुझे विश्वास था कि मैं सार्थक बदलाव ला सकने में सक्षम हु ।
मुझे मेरे गांव में वागधारा संस्था जो जनजातीय समुदाय और अन्य सीमांत समूहों के बीच पारंपरिक कृषि पद्धतियों में सुधार के माध्यम से आजीविका के स्रोतों और विकल्पों को बढ़ाने के उद्देश्य से, संगठन ने कई तरह की गतिविधियां शुरू की हैं। संगठन, व्यापक स्तर पर, नीतिगत वकालत, बाल अधिकारों की प्राप्ति, महिलाओं को सशक्त बनाने और उनकी आजीविका वृद्धि के माध्यम से समुदाय के खाद्य सुरक्षा जाल करने की प्रणाली से आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए हमेशा प्रयासरत रहा है। वागधारा सहयोग से कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन का गठन किया गया था जो हमारे क्षेत्र के 40 गांवों का प्रतिनिधित्व करता है और संगठन का कार्य अपने क्षेत्र के सभी वंचित परिवारों के साथ मिलकर जनकल्याणकारी कार्यो को करना एवं करवाना | स्थानीय स्तर पर लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए समुदाय के सहयोग से समाधान करना एवं करवाना साथ ही पैरवी सबंधी समस्त कार्य समुदाय के हित के लिए कार्यरत है |मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि इनका काम मेरे समुदाय के लोगों की बेहतरी के लिए हस्तक्षेपों का एक उचित मिश्रण है। मैं वर्ष 2020 में वागधारा संस्था से जुड़ी और तब से ही सामुदायिक सहजकर्ता के रूप में काम कर रही हूं।
मैंने सामुदायिक सहजकर्ता के रूप में अपना काम शुरू किया है इसलिए मैं ऐसी कई गतिविधियों में शामिल थी जिनका उद्देश्य हमारे आसपास के संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन करना था। क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के लिए हमने गांव की पंचायत प्रणाली को मजबूत करने और जनकल्याणकारी योजना समुदाय तक पहुंचने के लिए कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन के साथ कार्य कर रही हूं । मैं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के माध्यम से लोगों की रोजगार तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने पर भी काम करती हूं। इसके लिए मैं कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन के मदद से एक वार्षिक श्रम बजट तैयार करने और ग्राम पंचायत ग्राम विकास हेतु कार्य योजना बनाने समुदाय को सहयोग में करती हूं जिसे ब्लॉक और जिला दफ्तरों में अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। रोजगार ढूंढने वाले लोगों को इस बजट के आधार पर ही काम आवंटित किया जाता है। हमारे गांव में मनरेगा के माध्यम से आवंटित किए जा रहे कामों में वन संरक्षण, चेक डैम बनाना और कुआं खोदना आदि शामिल है। गांव के लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार प्राप्त करने में सक्षम बनाने से पलायन को कम करने के साथ-साथ आजीविका की समस्या का समाधान करने में मदद मिलती है। अपनी दैनिक गतिविधि के बारे में दीपिका कटारा बताती हैं कि सुबह 5.00 बजे: जागने के बाद, मेरे सुबह के कुछ घंटे घर के कामों में लगते हैं गोबर निकालना । बर्तन साफ करने,सुबह खाना तैयार करने और इन सब कामों के बाद में रंगोली बनाती हूं और पूजा करती हूं।
सुबह 9.30 बजे: मैं विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और ऐसे अन्य प्रावधानों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए मै अपने 20 गावो में काम लिए निकल जाती हूं। मैं अपने समुदाय के सदस्यों के साथ समूहों या बैठकों में भाग लेती हुई बातचीत करती हूं। धरातल पर हमारे संस्था ने ग्राम विकास के लिए ग्राम स्वराज समूह, बाल विकास हेतु बाल स्वराज समूह और ब्लॉक स्तरीय कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन गठित किए यह इन संगठनों में लोकतंत्रीय प्रक्रिया से कामकाज चलता है मै वहा जानकारी साझा करती हु उन योजनाओं और प्रावधानों की होती है जो समुदाय के लोगों के लिए लाभदायक होती हैं। दिन के पहले पहर में मैं गांव के विभिन्न घरों का दौरा करती हूं। इन घरों से आंकड़े इकट्ठा करना मेरी जिम्मेदारी का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। उनका सर्वे करते समय मैं परिवार के आकार, इसके सदस्यों की उम्र, शिक्षा के स्तर और लिंग जैसी जानकारियां इकट्ठा करती हूं। ये घरेलू सर्वेक्षण मनरेगा श्रम बजट और ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) में काम आते हैं, जिसे तैयार करने में मैं मदद करती हूं। मैंने जिसे पहले बजट को तैयार करने में मदद की थी उसमें रोजगार हासिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। लेकिन आखिरकार हमने यह महसूस किया कि जल संरचनाओं का निर्माण भविष्य में भी हमारी उत्पादकता और आय बढ़ाने में मदद कर सकता है। हाल के बजट में इन विषयों को केंद्र में रखा गया था। गांव में पानी की कमी का सीधा मतलब यह था कि महिलाओं को पानी लाने के लिए नियमित रूप से एक किलोमीटर पैदल चलकर नदी तक जाना पड़ता था। इस समस्या का समाधान भूजल स्रोतों को फिर से सक्रिय करके किया जा सकता था और इसलिए ही मैंने भूजल सर्वे करना शुरू कर दिया। इस सर्वे से हमें यह जानने और समझने में मदद मिली कि ऐसे कौन से क्षेत्र हैं जहां भूजल पुनर्भरण कार्य करने की तत्काल आवश्यकता है,इस लिए हमने सगठन द्वारा अब तक, मै अपने कार्य क्षेत्र के 34 लोगो को कुआ गहरीकरण योजना से जुड़वाया और उनके कुओ का पानी पुनर्जीवित कर पाने में कामयाब रहे हैं, और इससे पानी की कमी को दूर करने में मदद मिली है।सामूहिक ज्ञान का उपयोग करते हुए हमारी महिलाओं और समुदाय के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर उनकी मदद करती हूं। हालांकि आमतौर पर महिलाएं ग्राम विकास के मुद्दे से सहमत होती हैं लेकिन मैं भी उन्हें विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से सीखने के लिए प्रोत्साहित करती हूं ।
शाम 6.00 बजे: शाम में घर वापस लौटने के बाद मुझे घर के कई काम पूरे करने होते हैं। मैं मवेशियों के खाने-पीने पर एक नज़र डालने के बाद पूरे परिवार के लिए खाना पकाती हूं। खाना तैयार होने के तुरंत बाद ही हम खाने बैठ जाते हैं। घर के कामों की जिम्मेदारी भी मै वहन करती हु । मेरे समुदाय के लिए अथक काम करने के कारण मेरे क्षेत्र की गांव में मेरी एक पहचान बन चुकी है। मैं २५ साल की हूं लेकिन मुझसे उम्र में बड़े लोग भी मुझे दीपिका दीदी पुकारते हैं। इससे मेरे पिता और मेरी मां को बहुत गर्व होता है। मैं अपने समुदाय के भाई-बहनों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनना चाहती हूं। और समुदाय के अन्य हमारे भाई बहनों को प्रेरित करना चाहती हूं ताकि वह भी समुदाय के लिए कुछ बड़ा करेंगे।
रात 9.00 बजे: रात का खाना खाने के बाद नींद में जाने से पहले कभी-कभी मैं अपने काम से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में सोचती हूं। मैं चाहती हूं कि मेरे कार्य क्षेत्र के गावों में महिलाओं की भागीदारी बढ़े और उनके विचारों को महत्व दिया जाए। अंत में, मैं केवल इतना चाहती हूं कि मेरे समुदाय के लोग सौहार्दपूर्वक रहें और विरासत में मिले इस , जल ,जंगल, जमीन ,जानवर ,बीज को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहें। मैं अपने गांव में कर रहे अपने कामों को आसपास के गांवों में भी लेकर जाना चाहती हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि वे लोग भी इसी प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे होंगे और स्थानीय ज्ञान के आदान-प्रदान से इसमें शामिल प्रत्येक व्यक्ति को लाभ होगा।
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